हिरोशिमा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए शनिवार को कहा कि इन समस्याओं के समाधान के लिए चर्चा का दायरा बढ़ाने और व्यवहार में बदलाव लाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री मोदी ने यहां जी7 सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं. हमें धरती की पुकार सुननी है. हमें खुद को बदलना होगा, और उसके अनुसार अपना व्यवहार बदलना होगा.
मोदी ने कहा कि इन चुनौतियों का सामना करने में एक बाधा यह है कि लोग जलवायु परिवर्तन को केवल ऊर्जा के नजरिए से देखते हैं. उन्होंने कहा कि चर्चा का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत ने पूरी दुनिया के लिए मिशन लाइफ, ‘इंटरनेशनल सोलर एलायंस, ‘कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर’, ‘मिशन हाइड्रोजन’, ‘बायोफ्यूल एलायंस’, ‘बिग कैट एलायंस’ जैसे संस्थागत समाधान तैयार किए हैं. मोदी ने कहा कि हम 2070 तक नेट जीरो के अपने लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. हमारे विशाल रेलवे नेटवर्क ने 2030 तक नेट जीरो तक पहुंचने का फैसला किया है. वर्तमान में, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता लगभग 175 गीगावाट है. 2030 तक यह 500 गीगावाट तक पहुंच जाएगी.
भारतीय सभ्यता में धरती को मां का दर्जा दिए जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हम अपने सभी प्रयासों को धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी मानते हैं. उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रतिबद्धताएं भारत की विकास यात्रा में बाधा नहीं, बल्कि उत्प्रेरक हैं.मोदी ने कहा कि जलवायु कार्रवाई की दिशा में आगे बढ़ते हुए देशों को हरित और स्वच्छ प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को लचीला बनाना होगा.उन्होंने कहा कि अगर हम जरूरतमंद देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किफायती वित्त पोषण नहीं देते हैं, तो हमारी चर्चा केवल चर्चा बनकर रह जाएगी. जमीन पर कोई बदलाव नहीं होगा.प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं और अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. उन्होंने कहा कि सदियों से जिम्मेदारी का यह भाव हमारी धमनियों में बहता रहा है. भारत सभी के साथ मिलकर योगदान देने के लिए पूरी तरह तैयार है. सोर्स भाषा