Didwana: साल दर साल सिमट रहा डीडवाना का पशु मेला, नागौरी बैलों के लिए मशहूर पशु मेले पर संकट के बादल

डीडवाना: देशभर में नागौरी नस्ल के बैलों के लिए मशहूर डीडवाना के पशु मेले पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. पिछले कुछ सालों में इस मेले में पशुओं की आवक कम हो गई थी उसके बाद लगातार 2 सालों तक कोविड के कारण मेला आयोजित नहीं हो सका और पिछले साल लंबी बीमारी के कारण फिर से पशु मेला नहीं भरा गया. इन कारणों के अलावा भी कई ऐसे कारण है, जिससे इन परम्परागत पशु मेलों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. ऐसे में हमने इन पशु मेलों के सिमटने का कारण जाना, 

राजस्थानी परम्परा में पशु मेले एक खास पहचान रखते हैं. इसलिए राजस्थान में सदियों से इंसानों और बेजुबान जानवरों का यह रिश्ता कायम रहा है. डीडवाना का पशु मेला भी राजस्थान के पशुपालन की पारम्परिक पहचान रहा है. इस मेले में कभी नागौरी नस्ल के बैलों की खरीद के लिए ऊंची-ऊंची बोलियां लगती थी, तो कभी मरूस्थल की रेतीली जमीन के जहाज ऊंट की खरीद-फरोख्त भी बड़े पैमाने पर हुआ करती थी. मेले में आने वाले लोक गीतों की धुनों पर थिरकते कलाकार अपनी कला से सबको रोमांचित करते थे तो पशुओं को सजाने संवारने की रंग-बिरंगी दुकानें भी सजती थी. किसी जमाने में डीडवाना पशु मेले में पशुओं की संख्या 60 से 70 हजार तक पहुंच जाती थी, जो अब सिमटकर केवल 4 हजार रह गई है. मगर अब यह मेला दिनों-दिन सिमटता जा रहा है. इस पशु मेले में अब वो बात नहीं रही. मेला अब उस ढंग से परवान नहीं चढ़ता, ना ही पशुओं की आमद और खरीद-फरोख्त होती है, जो आज से कुछ वर्षों पहले तक हुआ करती थी.  

नागौरी नस्ल के बछड़े देशभर में कृषि कार्य के लिए उत्तम माने जाते हैं
दरअसल अपनी मजबूत कद-काठी और बेहिसाब ताकत के कारण नागौरी नस्ल के बछड़े देशभर में कृषि कार्य के लिए उत्तम माने जाते है. दलदली जमीन पर फसलों के बीच हल चलाने में यह बैल लाभकारी होते हैं. इसके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में नस्ल सुधार के लिए भी इनकी खरीद की जाती है. इसलिए इस मेले में नागौर जिले के पशुपालक नागौरी नस्ल के बैलों के साथ-साथ अन्य मवेशी बेचने के लिए आते है. नागौरी बैलों को खरीदने के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रदेशों से खरीददार आते हैं. मगर 1996 में सरकार ने नागौरी नस्ल के बछड़ों को राज्य से बाहर ले जाने पर रोक लगा दी थी, जिसके कारण इन मेलों में नागौरी बछड़ों की खरीद में भारी कमी आई. रही सही कसर गौ रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा ने पुुरी कर दी. अब हिंसा के डर सेेे पशु व्यापारी भी मेले में आने से कतराने लगे हैं. अब हालात यह है कि पशुपालक चाहकर भी नागौरी नस्ल के बैलों को खरीद नहीं पाते. उन्हें यह डर रहता है कि वे बैलों व बछड़ों को खरीदकर ले भी जाएं, तो भी कथित गौरक्षक उनको परेशान करेंगे और उनके साथ मारपीट करेंगे. 

पहले पशुपालन किसानों के लिए फायदे का सौदा था 
कुछ समय पहले तक किसानों के लिए पशुपालन व्यवसाय फायदे का सौदा था, क्योंकि कृषि व पशुपालन परस्पर रूप से आपस में जुड़े हुए हैं. यही नहीं फसल कम होने की स्थिति में किसान अपने मवेशियों को बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर लेते थे, मगर अब मवेशियों की बिक्री में आई भारी कमी के कारण किसान पशुपालन के व्यवसाय से दूर हो रहे हैं. अब उनके लिए मवेशियों को रखना और उनके लिए चारे का इंतेजाम करना भी भारी पड़ रहा है. ऐसे में कई पशुपालक अनुपयोगी व बूढ़े होने वाले मवेशियों को सडक़ों पर खुला छोड़ने को मजबूर हैं. 

यह पशु मेला आज भी पारम्परिक परम्पराओ को निभाता है
डीडवाना का यह पशु मेला आज भी पारम्परिक परम्पराओ को निभाते हुए सांस्कृतिक धरोहर को कायम रखे हुए है. ऐसे में सरकार को ऐसे प्रयास करने चाहिए कि पशुपालन को बढ़ावा मिले. साथ ही मेले में आने वाले पशु व्यापारियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो, ऐसा करने से ही पशु व्यापारी ऐसे मेलो की ओर फिर से आकर्षित होंगे.