जयपुर: स्टेट मेगा हाइवे बनाने वाली कंपनी रिडकोर से टेंडर करवाकर टोल कलेक्शन के लिए मैन पावर के ठेके अपनी ही दूसरी कंपनियों को महंगे दामों पर दिए जा रहे हैं. टोल कलेक्शन की राशि अनुमान के मुताबिक नहीं मिलने से रिडकोर को घाटा उठाना पड़ रहा है. पूरे प्रकरण में आरोप है कि प्राइवेट कंपनी आईएलएंडएफएस ने करोड़ों रुपए का घाटा पहुंचाकर रिडकोर को बंद करने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.
दरअसल वित्तीय अनियमितताओं के कारण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीटीएल) ने वर्ष 2018 में ही रिडकोर से प्राइवेट कंपनी आईएलएंडएफएस का बोर्ड भंग कर दिया था. इसके बावजूद रिडकोर का मैनेजमेंट अनऑफिशियिली आईएलएंडएफएस के कर्ता-धर्ताओं के ही हाथ में रहा. वे लोग खुद के घर भरने में एवं रिडकोर को खोखला करने में अपनी पावर का पुरजोर इस्तेमाल कर रहे हैं. आरोप है कि रिडकोर ने हाईब्रिड इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) के लिए जनवरी, 2022 में 31 टोल प्लाजा के ई प्रक्योर माध्यम से पोर्टल पर ऑनलाइन टेंडर मांगे थे. इन 31 टोल प्लाजा को तीन भागों में बांटा गया. शर्तों के मुताबिक एक निविदादाता को केवल एक ही लॉट (भाग) दिया जा सकता था. इसके लिए ऐलसामेक्स मेंटीनेंस सर्विसेज समेत 7 फर्मों के टेंडर आए. तकनीकी निविदाओं की समीक्षा के बाद एक कंपनी को यह कहते हुए बाहर कर दिया गया कि कंपनी की रेपुटेशन नहीं है और रिडकोर के खिलाफ लिटिगेशन में लिप्त थी.
बाकी कंपनियों से नेगोसिएशन के बाद दोबारा सीलबंद लिफाफे में निविदाएं मांगी गईं. इससे पहले आई ऑनलाइन निविदाओं को कैंसल मानते हुए सीलबंद लिफाफे की निविदाओं को फ्रेश मानकर ऐलसामेक्स मैंटीनेंस सर्विसेज लिमिटेड (ईएमएसएल) को 11 करोड़ 27 लाख 73 हजार 339 का (लॉट थ्री) टेंडर अलॉट कर दिया. गौरतलब है कि ऐलसामेक्स ने दो लॉट में बिड किया था और दोनों ही लॉट में ऐलसामेक्स न्यूनतम बोलीदाता (L1) आया था. टेंडर डॉक्यूमेंट तैयार करने के लिए रिडकोर ने दो आईटी इंजीनियरों को नियुक्त किया. इन दोनों को अहमदाबाद में ऐलसामेक्स के गांधी नगर स्थित कार्यालय में बिठाया. इन्हें ऐलसामेक्स के ऑफिस में लगाने का कारण यह बताया गया के ये टोल मैनेजमेंट सिस्टम (टीएमएस) सीखेंगे. लेकिन, इसके पीछे की कहानी कुछ अलग ही थी. मतलब टेंडर दस्तावेज इस तरह तैयार करवाना था ताकि टेंडर ऐलसामेक्स को ही मिल सके. ऐलसामेक्स एवं रिडकोर के कर्मचारियों की ई-मेल चैक किए जाएं तो इस तथ्य की आसानी से पुष्टि हो सकती है.
इस तरह ऐलसामेक्स जिसने टेंडर दस्तावेज तैयार किया था, उसे टेंडर प्रक्रिया के हर कदम की जानकारी थी. यही नहीं, दूसरे बिडर के प्राइस क्वोटेशन तक का भी पता था. रोचक तथ्य यह है कि रिडकोर जून, 2022 से पहले प्राइवेट कंपनी के जरिए टोल कलेक्शन करवा रही थी. इसके तहत कंपनी रिडकोर को तयशुदा राशि जमा कराती थी. टोल कलेक्शन में अगर कोई नुकसान होता था तो संबंधित प्राइवेट कंपनी भुगतती थी. जबकि राजस्थान स्टेट रोड एंड ब्रिज कॉरपोरेशन (आरएसआरडीसी) खुद टोल कलेक्शन कर रही थी. रिडकोर को देखते हुए आरएसआरडीसी ने टोल कलेक्शन का काम प्राइवेट कंपनी को ठेके पर देने का फैसला कर लिया. जबकि रिडकोर के कर्ता-धर्ताओं ने प्राइवेट कंपनी के बजाय टोल कलेक्शन खुद करवाने का फैसला किया. इसके लिए मैन पावर सप्लाई के ठेके किए गए. इसका टेंडर आईएलएंडएफएस की कंपनी ऐलसामेक्स को दे दिया गया. रिडकोर बोर्ड ने मैन पावर आधारित टोल ऑपरेशन के लिए मैन पावर की दरें पहले से निर्धारित की हुई थी.
लेकिन, स्काईलार्क और ईएमएसएल को बड़ी हुई दरों पर ठेके देने के लिए प्रक्रिया को ही बदल दिया गया. रिडकोर बोर्ड फैसले (एसओपी) के मुताबिक 10 लाख रुपए से ज्यादा राशि काम के लिए ई प्रोक के जरिए ऑनलाइन टेंडर किया जाना जरूरी है. उधर, रिडकोर ने आईटीएनएल ऑपरेशन एंड मेंटीनेंस कमेटी को पहले से स्वीकृत दरों पर किसी को भी 5 करोड़ से ज्यादा के काम देने के लिए अधिकृत किया हुआ था. लेकिन, बिना ऑनलाइन टेंडर किए रिडकोर ने ऑफलाइन मोड पे स्काईलार्क और ईएमएसएल को बड़ी हुई दरों पर अलवर-सिकंदरा और अलवर-भिवाड़ी रोड का टोल कलेक्शन का ठेका दे दिया. इस मामले में रेडकोर के मनीष कहते हैं कि आरोपों में सच्चाई नहीं है लेकिन वह तमाम तथ्यों को लेकर ज्यादा बात भी नहीं करना चाहते. बेहतर होगा कि सरकार पूरे मामले की जांच कराएं ताकि मोटी राजस्व हानि से बचा जा सके और भ्रष्टाचार पर अंकुश भी लगे.