भारत की विकास गाथा को कमजोर करने वाले विमर्श का मुकाबला करने की जरूरत- जगदीप धनखड़

भारत की विकास गाथा को कमजोर करने वाले विमर्श का मुकाबला करने की जरूरत-  जगदीप धनखड़

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारत की विकास गाथा को कमजोर करने के उद्देश्य से ‘छेड़छाड़ कर तैयार विमर्श’ का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए सावधान रहने की जरूरत पर बुधवार को जोर दिया. उन्होंने ‘जानकारी दबाने’ को ‘हमला करने का दूसरा तरीका’ बताया और इसे बेअसर करने के लिए साहसिक और प्रभावी कदम उठाने का आह्वान किया. उन्होंने यह भी आगाह किया कि अगर लोग इस तरह की प्रवृत्ति के खिलाफ सतर्क नहीं रहते हैं तो सब कुछ बर्बाद हो सकता है. धनखड़ ने यहां अपने आधिकारिक निवास पर भारतीय सूचना सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों के एक समूह से कहा कि विश्व में भारत को अवसर और निवेश की भूमि के रूप में जाना जाता है, ‘‘लेकिन यह सब गड़बड़ हो सकता है, अगर हमारा सूचना तंत्र मजबूत नहीं हो.’’

उनकी टिप्पणी बीबीसी द्वारा हाल में 2002 के गुजरात दंगों और भारत पर दो-भाग के वृत्तचित्र के प्रसारण से शुरू हुई राजनीतिक बहस की पृष्ठभूमि में आई है. सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वृत्तचित्र तक पहुंच को अवरूद्ध कर दिया था. पिछले दो दिनों में, आयकर अधिकारियों ने कथित कर चोरी की जांच के तहत दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों में एक ‘‘सर्वे’’ अभियान चलाया. उपराष्ट्रपति ने किसी समाचार संस्था का नाम लिए बिना कहा कि पिछले एक दशक में एक वैश्विक समाचार घराने ने अपनी प्रतिष्ठा पाने के लिए एक विमर्श पेश किया था. उन्होंने कहा कि विमर्श यह था कि किसी के पास सामूहिक विनाश के हथियार थे और इसलिए, हमला सिर्फ मानवता को बचाने के लिए था. उन्होंने इराक युद्ध के परोक्ष संदर्भ में कहा, ‘‘चीजें हुईं, सामूहिक विनाश के कोई हथियार नहीं मिले. उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘अब, यदि भारत बढ़ रहा है, तो एक कथा को आगे बढ़ाने के लिए विमर्श तैयार किया जा रहा है...हमें सतर्क रहना होगा...गौर करें और आप पाएंगे कि साख मजबूत नहीं हैं. उन प्रतिष्ठाओं ने हाल के वर्षों में मानवता को विफल कर दिया है. उपराष्ट्रपति ने परिवीक्षाधीन अधिकारियों से लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के वास्तविक रक्षक बनने को कहा. 

उन्होंने कहा कि हमारे देश में विशेष रूप से तथाकथित बुद्धिजीवियों के बीच एक शातिर प्रवृत्ति बढ़ी है. बाहर से आने वाली कोई भी चीज पवित्र होती है, उन्नत होती है...हमें इस पर सवाल उठाना होगा. उन्होंने परिवीक्षाधीन अधिकारियों से कहा, ‘‘दोस्तों, इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती. यह अभिव्यक्ति (की स्वतंत्रता) नहीं है. यदि आप हमारे भारतीय संविधान पर को देखते हैं तो हर मौलिक अधिकार सशर्त है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब देश कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था, तब यह कहा जा रहा था कि ‘‘कोविड कहां है?’’ धनखड़ ने कहा, ‘‘यह देश के सामने मौजूद मुद्दों को दरकिनार करने का एक राजनीतिक उपकरण है. आपने इसका सामना किया है.’’ साथ ही उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने भारतीय टीकों की प्रभावकारिता पर सवाल उठाया, ‘‘वे कठघरे में हैं और हमारे टीकों ने हमारे लिए जादू किया है. उन्होंने युवा अधिकारियों से कहा, ‘‘हमारे पास अब देरी से प्रतिक्रिया व्यक्त करने की विलासिता नहीं है. सोर्स- भाषा