बीकानेर: हमेशा पर्यटकों की चहल-पहल से चहकने वाला जूनागढ़ रविवार को भारी भीड़ के बावजूद शांत था. गमगीन था. पर्यटकों को आज इस ऐतिहासिक परिसर में एंट्री नहीं थी क्योंकि बीकानेर के पूर्व राजघराने की आखिरी महारानी सुशीला कुमारी अब हमेशा के लिए पंच तत्व में विलीन हो गई . आम और ख़ास ने नम आँखों से विदाई दी तो दो पौत्री सिद्धि कुमारी और महिमा कुमारी ने मुखाग्नि दी .
कभी डूंगरपुर की राजकुमारी और फिर बीकानेर की महारानी बनी सुशीला कुमारी को आज विदाई का दिन था. हर कोई गम में डूबा हुआ था लेकिन राजपरिवार का सदस्य अंतिम यात्रा के दौरान भी गाजे-बाजे के साथ ही गढ़ से बाहर निकला. जिस ड्योढ़ी में कभी सुशीला कुमारी दुल्हन बनकर आई थी, आज उसी परिसर से उनकी पार्थिव देह बाहर आई . पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी की अंतिम यात्रा जूनागढ़ किले से सुबह शाही लवाजमे के साथ रवाना हुई. लवाजमे में घोड़े, ऊंट, बग्घी, बैंड शामिल. लवाजमा जूनागढ़ से गंगा थिएटर तक पहुंचा.. जिला कलेक्ट्रेट परिसर में पूर्व न्यास अध्यक्ष महावीर रांका की अगुवाई में पुष्प वर्षा की गई यहां से सुशीला कुमारी की पार्थिव देह वाहन के माध्यम से देवी कुंड सागर ले जाई गई.
देवीकुंड सागर में राजपरिवार के पैतृक श्मशान गृह में पारम्परिक रस्मों के साथ अंतिम संस्कार हुआ. इस दौरान शिक्षा मंत्री डॉ बुलाकीदास कल्ला, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ,नोखा विधायक बिहारी बिश्नोई, पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी,पूर्व महापौर नारायण चौपड़ा, डॉ. आर पी कोठारी, उप महापौर राजेन्द्र पंवार, अखिलेश प्रताप सिंह सहित अन्य उपस्थित रहे. राजमाता सुशीला कुमारी के निधन पर शनिवार को जूनागढ़ किले के मुख्य द्वार पर लहरा रहे बीकानेर रियासतकालीन ध्वज को आधा झुका दिया गया. वहीं दो दिन के लिए जूनागढ़ किले को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है.
पूर्व महारानी सुशीला कुमारी की पार्थिव देह को उनकी पोतियों ने मुखाग्नि दी विधायक सिद्धि कुमारी और महिमा कुमारी मुखाग्नि देते वक़्त गमगीन नज़र आयी हालाँकि सुशीला कंवर वयोवृद्ध थी लेकिन बीकानेर के लिए राज परिवार में जो कुछ किया ख़ास तौर पर सुशीला कंवर जिस तरह से बीकानेर वासियों से जुड़ी रही निश्चित तौर पर धार वहाँ मौजूद हर आम और ख़ास की ज़ुबाँ पर इस राजधानी द्वारा बीकानेर के लिए किए गए कामों की चर्चा थी साथ ही सुशीला कंवर की जाने का दुख भी.