Jhalawar: गागरोन का जल दुर्ग बदहाली का शिकार, 2013 में विश्व धरोहर में किया था शामिल

झालावाड़: गागरोन का जल दुर्ग पूरे भारत में ही नहीं विश्व में मशहूर है. अपने नाम के लिए पूरे भारत में 2 ही जल दुर्ग है एक दक्षिण में और दूसरा राजस्थान में. झालावाड़ गागरोन (Gagron) में यह जल दुर्ग बिना नींव के बना है. इसके तीनों तरफ नदियां बह रही है जो बारिश में लोगों को आकर्षित करती है. जिसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता है. जल दुर्ग के 1 तरफ खाई है इसलिए इसको मिनी लंका भी कहते हैं.

खास बात यह भी है कि इसके आस-पास पहाड़ों की ऊंचाई के समान इसकी ऊंचाई है. इसलिए यहां आक्रमण करने वालों को यह पता नहीं होता था कि किला कहां हैं. यहां 2 संतों के आवास है. यहां के तोते बहुत प्रसिद्ध थे. इसलिए यूनिस्को की टीम जब 2010 में यहां आई तब 21 जून 2013 में जल दुर्ग को विश्व धरोहर में शामिल कर लिया. तब से यहां पर्यटन इजाफा हुआ कारोबार भी बढ़ने लगा. लेकिन कुछ ही समय बाद यह भ्रम साबित हुआ पर्यटन को उम्मीदों के पंख लगेंगे रोजगार बढ़ेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जल दुर्ग पर करोड़ों खर्च करने के बाद भी गागरोन का जल दुर्ग (Gagron Fort) बदहाल स्थिति में है. पर्यटकों को यहां पर कोई सुविधा नहीं मिलती बल्कि मायूसी हाथ लगती है.

जल दुर्ग कई से जगह क्षतिग्रस्त हो रहा है. लाइट बन्द है, किले में घास कटीली झाड़ीयां उगी है. पर्यटकों के लिए खाने-पीने के लिए कोई माकूल व्यवस्था नहीं है. साथ ही सबसे बड़ी बात पर्यटन के लिए किले तक पहुँचने का मार्ग भी ठीक नहीं है. जगह-जगह पुलिया क्षतिग्रस्त है. खास बात यह है कि बारिश के दिनों में जलदुर्ग पर्यटक के लिए खास आकर्षण का केंद्र होता है. क्योंकि इसके सभी तरफ नदियां बहती है और ऐसे में बारिश में पुलिया पर पानी आ जाने के कारण पर्यटक यहां पर नहीं पहुंच पाते. दूर से ही किले को देखकर पर्यटन को बड़ा झटका लगता है. जो चिंता का विषय है.

अगर सरकार और पर्यटन विभाग खासतौर पर से ध्यान दें तो पर्यटन के क्षेत्र में यह कई ऊंचाइयां छू सकता है. लेकिन यहां पर मूलभूत सुविधाएं मिले साथ ही किले की उचित देखभाल भी हो. 11वीं शताब्दी में इसको डॉड राजपूतों ने बनाया था. इसके बाद 300 साल तक इस पर खिची राजाों का कब्जा रहा. इसके बाद मुगल मराठे हाड़ा राजपूत आए. अग्रेजों के समय यह गुमनामी में चला गया. यहा सम्राट अकबर, शेरशाह सूरी, ओरंगजेब, महारणा कुंभा, महारणा सांगा सभी यहां आए. इस पर कब्जा करने का मतलब मेवाड़, मालवा, हाड़ोती और गुजरात को अपने कब्जे में लिया जा सकता था.

गागरोन का दुर्ग तीनों ओर दोनों नदियों के अथाह जल और पश्चिम की ओर लगभग 50 फिट गहरी और 25 फिट चौड़ी खाई को चट्टान से काटकर बनाया गया है. इसके परकोटे को विशाल चट्टानों से बनाया गया है. यह परकोटे भी इतना ऊंचा है कि कोई भी इसको लांघ नहीं सकता. इस दुर्ग में ऐसी व्यवस्था थी कि युद्ध काल के समय यहां अस्त्र-शस्त्र को इकठ्ठा किया जा सकता था. इसका प्रयोग भी आसानी से दुश्मन पर किया जा सकता था. परकोटे की ऊंचाई 4 से 5 मीटर और मोटाई 4.46 मीटर है. परकोटे पर गोलाकार बुर्ज भी है. इस किले में कई इमारतें, स्थल और भवन भी है. 

बरसात के समय जल दुर्ग आकर्षण का केंद्र: 

इनका निर्माण डॉड, खिची, गुजराती, मुगल, हाड़ा और झाला वंश के प्रमुख बादशाहों द्वारा कराया गया है. यह किला बरसात के समय में देखने का मजा ही अलग है. जहां चारों ओर नदियों की कलकलाहट से इसके बहते पानी का नजारा इस दुर्ग को चार चाँद लगा देता है. इस दुर्ग में मदनमोहन मंदिर, राम मंदिर और घाट भी मौजूद है. कई गणेश पोल, लाल दरवाजा, जौहर कुंड, कटारमाल की छत्री, दरी खाना, जनाना महल, अचल दास का महल और मधुसूदन मंदिर यह आज भी मौजूद है. यहां सूफी संत, मिट्ठे महावाली की दरगाह और पीपा धाम की साधना गुफा है जहां हमेशा सैलानियों का तांता लगा रहता है.