नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक कल्याण कानून के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए कि एक महीने के भीतर मामलों में फैसला करने के प्रावधान को जहां तक व्यावहारिक हो सही मायने में लागू किया जाए.
न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला ने कहा कि ‘माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007’ यह सुनिश्चित करने के लिए अधिनियमित किया गया था कि वरिष्ठ नागरिक और उम्रदराज माता-पिता अनावश्यक रूप से अपने आश्रय से वंचित न हों और इसकी धारा 16 (6) इसलिए अपीलीय न्यायाधिकरण यानी संभागीय आयुक्त पर दायित्व डालती है कि वह अपील प्राप्त होने के एक माह के भीतर अपना आदेश लिखित रूप में सुनाएंगे. अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा कि यह समझना बहुत मुश्किल नहीं कि विधायिका ने ऐसा प्रावधान क्यों शामिल किया. अधिनियम की प्रस्तावना से ही यह स्पष्ट है कि उक्त अधिनियम केवल यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से है कि वरिष्ठ नागरिक और माता-पिता, जो बढ़ती उम्र और जीवन के संवेदनशील चरण में हैं, अनावश्यक रूप से उनके आश्रय से वंचित नहीं रहें. उच्च न्यायालय ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि अधिनियम की धारा 16 की उप-धारा 6 अपीलीय न्यायाधिकरण को अपील की प्राप्ति के एक महीने के भीतर लिखित में अपना आदेश सुनाने का उत्तरदायित्व देती है.
अपीलीय न्यायाधिकरण को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए कि उक्त प्रावधान जहां तक हो सके व्यावहारिक रूप से इसकी वास्तविक भावना में लागू हो. वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने संबंधित उपमंडलीय मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी अपील के शीघ्र निस्तारण के लिए अदालत से निर्देश मांगा है. अदालत ने याचिका को निस्तारित करते हुए अपीलीय न्यायाधिकरण से कहा कि वह अपील पर यथाशीघ्र सुनवाई करे और अधिनियम की धारा 16 के प्रावधानों के तहत इसका निस्तारण करे और मुमकिन हो तो अगले तीन महीने में ऐसा करे. सोर्स- भाषा