KeyNote by Pawan Arora: राजस्थान के 17 नए जिलों और 3 संभागों का क्या रहेगा भविष्य ? रिपोर्ट सौंपने के बाद डॉ. ललित के. पंवार का पहला इंटरव्यू

जयपुर: राजस्थान के 17 नए जिलों और 3 संभागों का क्या भविष्य रहेगा? इसको लेकर 1st इंडिया न्यूज CEO एवं मैनेजिंग एडिटर पवन अरोड़ा ने रिटायर्ड IAS और नए जिलों, संभागों की हाई लेवल एक्सपर्ट रिव्यू कमेटी के चेयरमैन डॉ. ललित के. पंवार से नए जिलों और संभागों की रिपोर्ट सौंपने के बाद SUPER EXCLUSIVE पहला Interview. इसमें डॉ. ललित के. पंवार से सीधे और सटीक सवाल किए, जिनके जवाब उन्होंने दिए.

1. सवाल- नए जिलों और संभागों की विशेषज्ञ समिति का चयरमैन जब बनाया गया, तो क्या मैंडेट आपको दिया गया था ? क्या आपसे अपेक्षा की गई थी, आप क्या जांच करेंगे और क्या समीक्षा करेंगे ?

जवाब-डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि मुख्य रूप से जो हमें मैंडेट दिया गया, उसमें जिलों क्षेत्राधिकार था. प्रशासनिक सुविधा, वित्तीय संसाधन और आम नागरिक का जिला मुख्यालय पर एक्सेस, यही चार पैमीटर्स थे, जिन पर हमारी कमेटी ने परीक्षण किया है.  

2. सवाल- जो आपने नए जिलों की समीक्षा की, तो इसमें किन-किन मापदंड को देखा?  एक मुख्य मापदंड होता है जनसंख्या का, दूसरा भौगोलिक क्षेत्र का होता है जो मूल जिला है, उससे नए मुख्यालय की दूरी कितनी है, कितने लोगों को सुविधा हो रही है? वहां उद्योग धंधे कैसे हैं? वहां के आर्थिक संसाधन कैसे हैं?  सरकारी कार्यालय और उनका वितरण किस प्रकार से है? तो ऐसे क्या-क्या मापदंड आपने देखे?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि हमने करीब 10 पैरामीटर्स देखे थे. इसमें हमने 6 और जोड़े, जैसे अवेलेबल इंफ्रास्ट्रक्चर, वहां के फाइनेशियल संसाधन कैसे हैं? कम्युनिकेशन कैसा है और साथ में सांस्कृतिक जुड़ाव, ये पाइंट थे. 

3. सवाल- जब हम क्षेत्र का पुनर्विभाजन करते हैं कई बार देखते हैं कि एक विधानसभा क्षेत्र दो टुकड़ों में बंट जाता है, तो क्या टर्मिनस एरिया के बारे में ध्यान रखा है?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि हां हमने ध्यान रखा है, हालांकि अभी वो स्टेज नहीं है.अभी सरकार तय करेगी कि कौन-कौन से जिले कायम रहेंगे. 
जब 2026 में परिसीमन आएगा, तब उसको तय किया जाएगा. जैसे दूदू में अभी एक ही विधायक है, और कई जिले हैं जिसमें 5 विधायक हैं. तो उसके बैलेंसिंग के लिए भी अपना प्रयास किया है. इसके लिए कुछ सुझाव सरकार को दिए हैं जो परिसीमन के साथ ही संभव होगा.

4. सवाल- क्या मैपिंग या ड्रोन मैपिंग के जरिए एरिया को विभाजित करके नहीं बताया कि कितना एरिया आना चाहिए ?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि हमने पहले कुछ नेशनल नॉम्स देखे हैं, भारत में 788 जिले हैं. इसमें एक जिले का एवरेज क्षेत्रफल देखा कि कितना है ? 4242 स्क्वॉयर किलोमीटर एवरेज एक जिले का है, उससे राजस्थान की तुलना की है. हमारे जिले बड़े हैं, अकेला जैसलमेर ही कैपिटल स्टेट के बराबर है. हमने ये फाइन ट्यूनिंग कि जो नया जिला बना उसका एरिया कितना है. नया जिला कितना है, नेशनल नॉम्स क्या हैं? उसके बाद उसे तय किया गया. एक बार जब जिले फ्रीज हो जाएंगे तो फिर जिला परिषद आगे जो स्टेज है उस पर आएंगे.

5. सवाल- अभी जिलों की भौगोलिक सीमा को नहीं देखा है, और जब भौगोलिक सीमा परिसीमन के समय तय होगी. तब ये देखा जाएगा कि पुलिस-प्रशासन का तालमेल कैसे हो? थानों की संख्या भी बाद में तय होगी ? 

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि अभी हमने इसको मैक्रो लेवल पर देखा है, हालांकि जिलों की सीमाएं जब नोटिफिकेशन निकला तो उसमें नोटिफाई हो गईं. लेकिन तहसील लेवल की फाइन ट्यूनिंग, ब्लॉक लेवल की फाइन ट्यूनिंग विधानसक्षा क्षेत्र की फाइन ट्यूनिंग, ये स्टेज 2-3 में आएंगी. माइक्रो लेवल पर हमने संभाग स्तर और जिला स्तर की बाउंड्रीज को फ्रीज किया है.

6. सवाल- रामलुभाया कमेटी को करीब एक साल लगा, जिलों के पुनर्गठन को प्रस्तावित करने में, नए संभाग के पुनर्गठन को प्रस्तावित करने में, अभी जो आपका काम था वो उनकी समीक्षा करने का था कि काम सही हुआ या नहीं, लेकिन आपने ये काम महज 2 माह में ही कैसे कर दिया, आपने क्या प्रक्रिया अपनाई?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि मैं IAS में आने से पहले कृषि वैज्ञानिक था. मुझे स्वामीनाथन जी के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. तो मेरी प्रक्रिया इसमें साइंटिफिक और मेथोडिकल रही. पहला रामलुभाया जी की 250 पेज की रिपोर्ट का अध्ययन किया, उससे पहले एक और रिपोर्ट का अध्ययन किया.  दूसरा, राजस्थान मेरा देखा हुआ था, मैंने 15 लाख किलोमीटर विजिट किया है. मैं 14 जिलों में गया, वहां जनप्रतिनिधियों से मुलाकात की. कई जिलों में रात में रुका, उसके बाद अनालिसिस किया.

7. सवाल- आपको खास तौर पर कहां लगा कि यहां मौके पर जाना चाहिए?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि अनूपगढ़, फलोदी, शाहपुरा, खैरथल जैसी कई जगहों पर जाकर रुका. यहां हमने कोशिश की कि यहां सबका फीडबैक मिल सके, साथ में पब्लिक का भी रिव्यू मिले.

8. सवाल- जब रामलुभाया कमेटी बनीं तो इनमें पॉलिटिकल पुट ज्यादा था, चुनाव के वक्त इनकी घोषणा हुई, तो समझ में आता है कि ये राजनीतिक आधार पर बने थे. तो अभी जब आपने इसकी समीक्षा की तो क्या आपने इसके लिए राजनीतिक राय ली? और उनका दबाव किस पर ज्यादा था? नए जिले बनाने पर या इनको कम करने पर?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि मैं इसका To The Point जवाब दूंगा. मैंने कमेटी के कार्यकाल में लगभग 45 विधायकों से मिला, 10 सांसदों से मिला. करीब 5 से ज्यादा मंत्रियों से वन-टू-वन बातचीत की, सभी ने मुझे राइटिंग में भी अपना फीडबैक भेजा. उनके फीडबैक का थ्रस्ट दो-तीन चीजों पर  था, जैसे क्षेत्राधिकार के नाते, दूसरा ये कि हर जनप्रतिनिधि का एक कम्फर्ट जोन होता है, आप उसको वोट बैंक भी कह सकते हैं, तो वो कम्फर्ट जोन प्रभावित ना हो, तो उन्होंने जो सुझाव दिए. उनका एक मकसद ये था कि ये कम्फर्ट जोन प्रभावित ना हो या डिस्टर्ब हो गया था तो रिस्टोर हो जाए. 

8. सवाल- जिले बनाने को लेकर कुछ व्यापारिक संगठन, NGO जैसे कई ग्रुप थे- वो भी इसमें काफी हिस्सा ले रहे थे कि ऐसे बना, तो क्या आपने भी इस ग्रुप को कंसीडर किया ?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि हां, जैसे मैं फलोदी, शाहपुरा गया तो वहां अच्छी संख्या में डेलीगेट्स पहुंचे. पत्रकार संघ, व्यापार संघ कई लोग पहुंचे.  क्योंकि जिले का एक सेंटीमेंट होता है. लोगों को आइडेंटिटी का भी एक अहम रोल होता है, इसमें ज्ञापन भी कई मिले. सबकी भावनाओं को रिफ्लेक्ट करने की कोशिश की, ताकि सरकार तक सबकी भावनाएं पहुंचे और वो वेल एनालाइस्ड लगे, रही पॉलिटिकल की बात तो वो मेरे दायरे में नहीं था, बस मैंने इसे कम्फर्ट जोन तक रखा.

9. सवाल- खास तौर पर दो जिले जयपुर और जोधपुर में शहर और ग्रामीण जिले बनाने को लेकर विरोध था, यहां के कैबिनेट मंत्रियों ने भी विरोध किया, जयपुर शहर और ग्रामीण करने से इंटरनेशनल लेवल पर जयपुर की जो छवि है, उससे लोग असमंजस में होंगे कि ग्रामीण में जाना है या शहर में जाना है, तो उसको लेकर भी आपके सामने बातें आईं ?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि हां इसको लेकर मैंने दोनों कलेक्टर्स से मुलाकात की, अधिकारियों से बात की. लोगों से मिला, तो जो आम भावना थी, वो इस पक्ष में नहीं थी, सबने ये कहा कि हमारा तो वहीं जिला ठीक था. दूसरा इसका एक प्रशानिक प्रभाव ऐसा पड़ा कि जो शहर के कलेक्टर्स थे वो एक तरह से APO हो गए. जब मैं जयपुर कलेक्टर ऑफिस में गया, तो देखा करीब-करीब काम बंद.कलेक्टर साहब ने कहा कि वो तो मेरे पास ग्रामीण का चार्ज है, इसलिए थोड़ा काम है, नहीं तो कोई काम नहीं. जब आप अलग कर देते हैं, तो कोई काम नहीं रह जाता है. इस बात को भी मैंने रिपोर्ट में लिखा कि ये जो विभाजन Separation हुआ ये शायद प्राशासनिक रूप से ठीक नहीं था. अब एनालिसिस करके दे दिया है, फाइनल सरकार को करना है. 

10. सवाल- ऐसा जानने में आया था कि रामलुभाया कमेटी को करीब 60 जिले बनाने के प्रस्ताव मिले थे और जिले जो बने वो 17 थे और 3 नए संभाग थे, तो आपकी समीक्षा रिपोर्ट में जो जिलों की संख्या है वो 17 है या कम है ?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि मैंने नए जिले प्रस्तावित नहीं किए, मेरा जो मेंडट था वो क्लियर था कि जो जिले बने हैं. उनकी समीक्षा करके रिपोर्ट पेश की जाए, तो मेरी रिपोर्ट एनालिटिकल ज्यादा है. मैंने दायरे से ज्यादा कुछ भी सजेस्ट नहीं किया, मैंने सिर्फ ये बताया कि जो जिले, संभाग बने हैं. इसकी प्रशासनिक के साथ-साथ आधारभूत संरचना क्या है?

11. सवाल- और बहुत सारे राज्य हैं उनमें भी पुनर्गठन होते होंगे, तो उनमें क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि इसका भी मैंने अध्ययन किया है, और ये देखा कि जो हमारे पड़ोसी राज्य हैं. जैसे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, इन सबमें उनका एरिया कितना है, जिले कितने हैं ? किस राज्य में कितने जिले बने ? इसका अध्ययन किया. इसके बाद हमारे देश का जो बेस्ट स्टेट कहलाता है तमिलनाडु इसका भी अध्ययन किया. वहां के पैरामीटर्स भी लिए, सिस्टम करीब-करीब एक जैसा था. नए जिलों का रिव्यू करने से पहले एक कमेटी बनाई जाती थी, उसमें सबकी सुनवाई करके नए जिले बनाए जाते थे. हरियाणा के जिलों से राजस्थान के जिले काफी ज्यादा फैले हुए हैं, अभी जो राजस्थान में हैं वो अनुकूल हैं.

12. सवाल- ऐसा माना जाता है कि एक जिला बनाने में करीब 2 हजार करोड़ का खर्चा आता है, तो जो नए जिले बनने पर वित्तीय संसाधनों की जरूरत होगी, वो भी आपकी समीक्षा का हिस्सा थे. जैसे कलेक्टर लगेंगे तो नए पद बढ़ेंगे, नया स्टाफ होगा तो ये सारी गणना भी आपने की ?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि इस मामले में मैंने वित्त विभाग से चर्चा की थी. उनका अनुमान था कि एक जिला बनाने में कम से कम 500 करोड़ और ज्यादा से ज्यादा 1500 करोड़ का खर्चा आता है. ये खर्चा अलग-अलग होता है, एक साथ नहीं होता, मेरा मेंडेट ये था कि उपलब्ध वित्तीय संसाधन और जिले का रेवेन्यू बेस क्या है? उसकी हमने समीक्षा की, कितना इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है, ताकि सरकार का खर्चा थोड़ा कम हो. कोई छोटा जिला होता है तो उसमें इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मिलता. अब जैसे फलोदी गया तो वहां पहले से इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत था, ओपन एरिया, रहने की जगह, वहां उनको सब चीजें मिल गईं
तो आप किस बेस पर शुरू करते हैं, उसका भी इसमें प्रभाव रहा, वो सब देखकर रिपोर्ट पेश की है.

13. सवाल- आपने रिपोर्ट पेश कर दी है, तो अब आगे आपको क्या लगता है ? कितने वक्त में जनता के लिए आ जाएगा कि कितने नए जिले बन रहें हैं, कितने संभाग बन रहे हैं?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि मुझे लगता है कि राज्य सरकार इस पर जल्द निर्णय लेगी, क्योंकि सेंसेस की घोषणा हो चुकी है, तो इस निर्णय को आने वाले 8-10 दिन में सरकार कर लेगी. क्योंकि ये एक बेसिक है, कि आप जिले, डिविजन फ्रीज करें तो आप आगे के स्टेप्स लें, इस पर जल्द निर्णय होगा. 

14. सवाल- आपकी कमेटी में और भी चार लोग थे, इन लोगों की क्या भूमिका रही?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि उन सबसे मैंने वन-टू-वन चर्चा की, उनके विचार जाने, जब मैं सब जगह जाकर वापस आया. अपना ड्राफ्ट तैयार किया, उसको सभी अधिकारियों ने देखा, उसके बाद उनका फीडबैक लिया. उसको अमल में लाया गया, ये सबके प्रयासों की वजह से हुआ है, मैं अकेला नहीं हूं. सबका बहुत वैल्युएबल एफर्ट था, सब मंझे हुए अधिकारी थे, मैं उनका धन्यवाद ज्ञापित करता हूं. उन्होंने बेहतरीन इनपुट दिए, जो रिपोर्ट पेश की गई वो एकमत थी.

15. सवाल- आज के JDA के हालातों के बारे में आप क्या सोचते हैं?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि दोस्त को वापस दोस्त बनाना पड़ेगा, बनाया जा सकता है. जब मैं JDA कमिश्नर रहा, तो मैंने वहां ओपन डोर पॉलिसी रखी. रोजाना 3 बजे सारे डिप्टी कमिश्नर, सारे डायरेक्टर्स बैठते थे, हम लोग 3 से 4 ओपन हाउस रखते थे. जब आप ये करते हैं, तो आम नागरिक आपसे कभी भी मिल सकता है. तो ऐसे में काफी हद तक जो गलत प्रैक्टिस होगी, वो वैसे ही खत्म हो जाती है. इससे पब्लिक को हिम्मत मिलती है, इसलिए मैंने इसका नाम 'जबरो दोस्त आपणो' रखा. JDA में हर व्यक्ति का काम पड़ता है, इसलिए मैंने इसे फ्रेंडली बनाने की कोशिश की. मैंने एक निर्णय लिया था, जो आज भी कायम है कि किसी भी किसान की कोई जमीन लें, तो उसके बदले उसे नकद राशि के बजाय विकसित भूमि ही उपलब्ध कराएं.

16. सवाल-  पर्यटन के परिप्रेक्ष्य में किस तरीके से काम होना चाहिए?

जवाब- डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि कोविड के बाद अधिकांश लोग शहर के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में जाना पसंद करते हैं. राजस्थान की ज्यादातर हेरिटेज प्रॉपर्टीज हैं, वो ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. हमारे यहां 600 बांध हैं, ईश्वर की कृपा से सभी ओवरफ्लो हो रहे हैं, हम लोग लार्जेस्ट स्टेट ऑफ द कंट्री हैं. हमारे यहां तो लोग ही एक तरह से डेस्टिनेशन हैं, हमारे यहां कहावत है. जो घर आया है, वो मेरी मां का जाया है, मेरा भाई है, बहन है उस तरह से स्वागत करूं.  राजस्थान की इमेज पूरे विश्व में मेहमाननवाजी के लिए प्रसिद्ध है, यहां अकूत संभावनाएं हैं.

17. RPSC में कैसे बदलाव हो? कैसे गठन हो, कैसे सदस्यों का चयन हो, कैसे इसका ढांचा बदले इस बारे में आपकी क्या राय है?

जवाब-  डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि आपने महत्वपूर्ण और संवेदनशील प्रश्न किया है. मुझे सौभाग्य मिला RPSC में अध्यक्ष के रूप में 2 साल काम करने का. चूंकि मेरा साइंटिफिक बैकग्राउंड है, तो मैंने जो हमारे देश के जो टॉप एग्जामिन सिस्टम हैं. जैसे बिट्स पिलानी, IIT दिल्ली, वहां जाकर उनका अध्ययन किया. उसके बाद UPSC गया, उसके बाद कुछ रिफॉर्म्स किए. जैसे अभी जो मेजर प्रॉब्लम आ रही है पेपर लीक की, तो हमने कहा कि पेपर को छापो ही मत तो लीक कहां से होगा ? यानि हमनें 110 एक्जाम किए तो उसमें 100 एग्जाम ऑनलाइन करवाए. ऑनलाइन एग्जाम होने से लीकेज की समस्या खत्म हो जाती है, कॉपियां ऑन स्क्रीन चेक करवाई, तो मेरा ये मानना है कि ह्यूमन इंटरेक्शन को मिनिमाइज करने पर डिजिटल सॉल्यूशन मिल सकता है. जो हमने किया, 11 दिन में हमने RAS का रिजल्ट निकाला, 29 एग्जाम करवाए एक भी पेपर लीक नहीं हुआ. मुख्य कारण था पहला डिजिटल, सिस्टमैटिक और नकल रोकने के लिए हमनें जैमर लगाए. इसके साथ ही फील्ड विजिट किया, तो ये कारण थे कि पेपर लीक नहीं हुए. मेरा ये मानना है कि सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए कि हम डिजिटल एग्जाम करवाएं, तो उससे 80-90 प्रतिशत पेपर लीक की समस्या खत्म हो जाएगी.

18. सवाल- जो यूथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है, वो काफी तनाव में रहता है, तो कैसे बच्चे मानसिक तनाव दूर रहें, कैसे तैयारी करें और क्या नौकरी ही विकल्प है? या उन्हें स्वरोजगार की तरफ भी ध्यान देना चाहिए, आपका अनुभव है तो आप अपने अनुभव के आधार पर क्या कहेंगे ?

जवाब-डॉ. ललित के. पंवार ने कहा कि आपने ज्वलंत प्रश्न पूछा है, जैसे कोटा में यूथ में सुसाइड की घटनाएं बढ़ी हैं, ये चिंता का विषय है. मैं ये कहना चाहूंगा कि आपकी तरह ही दिल्ली में रहकर साधारण कोचिंग इंस्टीट्यूट में तैयारी की. जहां तक स्ट्रेस की बात है, वो स्वाभाविक है वो आएगा ही, उसका एंटीडोट रहेगा. आप कुछ अलग हॉबी रखें, जैसे म्यूजिक है, गेम्स हैं, और आजकल मैं कहता हूं कि आप प्राणायाम करें, योगाभ्यास करें. इससे काफी हद तक आपको अच्छा लगेगा, बिल्कुल स्ट्रेस नहीं आएगा. मैं 45 साल से IAS में हूं, आज तक किसी से चिल्लाकर बात नहीं की, गुस्सा नहीं करना पड़ा. क्योंकि मैं रोजाना सुबह योगाभ्यास-प्राणायाम करता हूं. हरिवंश राय बच्चन जी की पंक्ति है कि मन चाहे तो अच्छा, नहीं हो तो और भी अच्छा. आप अपने हिसाब से क्या सोच रहे हैं, हो सकता है परमपिता ने आपके लिए कुछ और बेहतर सोच रखा हो. अपने पर 99 प्रतिशत यकीन कीजिए, एक प्रतिशत ऊपर वाले पर छोड़ दें, तो सक्सेस आपको मिलेगी.