जयपुर: अगहन यानी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी शुक्रवार 22 दिसंबर की सुबह 9.21 बजे से शुरू होगी. इसके बाद ये तिथि 23 दिसंबर की सुबह 7.41 पर खत्म हो जाएगी. दो दिन एकादशी तिथि होने से इसकी तारीख को लेकर पंचांग भेद हैं. कुछ पंचांग में 22 दिसंबर को और कुछ में 23 दिसंबर को एकादशी मनाने की सलाह दी गई है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि 23 दिसंबर को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि रहेगी, इस वजह से 23 को ये व्रत करना ज्यादा शुभ रहेगा. शास्त्रों की मान्यता है कि सूर्योदय के समय जो तिथि रहती है, वही पूरे दिन मान्य होती है. इसके अलावा अपने-अपने क्षेत्र के विद्वान और पंचांग द्वारा बताई गई तिथि पर भी वे व्रत किया जा सकता है. इसी तिथि पर गीता जयंती भी मनाई जाती है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि शनिवार 23 दिसंबर को सबसे खास एकादशियों में से एक मोक्षदा एकादशी है. इस बार पंचांग भेद की वजह से ये तिथि 22 दिसंबर को भी है. इस तिथि पर गीता जयंती मनाई जाती है. गीता एकमात्र ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाते हैं. द्वापर युग में अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसी वजह से इस तिथि को गीता जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है. व्रत-उपवास करने वाले लोगों के लिए एकादशी का महत्व काफी अधिक होता है. हर साल 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन जिस साल अधिकमास भी रहता है, उस साल एकादशी 26 हो जाती हैं, जैसे इस साल सावन मास में अधिक मास आया था.
मोक्षदा एकादशी:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि शुक्रवार 22 दिसंबर की सुबह 9.21 बजे से एकादशी तिथि शुरू होगी. ये तिथि 23 दिसंबर की सुबह 7.41 पर खत्म हो जाएगी. 23 तारीख को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि रहेगी, इस वजह से 23 को ही ये व्रत करना ज्यादा शुभ रहेगा. शास्त्रों की मान्यता है कि सूर्योदय के समय जो तिथि रहती है, वही पूरे दिन मान्य होती है
मोक्षदा एकादशी से जुड़ी खास बातें:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस एकादशी के व्रत-उपवास और धर्म-कर्म से व्रत करने वाले के पितरों को मोक्ष मिलता है. व्रत करने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा से सफलता और सुख-शांति मिलती है. शास्त्रों के मुताबिक, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सालभर की सभी एकादशियों के बारे में बताया था. मोक्षदा एकादशी पर गीता का पाठ करना चाहिए. अगर पूरी गीता का पाठ नहीं कर पा रहे हैं तो गीता के कुछ अध्यायों का पाठ कर सकते हैं.किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें. गायों को हरी घास खिलाएं. इस दिन किसी मंदिर में गीता ग्रंथ का दान भी कर सकते हैं.
ऐसे करें गीताजी का पूजन:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि गीता जयंती के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. इसके बाद भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण स्वरूप को प्रणाम करें. फिर गंगाजल का छिड़काव करके पूजा के स्थान को साफ करें. इसके बाद वहां चौक बनाकर और चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा और श्रीमद्भागवत गीता रखें. इसके बाद भगवान कृष्ण और श्रीमद् भागवत गीता को जल, अक्षत, पीले पुष्प, धूप-दीप नैवेद्य आदि अर्पित करें. इसके बाद गीता का पाठ जरूर करें.
गीता दान करने से मिलता है पुण्य:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि श्रीमद्भागवत गीता में ही इस बात का जिक्र है कि इस परम ज्ञान को दूसरो तक पहुंचाना चाहिए. ऐसा करने से पुण्य मिलता है. वहीं, कुछ ग्रंथों में भी कहा गया है कि ग्रंथ का दान महादानों में एक है. भगवान के मुख से निकले परम ज्ञान का दान करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं.
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी पर श्रीकृष्ण ने दिया था गीता का उपदेश:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि महाभारत युद्ध की शुरुआत में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. इसी वजह से इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच नहीं लिखा है, हर जगह श्री भगवान उवाच लिखा गया है. इसका अर्थ है श्री भगवान कहते हैं. गीता जयंती की तिथि को मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं.
सभी वेदों, उपनिषद और पुराणों का सार है गीता:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि श्रीमद् भागवत गीता में सभी वेद, उपनिषद और पुराणों का सार है. इस ग्रंथ का पाठ करने से और इसमें बताए गए सूत्रों को जीवन में उतारने से हमारी सभी समस्याएं खत्म हो सकती हैं. ग्रंथ में कर्म, भक्ति और ज्ञान मार्ग के बारे में बताया गया है. इस ग्रंथ के 18 अध्यायों में श्रीकृष्ण के उपदेश हैं. इन उपदेशों से हमारी सभी शंकाएं दूर होती हैं और हम जीवन में सफलता के साथ ही सुख-शांति भी हासिल कर सकते हैं.
जीने की कला सिखाती है गीता:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि गीता हमें जीने की कला सिखाती है. गीता का मूलमंत्र यह है कि हमें हर स्थिति में कर्म करते रहना है. कभी भी निष्काम न रहें, क्योंकि कर्म न करना भी एक कर्म ही है और हमें इसका भी फल जरूर मिलता है.