जयपुर: लोक आस्था का महापर्व छठ दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है. छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ शुरू हो जाती है. इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्तूबर से हो रही है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्ध्य और चौथे दिन उषा अर्घ्य देते हुए समापन होता है. छठ महापर्व सूर्य उपासना का सबसे बड़ा त्योहार होता है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल पष्ठी तिथि पर छठ पूजा मनाई जाती है. इस पर्व में भगवान सूर्य के साथ छठी माई की भी पूजा-उपासना विधि-विधान के साथ की जाती है. छठी माई सूर्यदेव की बहन है. धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ का त्योहार व्रत संतान प्राप्ति करने की कामना, कुशलता, सुख-समृद्धि और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है. चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा-व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय शुक्रवार 28 अक्टूबर से हो रही है. 29 अक्टूबर को खरना है. 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, उसके अगले दिन सुबह यानी 31 अक्टूबर को उदयगामी यानी उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि प्रत्येक वर्ष लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है. छठ के पर्व को आस्था का महापर्व माना गया है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर छठी मैया की पूजा की जाती है. मान्यता है कि छठ पूजा करने वाले भक्तों को सुख-समृद्धि, धन, वैभव, यश और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. कहते हैं जो महिलाएं यह व्रत रखती हैं उनकी संतानों को दीर्घायु और सुख समृद्धि प्राप्त होती है. इसके साथ यह व्रत करने से निरोगी जीवन का आशीर्वाद भी मिलता है. छठ पर्व भारत के कुछ कठिन पर्वों में से एक है जो 4 दिनों तक चलता है. इस पर्व में 36 घंटे निर्जला व्रत रख सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. यह व्रत मनोकामना पूर्ति के लिए भी किया जाता है. महिलाओं के साथ पुरुष भी यह व्रत करते हैं. कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय होता है, इसके बाद दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है.
शुक्रवार 28 अक्टूबर-
नहाय खाय से हो जाती है, छठ पूजा की शुरुआत:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष कि चतुर्थी तिथि को छठ महापर्व कि पहली परंपरा का निर्वाह किया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाए-खाए के रूप में मनाया जाता है. इस परंपरा के अनुसार सबसे पहले घर की सफाई कर उसे शुद्ध किया जाता है. इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं. घर के अन्य सभी सदस्य व्रती सदस्यों के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं. नियम के अनुसार, इस दिन भात, लौकी की सब्जी और दाल ग्रहण किया जाता है और खाने में सिर्फ सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है. इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष एक समय का भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं. इस दिन से घर में शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, और लहसुन-प्याज़ बनाने की मनाही हो जाती है.
शनिवार 29 अक्टूबर-
खरना-दूसरे दिन रखते हैं, पूरे दिन का उपवास:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि छठ पूजा में दूसरे दिन को “खरना” के नाम से जाना जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखती हैं. खरना का मतलब होता है, शुद्धिकरण. खरना के दिन शाम होने पर गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर व्रती महिलाएं पूजा करने के बाद अपने दिन भर का उपवास खोलती हैं. फिर इस प्रसाद को सभी में बाँट दिया जाता है. इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है. इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है.
रविवार 30 अक्टूबर-
संध्या अर्घ्य में करते है, सूर्य की उपासना:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है, जिसकी वजह से इसे “संध्या अर्ध्य“ कहा जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं भोर में सूर्य निकलने से पहले रात को रखा मिश्री-पानी पीती हैं. उसके बाद अगले दिन अंतिम अर्घ्य देने के बाद ही पानी पीना होता है. संध्या अर्घ्य के दिन विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं, और उन्हें दूध और जल से अर्घ्य दिया जाता है. इस साल 31 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य दिया जायेगा.
सोमवार 31 अक्टूबर-
उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ संपन्न होती है छठ पूजा:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है. व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरुष छठी मईया और सूर्य देव से अपने संतान और पूरे परिवार की सुख-शांति और उन पर अपनी कृपा बनाये रखने की प्रार्थना करती हैं. इसके बाद व्रती घर के देवी-देवता की पूजा करते हैं, और फिर प्रसाद को खाकर व्रत का समापन करते हैं.
छठ पूजा की तिथि:-
कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि प्रारंभ: 30 अक्टूबर 2022, सुबह 05:49
कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि समाप्त: 31 अक्टूबर 2022, सुबह 03:27
सूर्यास्त का समय: सायं 5:38 पर
छठ पूजा शुभ मुहूर्त:-
छठ पूजा पहला दिन:-
नहाय-खाय शुक्रवार 28 अक्टूबर
सूर्योदय: प्रात: 06:30 मिनट पर
सूर्योस्त: शम 05:39 मिनट पर
शोभन योग: प्रात:काल से देर रात 01:30 मिनट
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 06:30 मिनट से सुबह 10:42 मिनट तक
रवि योग: सुबह 10:42 मिनट से अगली सुबह 06:31 मिनट तक
छठ पूजा दूसरा दिन:-
खरना शनिवार 29 अक्टूबर
सूर्योदय: प्रात: 06:31 मिनट पर
सूर्योस्त: शाम 05:38 मिनट पर
रवि योग: सुबह 06:31 मिनट से सुबह 09:06 मिनट तक
सुकर्मा योग: रात 10:23 मिनट से अगली सुबह तक
छठ पूजा तीसरा दिन:-
छठ पूजा का संध्या अर्घ्य रविवार 30 अक्टूबर,
सूर्यास्त: शाम 05:38 मिनट पर
सुकर्मा योग: प्रात: काल से शाम 07:16 मिनट तक
धृति योग: शाम 07:16 मिनट से अगली सुबह तक
रवि योग: सुबह 07:26 बजे से अगले दिन सुबह 05:48 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 06:31 बजे से सुबह 07:26 बजे तक
छठ पूजा चौथा दिन:-
छठ पूजा का प्रात: अर्घ्य सोमवार 31 अक्टूबर
सूर्योदय: प्रात: 06:32 मिनट पर
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रात: 05:48 बजे से सुबह 06:32 बजे तक
त्रिपुष्कर योग: प्रात: 05:48 बजे से सुबह 06:32 बजे तक
पौराणिक कथा:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि छठ पर्व पर छठी माता की पूजा की जाती है, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है. एक कथा के अनुसार प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी. इस वजह से वे दुखी रहते थे. महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया. इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुखी थे. तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं. मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की. ऐसी मान्यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया.
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है. यही एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है. हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है. वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है. वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है. सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है. सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है. छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम.
खगोलीय और ज्योतिषीय महत्व:
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है. इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है. इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है. छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाएं, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है.