रिपोर्टर- दिनेश डांगी
जयपुरः लोकसभा चुनाव में जुटी कांग्रेस के लिए इस बार फंड मैनेजमेंट भी एक बड़ी समस्या होगी. लोकसभा चुनाव के संभावित मजबूत प्रत्याशियों ने फंड डिमांड की शर्त पहले ही आला नेताओं के समक्ष रख दी है. फंडिंग अरेजमेंट अगर नहीं हुआ तो फिर मजबूरन पार्टी को कमजोर उम्मीदवारों पर दांव खेलना पड़ सकता है. पार्टी जिनको चुनाव लड़वाने के लिए संपर्क कर रही है उनका पहला ही सवाल आर्थिक मदद देने का होता है.
लोकसभा चुनाव सिर पर है. कभी भी चुनाव की रणभेरी बज सकती है. लेकिन कांग्रेस पार्टी अब भी कईं मल्टीपल समस्याओं से जूझ रही है. प्रत्याशी चयन में जुटी कांग्रेस के लिए इस बार फंडिंग मैनेजमेंट एक बड़ा चैलेंज साबित हो रहा है. क्योंकि पार्टी की सरकार महज तीन राज्यों में सिमट गई है और केन्द्र में भी सरकार नहीं बन रही. वहीं पार्टी को दानदाता भी नाममात्र का डोनेट कर रहे हैं. तंगहाली से संघर्ष कर रही पार्टी ने इसके लिए डोनेट फोर देश क्राउड फंडिंग का सहारा लिया. इतने में ही इनकम टैक्स द्वारा पार्टी के खाते सीज करने से हालात कोढ में खाज जैसे हो गए. पार्टी कोषाध्यक्ष अजय माकन ने यहां तक कह दिया कि खाते सीज करने से हमारे दफ्तर में तैनात कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ गए हैं.
राजस्थान में भी पार्टी को इस दिक्कत से दो चार होना पड़ रहा है. पार्टी ने जिन मजबूत संभावित प्रत्याशियों से संपर्क साधा तो उन्होंने क्लीयर कट यह बात कही कि वो चुनाव लड़ने के लिए तैयार है, लेकिन उनके पास चुनावी खर्च के लिए पैसा नहीं है. फंड देने की डिमांड करने वालों में बाकायदा कईं विधायक भी है जिन्हें पार्टी टिकट देने का मन बना चुकी है. हालांकि टॉप लीडरशिप उन्हें सब मदद का आश्वासन दे रहे हैं पर नेताजी भरोसा नहीं कर रहे.
कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान विधानसभा में प्रत्याशियों की 70-70 लाख रुपए की मदद की थी,पर उस वक्त सूबे में सरकार थी. लेकिन सत्ता बदलने से अब सारी चीजें बदल गई है. जानकारों के मुताबिक 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का खर्चा करोड़ो रुपए में है. अब देखना होगा कि कांग्रेस फंडिंग मैनजेमेंट की समस्या का कैसे समाधान करेगी.