नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने के मामले से जुड़ी एक याचिका पर याचिकाकर्ता को यह जानकारी हासिल करने के लिए कहा कि क्या उच्चतम न्यायालय में भी इस मुद्दे पर कोई मामला लंबित है ? अधिवक्ता रोहित दांद्रियाल ने मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ के समक्ष अपनी याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए पेश किया. इस पर पीठ ने इसी प्रकार के लंबित मामले पर जानकारी हासिल करने के बाद उसके समक्ष आने के निर्देश दिए.
पीठ ने कहा कि अगर इसी समस्या पर उच्चतम न्यायालय में एक याचिका है तो क्या उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय, दोनों को इसे देखना चाहिए? इस पर जानकारी लीजिए और उसके बाद आप इसका जिक्र कर सकते है. पहले पता कीजिए अधिवक्ता ने अपनी याचिका में जोशीमठ में जमीन धंसने के मुद्दे की जांच के वास्ते सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अगुवाई में समिति गठित करने के लिए केन्द्र सरकार को निर्देश देने तथा प्रभावित परिवारों के पुनर्वास की अपील की है. बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब सहित कुछ तीर्थ स्थलों तथा अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग स्थल औली का प्रवेश द्वार कहलाने वाला जोशीमठ ‘जमीन धंसने’ की समस्या का सामना कर रहा है और यहां जगह जगह मकानों, सड़कों आदि में दरारें नजर आ रही हैं. याचिका में जोशीमठ में रहने वाले 3000 से अधिक लोगों की समस्याओं को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि लगातार भूमि धंसने के कारण कम से कम 570 घरों में दरारें आ गई हैं.
याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि पिछले वर्षों के दौरान जोशीमठ शहर में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तथा ऊर्जा, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा की गई निर्माण गतिविधियों ने वर्तमान संकट को बढ़ाया है और यहां के निवासियों के मौलिक अधिकारों का "उल्लंघन" किया है. याचिका में कहा गया है, "प्रतिवादी संख्या 1 (सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय) ने उत्तराखंड में चार-धाम (केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री) के लिए संपर्क सुधार कार्यक्रम के लिए 12,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है." आगे याचिका में कहा गया है कि एनटीपीसी के माध्यम से विद्युत मंत्रालय ने 2976.5 करोड़ रुपये का निवेश कर 2013 में तपोवन विष्णुगढ़ बिजली संयत्र का निर्माण शुरू किया. 520 मेगावाट बिजली वाला यह संयंत्र उत्तराखंड के चमोली जिले में धौलीगंगा नदी पर निर्माणाधीन है. सोर्स- भाषा