जयपुरः सड़क निर्माण के लिए अब पहाडों को नहीं तोड़ा जाएगा. पराली भी अब पर्यावरण के विध्वंस नहीं वरन विकास का माध्यम बनेगी. जी हां.. सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने चार उद्योगों के साथ मिलकर स्टील स्लैग तकनीक का तैयार की है. पराली को भी पायरोलिसिस तकनीक से बायो बिटुमिन में बदलकर सड़क बनाने के काम में लिया जाएगा. दोनों तकनीक क्रांतिकारी साबित होंगी.
भारत में सड़क निर्माण के लिए नई और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों का विकास एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है. जहां एक ओर सड़क निर्माण के पारंपरिक तरीके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, वहीं दूसरी ओर बायो बिटुमिन और स्टील स्लैग जैसी नवीन तकनीकें इस समस्या का समाधान पेश कर रही हैं. इन तकनीकों के माध्यम से सड़कें न केवल मजबूत और टिकाऊ बन रही हैं, बल्कि पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.
बायो बिटुमिन: पराली जलाने की समस्या का समाधान
भारत के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हर साल कृषि अवशेषों, विशेष रूप से पराली, को जलाने की समस्या उत्पन्न होती है. यह न केवल वायु प्रदूषण का कारण बनता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को भी बढ़ाता है. बायो बिटुमिन एक ऐसी तकनीक है जो पराली और अन्य जैविक कचरे को पुनः उपयोग में लाकर सड़क निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता है. बायो बिटुमिन का उत्पादन पराली, बायोमास, और अन्य कृषि अवशेषों से किया जाता है, जिन्हें विशेष प्रक्रिया से तापमान पर संसाधित किया जाता है. इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे पराली जलाने के कारण होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है. साथ ही, इससे बनने वाली सड़कें पारंपरिक डामर की सड़कों की तुलना में ज्यादा टिकाऊ और मौसम-रोधी होती हैं.
प्राकृतिक संसाधनों की होती है बचतः
भारत में स्टील उद्योग से निकलने वाला स्टील स्लैग एक उप-उत्पाद है, जो अक्सर कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है. लेकिन अब इस स्टील स्लैग को सड़क निर्माण में उपयोग किया जा रहा है. स्टील स्लैग को सड़क के बेस या फिलर के रूप में इस्तेमाल करने से सड़क की मजबूती में इजाफा होता है. यह सामग्री रासायनिक रूप से स्थिर होती है और सड़कों को बर्फबारी, भारी बारिश और गर्मी के मौसम में भी मजबूत बनाए रखती है. इस तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे प्राकृतिक संसाधनों की बचत होती है और कचरे के रूप में फेंके जाने वाले स्लैग का पुनर्चक्रण होता है. इससे निर्माण लागत में भी कमी आती है, क्योंकि पारंपरिक निर्माण सामग्री की तुलना में स्टील स्लैग सस्ता और प्रभावी होता है. भारत के विभिन्न हिस्सों में इन नई तकनीकों का ट्रायल शुरू हो चुका है. सूरत, जीरो वैली ईटानगर, डोंबिवली (महाराष्ट्र) और जमशेदपुर जैसे शहरों में स्टील स्लैग तकनीक से बनी सड़कों का परीक्षण चल रहा है. इन स्थानों पर सड़कों की गुणवत्ता और मजबूती की जांच की जा रही है. इसके अलावा, 21 दिसंबर को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, नितिन गडकरी नागपुर में बायो बिटुमिन से बनी सड़क का उद्घाटन करेंगे, जो इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. यह उद्घाटन न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सड़क निर्माण की दिशा में एक नई क्रांति का संकेत भी है.
तकनीकी पहलू और फायदे**
इन दोनों तकनीकों का उपयोग सड़क निर्माण में कई फायदे प्रदान करता है:
1. **पर्यावरणीय लाभ**: बायो बिटुमिन से पराली जलाने की समस्या दूर होगी, और स्टील स्लैग के उपयोग से कचरे का पुनर्चक्रण किया जाएगा.
2. **मजबूती और दीर्घायु**: बायो बिटुमिन और स्टील स्लैग से बनी सड़कें पारंपरिक सड़कों की तुलना में ज्यादा टिकाऊ होती हैं, और ये अधिक समय तक खराब नहीं होतीं.
3. **कम लागत**: इन तकनीकों के उपयोग से निर्माण की लागत में कमी आती है, क्योंकि यह अधिक सस्ते और उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करती है.
4. **जलवायु अनुकूल**: बायो बिटुमिन से बनी सड़कें गर्मी, बारिश और ठंड से बेहतर तरीके से निपट सकती हैं, जिससे सड़क की जीवनकाल बढ़ती है.
बायो बिटुमिन और स्टील स्लैग जैसी नई तकनीकों का उपयोग भारत में सड़क निर्माण के भविष्य को नया आकार दे रहा है. इन तकनीकों से न केवल सड़कों की मजबूती और दीर्घायु बढ़ेगी, बल्कि पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान भी होगा. नितिन गडकरी द्वारा 21 दिसंबर को नागपुर में बायो बिटुमिन से बनी सड़क का उद्घाटन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इन पहलुओं का समावेश भारतीय सड़क निर्माण के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने का कारण बनेगा.