डूंगरपुर: शहर में बांसड़ समाज के 100 से ज्यादा परिवार दशहरे (Dussehra) पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाने के लिए राजस्थान ही नहीं गुजरात और मध्यप्रदेश में भी बहुत प्रसिद्ध है. लेकिन पहले कोरोना के दो साल और अब महंगाई की मार रावण परिवार के पुतलों और बांसड समाज पर पड़ रही है. बांस से लेकर सभी सामान की दुगुनी से तिगुनी रेट होने के चलते रावण परिवार के पुतलों की डिमांड घट गई है. यही कारण है की इस बार रावण परिवार के पुतले निर्माण के ऑर्डर कम मिले है.
डूंगरपुर (Dungarpur) का बांसड़ समाज बांस की कारीगरी को लेकर देशभर में प्रसिद्ध है. यही वजह है की दशहरे के दिन इनके हाथों से बने रावण परिवार के पुतलों का राजस्थान ही नहीं गुजरात और एमपी तक आतिशी दहन होता है. समाज के 100 से ज्यादा परिवार पुतले बनाने के काम में जुटते है जो दशहरे पर 50 से ज्यादा पुतले बनाकर 20 से 30 लाख की कमाई करते हैं. लेकिन कोरोना के 2 साल बाद इस बार रावण परिवार के पुतलों पर भी महंगाई का असर देखने को मिल रहा है.
रावण के पुतले बनाने के लिए खासकर बांस, कागज की रद्दी, सुतली जैसे सामान का इस्तेमाल होता है. लेकिन बांस से लेकर सभी सामान की दुगुनी से तिगुनी रेट हो गई है. ऐसे में पहले 45 फीट रावण का एक पुतला 30 हजार रुपए में तैयार हो जाता था. लेकिन इस बार महंगाई की वजह से यही पुतला 40 से 45 हजार में तैयार हो रहा है. तीनों पुतलों को बनाने में 80 हजार से ज्यादा खर्च होते हैं. महंगाई की वजह से रावण परिवार के पुतलों की डिमांड भी घट गई है.
पहले छोटे-छोटे गांवों से भी 20 से 25 फीट के रावण के पुतले बनने के ऑर्डर मिलते थे. लेकिन इस बार ये ऑर्डर भी बहुत ही कम मिले है. डूंगरपुर शहर के बांसड समाज के लोगों का कहना है कि पहले आबूरोड, सिरोही, मेघरज, हिम्मतनगर , मोडासा, हलोल, कलोल, सीमलवाड़ा, सागवाड़ा, धार जबुआ में जलने वाले रावण के पुतले 40 फीट से बड़े बनते थे. उनके बड़े ऑर्डर ही आते थे. लेकिन महंगाई की वजह से कुछ ऑर्डर ही 45 फीट के मिले हैं. बाकी पुतलों का ऑर्डर 35 फीट तक का हो गया है. ऐसे में महंगाई की मार रावण परिवार के पुतलों पर भी पड़ता दिख रहा है.
पुतले बनाने में पूरा परिवार करता है मदद:
बांस की कारीगरी में बांसड समाज के इन परिवारों को महारत हासिल है. यह परिवार बांस के टोपले, झूले, ट्री गार्ड, रोटी बॉक्स समेत ऐसी कई चीजे बनाते जिससे खासी डिमांड बाजार में रहती है. वहीं जब दशहरे पर रावण परिवार के पुतले बनाने का ऑर्डर मिलता है तो पूरा परिवार ही जुट जाता है. नाथू भाई बताते हैं की दशहरे से 15-20 दिन पहले ही पुतले बनाने का काम शुरू हो जाता है.
इस काम में पुरुष के साथ ही घर की महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग तक बांस की कारीगरी करते हैं. बांस से पुतलों का ढांचा तैयार करने के बाद उन पर रद्दी पेपर के साथ ही रंग-बिरंगे कागज लगाकर आकर्षक रूप दिया जाता है. बहराल बुराई पर अच्छाई के प्रतीक माने जाने वाले दशहरे पर्व पर कुछ ही दिन रह गए है. लेकिन प्रतिवर्ष दशहरे पर रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतले बनाकर सालभर तक अपने परिवार का पेट पालने वाले इन गरीब परिवारो पर महंगाई का असर पड़ा है.