Ashadh Maas 2023: आज से शुरू हुआ आषाढ़ महीना, सूर्य पूजा से दूर होती हैं बीमारियां और बढ़ती है उम्र; इन खास बातों का रखें ख्याल

Ashadh Maas 2023: आज से शुरू हुआ आषाढ़ महीना, सूर्य पूजा से दूर होती हैं बीमारियां और बढ़ती है उम्र; इन खास बातों का रखें ख्याल

जयपुर: हिंदू पंचांग के अनुसार आज से आषाढ़ मास शुरू हो गया है. धर्म की दृष्टि से देखा जाए तो यह महीना काफी महत्वपूर्ण है. मान्यताओं के मुताबिक, आषाढ़ में की गई पूजा-पाठ का विशेष फल मिलता है. इस महीने में विष्णु जी की पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है. ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि आषाढ़ महीना 5 जून से 3 जुलाई तक रहेगा. धार्मिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ माह में गुरु की उपासना सबसे फलदायी होती है. इस महीने में श्री हरि विष्णु की उपासना से भी संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है. इस महीने में जल देव की उपासना का भी महत्व है. कहा जाता है कि जल देव की उपासना करने से धन की प्राप्ति होती है. ऊर्जा के स्तर को संयमित रखने के लिए आषाढ़ के महीने में सूर्य की उपासना की जाती है. 

आषाढ़ मास के प्रमुख व्रत-त्योहारों में जगन्नाथ रथयात्रा है. इसी महीने देवशयनी एकादशी के दिन से श्री हरि विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं जिसके कारण अगले चार माह तक शुभ कार्यों को करने की मनाही है. इसे चतुर्मास के नाम से भी जाना जाता है. स्कंद पुराण के मुताबिक इस महीने में भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा करने से बीमारियां दूर होती हैं और उम्र भी बढ़ती है. आषाढ़ में रविवार और सप्तमी तिथि का व्रत रखने से मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. भविष्य पुराण में कहा गया है कि सूर्य को जल चढ़ाने से दुश्मनों पर जीत मिलती है. आपको बता दें कि आषाढ़ महीने में जहां प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है वहीं इसी माह में विष्णु जी चार महीने के लिए योग निद्रा अवस्था में चले जाते हैं. दरअसल, आषाढ़ में ही चतुर्मास भी शुरू हो रहा है, जो कि कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा. वहीं आषाढ़ माह में कई कामों की मनाही भी होती है. 

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि आषाढ़ महीना 5 जून से 3 जुलाई तक रहेगा. इस महीने उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा है. आषाढ़ के दौरान सूर्य अपने मित्र ग्रहों की राशि में रहता है. इससे सूर्य का शुभ प्रभाव और बढ़ जाता है. स्कंद पुराण के मुताबिक आषाढ़ महीने में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि इस महीने के देवता भगवान वामन ही हैं. इसलिए आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान वामन की विशेष पूजा और व्रत की परंपरा है. वामन पुराण के मुताबिक आषाढ़ महीने के दौरान भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. संतान सुख मिलता है, जाने-अनजाने में हुए पाप और शारीरिक परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं. आषाढ़ महीना धर्म-कर्म के अलावा सेहत के नजरिये से भी बहुत खास होता है. आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य चरक, सुश्रुत और वागभट्ट ने इस महीने को ऋतुओं का संधिकाल कहा है. यानी ये मौसम परिवर्तन का समय होता है. इस दौरान गर्मी खत्म होती है और बारिश की शुरुआत होती है. ज्योतिषीयों के मुताबिक आषाढ़ महीने में सूर्य मिथुन राशि में रहता है. इस कारण भी रोगों का संक्रमण बढ़ता है.

आषाढ़ मास:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि समाप्त होने के साथ आषाढ़ मास आरंभ हो जाएगा. आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 4 जून को सुबह 9:11 मिनट से आरंभ होकर 5 जून सुबह 6:39 मिनट से है. ऐसे में आषाढ़ मास का आरंभ 5 जून 2023 से हो रहा है. इसके साथ ही समापन गुरु पूर्णिमा को 3 जुलाई 2023 को हो जाएगा.

आषाढ़ मास का महत्व:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि  हिंदू धर्म में आषाढ़ मास विशेष माना जाता है. इस मास में भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि इनकी पूजा करने से व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलने के साथ-साथ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ मंत्रों का जाप करने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है. इसके साथ ही सुख-समृद्धि, धन-संपदा की प्राप्ति होती है. विष्णु जी की पूजा-अर्चना करने के लिए आषाढ़ का महीना काफी खास बताया गया है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, आषाढ़ के महीने में लक्ष्मी नारायण की पूजा करने से कई गुना पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. साथ ही अपार धन का लाभ होता है. इस महीने में पूजा पाठ के अलावा यज्ञ करवाना भी शुभ माना गया है. इसके अलावा आषाढ़ मास में सूर्य देव की उपासना करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. 

चार्तुमास होता है आरंभ:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास से ही चातुर्मास आरंभ हो जाता है, जो शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है. इस साल अधिक मास होने के कारण चार्तुमास पूरे 5 माह को होगा. ऐसे में किसी भी मांगलिक और शुभ काम को करने की मनाही होती है. इस दौरान सिर्फ तप, तप और ध्यान करना शुभ माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास से कार्तिक मास तक 4 महीनों को चातुर्मास कहते हैं. माना जाता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु जी क्षीर सागर की अनन्त शैया पर शयन करते हैं. इसके साथ ही इस दौरान सभी मांगलिक कार्यों सहित शादि-विवाह के कार्यों पर भी रोक लग जाती है. इस साल 2023 में 29 जून 2023 से चातुर्मास शुरु होंगे और 23 नवंबर 2023 को समाप्त होंगे.

श्रीराम ने की थी सूर्य पूजा:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि स्कंद और पद्म पुराण के अनुसार सूर्य को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है. उन्हें भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाला भी कहा जाता है. इसलिए आषाढ़ महीने में सूर्यदेव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य मिलता है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार युद्ध के लिए लंका जाने से पहले भगवान श्रीराम ने भी सूर्य को जल चढ़ाकर पूजा की थी. इससे उन्हें रावण पर जीत हासिल करने में मदद मिली. आषाढ़ महीने में सूर्य को जल चढ़ाने से सम्मान, सफलता और तरक्की मिलती है. दुश्मनों पर जीत के लिए भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.

सूर्य पूजा से बढ़ता है आत्मविश्वास:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सूर्य को जल चढ़ाने से आत्मविश्वास बढ़ता है. सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है. आषाढ़ महीने में सूर्योदय से पहले नहाकर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने के साथ ही पूजा करने से बीमारियां दूर होती हैं. भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को सूर्य पूजा का महत्व बताया है. श्रीकृष्ण ने कहा है कि सूर्य ही एक प्रत्यक्ष देवता हैं. यानी ऐसे भगवान हैं जिन्हें रोज देखा जा सकता है. श्रद्धा के साथ सूर्य पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सूर्य पूजा से कई ऋषियों को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ है.

सूर्य को देना चाहिए अर्घ्य:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सुबह सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करें. संभव नहीं हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहाएं. इसके बाद भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं. इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें और चावल, फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें. जल चढ़ाते समय सूर्य के वरूण रूप को प्रणाम करते हुए ऊं रवये नम: मंत्र का जाप करें. इस जाप के साथ शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना करना चाहिए. इस प्रकार जल चढ़ाने के बाद धूप, दीप से सूर्य देव का पूजन करें. सूर्य से संबंधित चीजें जैसे तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, लाल चंदन का दान करें. श्रद्धानुसार इन में से किसी भी चीज का दान किया जा सकता है. इस दिन सूर्यदेव की पूजा के बाद एक समय फलाहार करें.

शुरू होता है बारिश का मौसम:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि आषाढ़ महीने में गर्मी खत्म होने लगती है और ये बारिश का मौसम शुरू होता है. दो मौसमों के संधिकाल की वजह से इन दिनों बीमारियों का संक्रमण ज्यादा होने लगता है. साथ ही नमी की वजह से फंगस और इनडाइजेशन की समस्या भी बढ़ जाती है. इसी महीने में ही मलेरिया, डेंगू और वाइरल फीवर ज्यादा होते हैं. इसलिए खान-पान पर ध्यान देते हुए छोटे-छोटे बदलाव कर के ही बीमारियों से बचा जा सकता है.

बढ़ने लगते हैं फंगस रोग:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि आयुर्वेद के मुताबिक आषाढ़ महीने के दौरान फंगस रोग बढ़ने लगते हैं. जिससे बचने के लिए नीम, लौंग, दालचीनी, हल्दी और लहसुन का इस्तेमाल ज्यादा करना चाहिए. इनके साथ ही त्रिफला चूर्ण को गरम पानी के साथ लेना चाहिए और गिलोय भी खाना चाहिए. साथ ही इस महीने में टमाटर, अचार, दही और अन्य खट्टी चीजें खाने से बचना चाहिए.

 

मसालेदार खाने से परहेज:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि ऋतु परिवर्तन के इस काल में पानी से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं. ऐसे में इन दिनों पानी उबालकर पीना चाहिए. आषाढ़ में रसीले फलों का सेवन ज्यादा करना चाहिए. इन दिनों में आम और जामुन खाने चाहिए. हालांकि बेल से पहरेज करें. पाचन शक्ति सही रखने के लिए मसालेदार और तली भुनी चीजें कम खानी चाहिए. आषाढ़ महीने में सौंफ और हींग का सेवन करना फायदेमंद माना गया है. इस महीने में साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.

वामन रूप की पूजा और व्रत:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि आषाढ़ महीने के गुरुवार को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन व्रत और पूजा के बाद छोटे बच्चे को भगवान वामन का रूप मानकर भोजन करवाया जाता है और जरूरत की चीजों का दान भी किया जाता है. साथ ही इस महीने की दोनों एकादशी तिथियों पर भगवान वामन की पूजा के बाद अन्न और जल का दान किया जाता है.

वामन रूप में अवतार:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि सतयुग में असुर बलि ने देवताओं को पराजित करके स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था. इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के मदद मांगने पहुंचे. तब विष्णुजी ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया. इसके बाद एक दिन राजा बलि यज्ञ कर रहा था, तब वामनदेव बलि के पास गए और तीन पग धरती दान में मांगी. शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वामनदेव को तीन पग धरती दान में देने का वचन दे दिया. इसके बाद वामनदेव ने विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्गलोक नाप लिया. तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने वामन को खुद सिर पर पग रखने को कहा. वामनदेव ने जैसे ही बलि के सिर पर पैर रखा, वह पाताल लोक पहुंच गया. बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पाताललोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया.

क्या करना चाहिए और क्या नहीं:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि आषाढ़ में पड़ने वाली देशश्यनी एकादशी के दिन से देव सो जाते हैं, इसलिए इसके बाद से कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए. आषाढ़ मास में विष्णु जी की पूजा और मंत्रों का जाप करना अच्छा माना जाता है. इस महीने में बासी भोजन का सेवन भी नहीं करना चाहिए, इससे अशुभता आती है. आषाढ़ माह में जल की बर्बादी से बचना चाहिए. शास्त्रों में इसे शुभ संकेत नहीं माना गया है. आषाढ़ के महीने में स्नान-दान का भी खास महत्व बताया गया है. आषाढ़ में छाता, पानी से भरा घड़ा, खरबूजा, तरबूज, नमक और आंवले का दान करना फलदायी होता है. आषाढ़ के महीने में सूर्यदेव की उपासना करनी चाहिए.