नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2007 में हुई हत्या के एक मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि न्यायेतर स्वीकारोक्ति सबूत का एक कमजोर हिस्सा है, जिसकी पुष्टि के लिए पुख्ता साक्ष्य जरूरी है.
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि यह सिद्ध किया जाना आवश्यक है कि न्यायेतर इकबालिया बयान पूरी तरह से स्वैच्छिक और सच्चा है. पीठ ने कहा कि न्यायेतर स्वीकारोक्ति सबूत का एक कमजोर हिस्सा है, खासतौर पर तब, जब सुनवाई के दौरान सामने वाला इससे मुकर जाए. इसकी पुष्टि के लिए पुख्ता सबूत जरूरी है और यह भी स्थापित किया जाना चाहिए कि यह पूरी तरह से स्वैच्छिक और सच्चा था.”
उसने कहा, “उपरोक्त बहस के मद्देनजर, हमें न्यायेतर स्वीकारोक्ति का समर्थन करने के लिए कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं मिला, बल्कि अभियोजन पक्ष द्वारा दिया गया साक्ष्य उससे असंगत है. शीर्ष अदालत हत्या के आरोपी इंद्रजीत दास की त्रिपुरा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सोर्स- भाषा