प्राचीन मंदाकिनी शिल्प मंदिर की महिमा, विनायकी मूर्तियों की होती है पूजा, देखिए खास रिपोर्ट

चित्तौड़गढ़: गणेशी या नारी गणेश का नाम थोड़ा अटपटा जरूर लग सकता है. लेकिन चित्तौड़गढ़ जिले की सीमा में स्थित भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया में  प्राचीन मंदाकिनी शिल्प मंदिर में नारी गणेश की दो अद्भुत मूर्तियां हैं . मंदिर में गणेश चतुर्थी और अन्य विशेष अवसरों पर विनायकी मूर्तियों की पूजा की जाती है. क्षेत्र के लोग इन्हे अलग अलग मान्यताओं के तौर भी देखते है क्या है मंदिर की महिमा और इन मूर्तियों का महत्व. 

ये है भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया में स्थित मंदाकिनी मंदिर. मंदाकिनी मंदिर के बाहरी स्तंभ पर नारी गणेश की एक छोटी प्रतिमा है, जबकि मंदिर के दक्षिण भाग के कोष्ठकों में नारी गणेश की ललितासन प्रतिमा उत्कीर्ण है. चतुर्भुज प्रतिमा में शिल्पियों ने नारी गणेश को फरसा, गदा, मोदक और सुंड के साथ मोदक थाल पर अंकित किया है. इसे तांत्रिक प्रभाव के रूप में भी देखा जाता है. यह उन्नत वक्ष और अलंकरण नारी देह का परिचायक भी हैं. मंदाकिनी मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है और विनायकी प्रतिमाओं के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. करीब 15 साल पहले इन अनूठी मूर्तियों का पता चला और तब से पर्व, त्योहार, बुधवार और गणेश चतुर्थी के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु इनकी पूजा-अर्चना करने मंदाकिनी मंदिर पहुंचने लगे है.

कौन है वैनायिकी:
वैनायिकी नारी गणेश के कई नाम हैं. गणेशी, नारी गणेश, गजानना, हस्तिनी, वैनायिकी, विघ्नेश्वरी, गणेश्वरी, गणपति सदा, अयंगिनी, महोदरा, गजवस्त्रा, लंबोदरा, और महाकाया. ओडिशा के चौंसठ योगिनी मंदिरों और जबलपुर के भैरा घाट मंदिर में नारी गणेश की एक-एक मूर्ति है. राजस्थान के हर्ष देव मंदिर में भी नारी गणेश की मूर्ति है. बिजोलिया के मंदाकिनी मंदिर में भी नारी गणेश की दो अद्भुत मूर्तियां हैं.

इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू कहते है कि विनायिकी की पूजा के पीछे छः प्रकार की मान्यताएं रही हैं जिनमें महामारी, टिड्डियों, राजभय, चूहों सहित कई तरह की मान्यताएं है. जिनकी वजह से विनायकी की पूजा की जाती है. चित्तौड़गढ़ जिले के बेगूं और भीलवाड़ा जिले के  बिजोलिया सहित कई गांवों में आज भी किसान गणेशजी को बीज चढ़ाकर ही बुवाई करते हैं. मान्यता है कि 12वीं सदी के आसपास शुरू हुई थी बताया जा जाता है  यदि चूहे बीज खा जाते हैं तो स्त्री को बीज बचाने वाली और उर्वरा शक्ति संपन्न माना जाता है. यही विश्वास इस देवी के प्रति श्रद्धा का कारण भी है. राष्ट्रपति से सम्मानित उदयपुर के इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू की माने तो 10वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान मेनाल एक महत्वपूर्ण मूर्ति धाम के रूप में प्रतिष्ठित था. इसी अवधि में बिजोलिया के मंदाकिनी मंदिर में नारी गणेश की मूर्तियां तराशी गईं. मेवाड़ में नारी गणेश की पूजा दैवीय शक्ति के रूप में की जाती रही है. विनायिकी को चौंसठ योगिनियों में शामिल किया गया था. बिहार के मधुरा, आंध्र प्रदेश के लोहारी बांदा, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और हिंगलाजगढ़ सहित राजस्थान के हर्ष देव तीर्थ जैसे स्थानों पर चौथी से लेकर सातवीं शताब्दी तक की विनायिकी की प्रतिमाएं मिली थी

डॉ.कृष्ण जुगनू मानते है देवी को देवताओं की सहयोगी माना गया है. नारी गणेश को फसलों को चूहों, टिड्डियों और कीटों से बचाने और मानव जाति को महामारियों से सुरक्षित रखने के लिए पूजा जाता है. मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में भी विनायकी का उल्लेख किया गया है और गजानना, वैनायिकी जैसे नाम आए हैं. बौद्ध ग्रंथों में गणपति हृदय का उल्लेख है, और जैन ग्रंथों में विनायकी को 36 वें क्रम में शामिल किया गया है. मत्स्य पुराण के तीसरे सदी के 179 वें अध्याय में वर्णित है कि अंधकासुर वध के बाद भगवान शिव ने रक्त को पीने के लिए लगभग 200 माताओं को उत्पन्न किया, जिनमें एक मातृका विनायिकी बताई गई है.