जयपुर: क्या कोई व्यापारी लागत से कम मूल्य पर चीज बेचता है ? अगर कोई यह सवाल पूछे तो हर कोई सामान्य समझ के आधार पर इसका जवाब ना में देगा. लेकिन जयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर चितलवाड़ी के मावा व्यापारी के पास इसका जवाब "हां" है. इससे भी ज्यादा हैरत यह है कि चमकीले मावे की चमक की चकाचौध में छिपे सवालों के इस तिलिस्म को खाद्य विभाग और पुलिस की टीम भी तोड़ नहीं पा रही है. यहां तक कि मिलावटखोरों के खिलाफ इस सीजन में सबसे असरदार कार्रवाई का दम भरनेवाली खाद्य विभाग की टीम भी रात में धड़ल्ले से चल रहे इस कारोबार पर नकेल नहीं कस सकी. चौमूं के पास चितलवाड़ी में सेहत के सौदागरों के इन खतरनाक मंसूबों की पड़ताल की फर्स्ट इंडिया टीम के रिपोर्टर विकास शर्मा और डॉ. ऋतुराज शर्मा ने...
त्योहारी सीजन में मावे की बढ़ती मांग के मद्देनजर दूध का सीमित स्टॉक रहता है और इसके बावजूद मांग अनुसार मावा और मिठाइयां कैसे बनाई जाती है ? इस सवाल ने जन्म दिया हमारे मिशन को और इस मिशन में मैंने हमारे वरिष्ठ संवाददाता डॉ. ऋतुराज शर्मा का साथ लिया और बुलंद हौसलों के साथ हम चल पड़े एक मिशन पर....
मिशनरी जज्बे के साथ शुरू किए इस काम में हमारा सामाजिक सरोकार तो था ही. इसमें खासी बड़ी भूमिका निभाई खबरियों ने. दरअसल फर्स्ट इंडिया की टीम पिछले कई दिनों से जुटी हुई थी मिलावटखोरों पर नकेल डालने के मिशन पर. इसके लिए देहाती और कस्बाई इलाकों में कई खबरियों को तैयार किया गया. हमारे विश्वास पर ये वे जागरुक लोग थे जो शुद्धता के योद्धा बनकर इस गंभीर अपराध के मुख्य अड्डे पर जाने को तैयार थे. ऐसे में हमारी टीम ने खाद्य निदेशालय में सम्पर्क किया और फिर देर रात शुरू किया गया सर्च ऑपरेशन.
चौमूं से करीब 3 किलोमीटर दूर चितलवाड़ी के पास अंदर सुनसान रास्तों से गुजरते हुए 8 किलोमीटर अंदर कई ढाणियों के बीच है यह ठिकाना. तीखे मोड़, कई जगह घुमाव और संकरी गलियों में हम करीब 8 किलोमीटर तक अंदर चलने के बाद आखिरकार ठीक जगह पहुंचे और फिर कहीं जाकर मिला मावे की खेप का ठिकाना. लेकिन दिलचस्प यह था कि इतना बड़ा लवाजमा देखकर भी वहां किसी के चेहरे पर शिकन नहीं थी. हमारे लिए दूसरी चौंकाने वाली बात यह थी कि हजारों किलो मावा सरस के गोल्ड श्रेणी के उस दूध से बनाया जा रहा था जिसकी कीमत 60 रुपये प्रति किलो है.
मिलावट का तिलस्म !
- चौमूं के चिथवाड़ी गांव में मावा व्यापार का अजीबों-गरीब गणित
- 300 रुपए की लागत के मावे की 250 रुपए में धड़ल्ले से बिक्री
- शुद्ध के लिए युद्ध अभियान में गांव में कल रात चला बड़ा सर्च ऑपरेशन
- खाद्य निदेशालय की टीमों के साथ ही पुलिस ने चलाया बड़ा सर्च ऑपरेशन
- इस ऑपरेशन के दौरान करीब 20 से अधिक यूनिटों पर मारा छापा
- सभी यूनिट्स में सरस के गोल्ड दूध से बनता मिला हजारों किलो मावा
- खुद विभाग के फूड सेफ्टी ऑफिसर्स की आंखे यह देखकर रह गई दंग
- क्योंकि 60 रुपए किलो में मिलता है सरस का गोल्ड कैटेगिरी का दूध
- करीब चार से साढ़े चार किलो दूध से तैयार होता है एक किलो मावा
- यूनिट ओएंडएम,ईंधन,लेबर, ट्रांसपोटेशन खर्च को जोड़ा जाए तो
- करीब 300 रुपए प्रति किलो आती है मावे की वास्तविक कॉस्टिंग
- लेकिन यूनिट्स में 250 से 260 रु. प्रति किलो में आसानी से उपलब्ध मावा
- ऐसे में सवाल ये कि 300 की कॉस्टिंग का मावा 250 रुपए में कैसे उपलब्ध ?
- क्या विभागीय सर्च ऑपरेशन के बारे में थी पहले से ही व्यापारियों को खबर ?
- इस घटनाक्रम ने फूड सेफ्टी डायरेक्टर को दे डाली सीधी-सीधी चुनौती
- साथ ही स्थानीय पुलिस की भूमिका पर उठते दिख रहे कई तरह के सवाल ?
फर्स्ट इंडिया ने सामाजिक सरोकार अपनाते हुए जांच दल को बुलाया जिसने छापे की कार्रवाई को अंजाम दिया और नमूने उठाए. खुद विभागीय अधिकारी इलाके में चल रहे मावे के कारोबार की गणित समझ नहीं पा रहे थे. क्योंकि जिस प्रक्रिया से मावा बनाया जा रहा था, उससे कॉस्टिंग 300 रुपए प्रति किलो के आसपास आना तय था. ऐसे में दबे स्वर में वे भी स्वीकारने लगे कि सभी लोगों को पहले से ही कार्रवाई की भनक लग गई. इसलिए वे सावचेत थे.
चिथवाडी में पर्दे के पीछे का ये है सच:-
- कैसे होती है मावे में मिलावट
- चीतलवाड़ी या अन्य जगहों पर मावा बनाने का काम रात में होता है.
- रात 12 या 1 बजे काम शुरू होता है और सुबह 4,साढ़े चार बजे तक सारा माल बन जाता है.
- फिर यह मावा जयपुर के बाजारों में बेचा जाता है.
- मावे की सबसे अच्छी खपत दूध मंडी में होती है.
- यहां मावा 250 रुपये प्रति किलो तक मिल जाता है.
- यहां तक कि इस कीमत पर व्यापारी ऑन स्पॉट डिलीवरी करने को भी तैयार रहते हैं.
- दरअसल मावे का व्यापार मिलावट के जहर के चलते फल-फूल रहा है.
- दूध को ओंटाते समय SMP यानि स्कीम्ड मिल्क पाउडर मिलाया जाता है.
- साथ ही उसका फैट हटाकर खाद्य तेल डाला जाता है.
- इस प्रोसेस से मावा चमकीला बनता है .
- लेकिन इस चमक के पीछे गहरी अंधेरी रातों की काली सचाई है.
- यह मावा दिखने में तो आम मावे जैसा होता है लेकिन यह सेहत के लिए खासा नुकसानदायक है.