जयपुर: प्रदेश में बाघों की सिलसिलेवार मौत हो रही है. वन मंत्री से लेकर विभाग के अधिकारी तक मौन हैं. पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी द्वारा शुरू की गई बाघ परियोजना की आत्मा राजस्थान में चीत्कार करती सुनाई देती है. चार वर्ष में 30 से अधिक बाघों की मौत और इतने ही बाघों के गायब होने ने वन प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. मुकंदरा में एमटी 4 की मौत के बाद आज टी 104 की मौत से वन्यजीव प्रेमी आक्रोशित हैं और ठोस कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
वर्ष क्षेत्र मृतक बाघ/बाघिन/शावक
2018 रणथंभौर दो शावक, जहर देकर
जून 2019 सरिस्का बाघ एसटी 16
अक्टूबर 2019 रणथंभौर बाघ टी 119 वीरू
जनवरी 2020 रणथंभौर बाघ टी 25 जालिम
मार्च से अगस्त 2020 मुकंदरा 6 बाघ/बाघिन/शावक
अप्रेल 2021 रणथंभौर टी 60 का शावक
मई 2021 रणथंभौर टी 102 का शावक
जून 2021 रणथंभौर टी 107 का शावक
जुलाई 2021 रणथंभौर टी 65
अप्रेल 2022 सरिस्का एसटी 6
मई 2022 रणथंभौर टी 61 और टी 69 का शावक
जून 2022 रणथंभौर टी 34 कुंभा
जून 2022 सरिस्का एसटी 3
दिसंबर 2022 सज्जनगढ़ टी 24 उस्ताद
जनवरी 2023 रणथंभौर टी 57
जनवरी 2023 रणथंभौर टी 114 व एक शावक
फरवरी 2023 रणथंभौर टी 19 कृष्णा
फरवरी 2023 रणथंभौर टी 117 का सब एडल्ट
मई 2023 मुकंदरा एमटी 4
मई 2023 सज्जनगढ़ टी 104
- NBP में सितंबर 2019 से अगस्त 2022 तक 5 बाघ व 5 शेर, 2 पैंथर की हुई मौत
- 3 केनाइन डिस्टेंपर, 2 कार्डियक अरेस्ट, 3 लैपटॉपायरोसिस व 4 अज्ञात में थी बीमारी
- सुजैन शेरनी की 19 सितंबर 2019 को केनाइन डिस्टेंपर से मौत
- रिद्धि बाघिन की 21 सितम्बर 2019 को केनाइन डिस्टेंपर से मौत
- सीता (सफेद बाघिन) की 27 सितंबर 2019 को केनाइन डिस्टेंपर से मौत
- रुद्र बाघ की 10 जून 2020 लेप्टोस्पायरोसिस से हुई मौत
- सिद्धार्थ शेर की 11 जून 2020 को हुई लेप्टोस्पायरोसिस से मौत
- राजा (सफेद बाघ) की 4 अगस्त 2020 लेप्टोस्पायरोसिस से हुई मौत
- कैलाश शेर की 18 अक्टूबर 2020 को कार्डियक अरेस्ट से मौत
- तेजस शेर की 3 नवंबर 2020 को लेप्टोस्पायरोसिस से मौत
- तारा का शावक की 12 दिसम्बर 2020 को कमजोरी से मौत
- सफेद बाघ चीनू की 10 जुलाई 2022 को संभवतः लेप्टोस्पायरोसिस से मौत
- 15 जुलाई को अचरोल से ट्रेंकुलाइज कर लाए गए पैंथर की मौत
- और आज 14 महीने के पैंथर शिवा की अज्ञात कारणों से हुई मौत
- बारहसिंगा की 19 दिसंबर 2021 को कार्डियक अरेस्ट से मौत
आक्रोश और दर्द को यूं समझिए कि बतौर खबरनवीस में सामान्य शब्दों में ही लिखना चाह रहा था लेकिन कलम अकड़ गई और आक्रोशित कलम ने जो खुद ब खुद लिखा वह आपके सामने है. आज कैलाश सांखला की रूह भी जन्नत में रो रही होगी. उन्हीं के प्रदेश में उन्हीं के द्वारा शुरू करवाई गई बाघ परियोजना अपने स्वर्ण जयंती वर्ष में दम तोड़ रही है. बाघ गायब हो रहे हैं उनकी नियमित मौत हो रही है. जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती और सियासी दबाव में कुछ अफसर लगातार वाइल्ड लाइफ में जमे हैं. सलाहकार बोर्ड और समितियों में कुछ सियासी रसूक वालों का जमावड़ा है जो नए लोग जो वन्यजीव संरक्षण से जुडे हैं उन्हें आगे नहीं आने देते. गुस्से, जी हां... जब देश बाघ परियोजना की स्वर्ण जयंती मना रहा है उस वर्ष में प्रदेश में बाघों की सिलसिलेवार मौत ने वन्य जीव जगत को झकझोर कर रख दिया है.
रणथंभौर, सरिस्का, मुकंदरा और रामगढ़ विषधारी के तौर पर प्रदेश में चार टाइगर रिजर्व हैं. इनमें करीब 106 बाघ-बाघिन और शावक हैं. मुकंदरा देश का ऐसा एकमात्र टाइगर रिजर्व है जहां सिर्फ एक बाघ है. वहीं रामगढ़ विषधारी में महज बाघ-बाघिन का एक जोड़ा... अब विडंबना देखिए कि बाघ विहीन हुआ सरिस्का तो फिर से आबाद हो गया लेकिन मुकंदरा शापित हुआ लगता है जहां बाघ बसाने का पहला प्रयास पूरी तरह विफल रहा और दूसरा प्रयास शर्मनाक. प्रदेश में पिछले चार वर्ष में अधिकांश समय अरिंदम तोमर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक रहे हैं. अब दुर्योग देखिए कि इनके कार्यकाल में ही प्रदेश में अधिकांश बाघों की मौत हुई और दो दर्जन से ज्यादा बाघ गायब भी हुए.
ताजा मामला 4 मई को मुकंदरा में गर्भवती बाघिन एमटी 4 की मौत और आज रणथंभौर के बीड एन्क्लोजर से सज्ज्नगढ़ शिफ्ट किए गए बाघ टी 104 की मौत से जुड़ा है. हालांकि विभागीय अधिकारी ट्रेंक्यूलाइज करने से लेकर शिफ्टिंग तक में सभी प्रोटोकॉल अपनाने का दावा करते हैं लेकिन बाघों की मौत को लेकर वन मंत्री और विभाग के उच्च अधिकारी मौन नजर आते हैं. लेकिन इन दिनों बाघों की मौत की सिलसिलेवार घटना के बाद राजसीको के चेयरमैन राजीव अरोड़ा, पर्यावरणविइ बाबूलाल जाजू, स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की सदस्य सिमरत संधु सहित सभी ने इन मौतों की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. दूसरी ओर वन्यजीव प्रेमियों ने सरकार से अक्षम अधिकारियों को फील्ड से हटाने को लेकर आंदोलन करने की चेतावनी भी दी है.