जयपुर: लोकसभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा सीट जीतने पर दंभ भरने वाली कांग्रेस पार्टी अब प्रदेश के उपचुनाव में चारों खाने चित हो गई है. सात विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने तीन सीटे गंवा दी और महज एक जगह जीत दर्ज कर पाई. चार जगह तो कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा सके. आखिर क्या रहे कांग्रेस के इस बुरे प्रदर्शन के कारण.
विधानसभा चुनाव हारकर सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस पार्टी पर एक साल में ही जनता का भरोसा और कमजोर हो गया. 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती हुई चार में से तीन सीटे इस उपचुनाव में हार गई और महज दौसा का किला बचा सकी. कांग्रेस जीती हुई दौसा सीट के अलावा झुंझुनूं व रामगढ़ में ही जमानत बचा पाई, शेष 4 सीटों खींवसर, देवली उनियारा, चौरासी व सलूंबर में कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में सात में से दो जगह खींवसर व चौरासी में कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत नहीं बच पाई थी. लोकसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस गदगद थी, लेकिन उसका यह दंभ ज्यादा नहीं टिक सका. प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रबंधन तक कदम कदम पर कांग्रेस गलती करती रही और भाजपा फायदा उठाती रही. इस उपचुनाव में कांग्रेस की हार के कोई एक कारण नहीं है, बल्कि ऐसे पांच प्रमुख कारण है, जिसके चलते कांग्रेस की विधानसभा में सदस्य कम हो गए.
हार का पहला कारण
स्थानीय नेताओं को छोड़कर कांग्रेस ने सांसदों पर उम्मीदवारी छोड़ दी. इसके चलते झुंझुनू और देवली-उनियारा सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई. दौसा भी हारते-हारते बची. जनभावनाओं की उपेक्षा, परिवारवाद और जातिवाद पर फोकस करने का आरोप लगा.
हार का दूसरा कारण
बिना गठबंधन के चुनाव लड़ने का देरी से फैसला भी हार का प्रमुख कारण रहा. इसी कारण खींवसर, चौरासी, सलूंबर में प्रत्याशी चयन में भी देरी हुई. इन सीटों पर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को साथ जोड़ ही नहीं सकी. गठबंधन को लेकर पार्टी नेता आखिरी तक दोहरे बयान देते रहे, जिससे कांग्रेसी वोटर्स कन्फ्यूज रहे.
हार का तीसरा कारण
कुछ सीटों पर स्थानीय मुद्दे हावी रहे. कांग्रेस के मूल वोट बैंक एससी और अल्पसंख्यकों ने कांग्रेस से दूरी बना ली. झुंझुनूं में अल्पसंख्यक व दलित खिसक गए, तो रामगढ़ में अल्पसंख्यकों के अलावा बाकी वोट बैंक एकजुट नहीं रहा. भाजपा के बंटेंगे तो कटेंगे नारे का तोड़ नहीं निकाल पाए.
हार का चौथा कारण
कांग्रेस बागियों का मनाने में विफल रही. देवली-उनियारा में नरेश मीणा ने तो झुंझुनूं में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र गुढा ने बड़ा नुकसान किया. यहां के कांग्रेसी सांसदों ने इनसे बात करने की भी कोशिश नहीं की. सलूंबर में रघुवीर मीणा की नाराजगी भारी पड़ी.
हार का पांचवां कारण
पार्टी के बड़े नेता सभी सीटों पर चुनाव प्रचार करने ही नहीं गए. इससे पार्टी की एकजुटता का संदेश नहीं गया. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी एक बार भी चुनाव के दौरान प्रचार करने नहीं आए
इन पांच प्रमुख कारणो के अलावा भी हर विधानसभा क्षेत्र में ऐसे समीकरण बने, जिसके जाल में कांग्रेस फंस कर रह गई. झुंझुनू में सांसद बृजेंद्र ओला का ओवरकॉन्फिडेंस पार्टी को ले डूबा. कांग्रेस की भरी मीटिंग में ओला ने बड़े नेताओं से कहा था कि आप 6 सीटों की चिंता कीजिए, झुंझुनूं को मेरे हवाले छोड़ दीजिए. ओला ने किसी बड़े नेताओं को प्रचार में भी नहीं बुलाया और पार्टी भी पूरी तरह उन पर निर्भर रही और हार नजदीक देखकर भी हस्तक्षेप नहीं किया. कांग्रेस सांसद बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला को भाजपा के राजेंद्र भांबू ने 40 हजार से अधिक वोटों से हराया. देवली उनियारा में भी स्थिति कमोबेश ऐसी ही थी.
सांसद हरीश मीणा ने केसी मीणा को उम्मीदवार बनाया, लेकिन नरेश मीणा को हल्के में ले लिया. कांग्रेस पार्टी चाहती थी कि नरेश मीणा से बात की जाए, लेकिन हरीश इसके लिए तैयार नहीं थे. केसी मीणा को टिकट देने पर भी कई तरह की चर्चा जयपुर से दिल्ली तक चलती रही. कांग्रेस पार्टी का गुटबाजी से पुराना रिश्ता रहा है. इसके कारण कांग्रेस को कई बार नुकसान उठाना पड़ा है. सलूंबर में रघुवीर मीणा का टिकट काटा, तो वे नाराज हो गए. पार्टी ने उनको मनाने की कोशिश की, लेकिन रघुवीर पूरी तरह सक्रिय नहीं हुए. कांग्रेस की वर्किंग कमेटी का सदस्य जैसे प्रमुख पद पर रहने के बावजूद रघुवीर ने एक्टिव रोल नहीं निभाया. असर यह हुआ कि कांग्रेस के वोट भारतीय आदिवासी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो गए.
चौरासी व खींवसर में तो लगता है कि कांग्रेस ने औपचारिकता का चुनाव लड़ा. खींवसर में कांग्रेस प्रत्याशी को महज करीब पांच हजार वोट ही मिले.यों कहे तो टिकट वितरण को लेकर जयपुर में हुई बैठक केवल खानापूर्ति साबित हुई. प्रभारी द्वारा भी टिकट वितरण में फीडबैक पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाने की जानकारी सामने आई थी. सांसदों की सिफारिश, परिवारवाद और स्थानीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी कांग्रेस को इस बड़ी हार के तौर पर चुकानी पड़ी है. कांग्रेस के थिंक टैंक की निष्क्रियता के चलते कांग्रेस से नाराज नेताओं को मनाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हुई.
- खींवसर, देवली उनियारा, चौरासी व सलूंबर में कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत जब्त
- 7 में से चार जगह तीसरे स्थान पर रही कांग्रेस पार्टी
- तीन टिकट सांसदों के हवाले कर दी, एक टिकट परिवार के
- सलूंबर, चौरासी व खींवसर में चुनाव लड़ती नजर नहीं आई कांग्रेस
- देवली-उनियारा में बागी को बैठाने की बजाय उकसाती नजर आई कांग्रेस
- टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रभारी ने फीडबैक में रुचि नहीं ली
- झुंझुनूं व देवली-उनियारा में सांसदों का ओवरकॉन्फिडेंस पार्टी को ले डूबा
- खींवसर व सलूंबर में कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक शिफ्ट हुआ