VIDEO: प्रदेश में रेजीडेंट्स खफा, पीड़ित मरीज हैरान-परेशान, "बॉण्ड" नीति के विरोध में कार्य बहिष्कार की राह पर रेजीडेंट्स, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर : "बॉण्ड" नीति के विरोध में आंदोलन की राह पर चल रहे रेजीडेंट्स ने प्रदेशभर में आज से दो घंटे कार्यबहिष्कार शुरू कर दिया दो दिन तक काली पट्टी बांधकर सांकेतिक विरोध करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई तो रेजीडे्ंटस ने आज सुबह 9 बजे से 11 बजे तक कार्यबहिष्कार किया. हालांकि, इसकी सूचना लगते ही सीनियर फैकल्टी ने एसएमएस ओपीडी में काम संभाला, लेकिन आईपीडी सेवाएं जरूरी प्रभावित हुई. आखिर क्यों रूठे है धरती के भगवान और अस्पतालों में मरीजों को क्या-क्या हुई दिक्कतें, 

धरती का भगवान कहे जाने वाले चिकित्सक एकबार फिर सरकार की नीतियों पर रूठे है. जी हां हम बात कर रहे है प्रदेशभर में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे रेजीडेंटस की जिन्होंने बॉन्ड नीति की विसंगति दूर करने, योग्यता के विपरित पदों पर रेजीडेंट्स की नियुक्ति को रोकने, सरकार के साथ पूर्व में हुए समझौते को अक्षरश : लागू करने समेत समेत विभिन्न मांगों को लेकर एकबार फिर आंदोलन का बिगुल बजा दिया है. दो दिन तक काली पट्टी बांधने के बाद जयपुर एसोसिएशन ऑफ रेजीडेंट्स डॉक्टर्स यानी जार्ड के आह्वान पर युवा डॉक्टरों ने आज से दो घंटे का कार्यबहिष्कार शुरू कर दिया.जिसका सीधा असर ओपीडी से लेकर आईपीडी में देखने को मिला. हालात ये रहे कि अस्पताल की ओपीडी में हजारों की तादात में मरीज घंटों तक परामर्श का इंतजार करते रहे. हालांकि, सीनियर डॉक्टर्स ने मोर्चा संभाला, लेकिन दो घंटे तक रेजीडेंट्स के सम्पूर्ण कार्यबहिष्कार से व्यवस्थाएं काफी प्रभावित हुई. आंदोलन को लेकर जार्ड प्रतिनिधियों ने कहा है कि यदि जल्द ही मांगों पर सुनवाई नहीं होती है तो वे आंदोलन को बड़ा रूप देंगे .

आइए आपको बताते है कि आखिर क्यों रूठे है रेजीडेंट्स

1. "बॉण्ड" नीति की विसंगति : रेजीडेंटस से पीजी में एडमिशन के वक्त बॉण्ड भरवाया गया कि उन्हें पांच साल तक सरकारी सिस्टम में सेवाएं देनी होगी अन्यथा 25 लाख रुपए जमा कराने होंगे...हालांकि,केन्द्र की गाइडलाइन के हिसाब से इसे दो साल किया गया है. रेजीडेंट्स का आरोप है कि वर्ष 2019 बैच का सेंशन मई 2022 में पूरा होना था, जो देरी से हुआ. इसके बाद बॉण्ड पॉलिसी के तहत उन्हें पोस्टिंग देनी थी, वो भी नहीं दी गई. ऐसे में उनके चार से पांच महीने खराब हो गए है.

2. "डॉक्यूमेंट" रोकने से आक्रोश : चिकित्सा शिक्षा विभाग वर्ष 2015 से पीजी स्टूडेंटस से बॉण्ड भरवा रहा है. लेकिन अभी तक कभी भी स्टूडेंटस के डॉक्यूमेंट नहीं रोके गए....बॉण्ड की पालना के लिए इस बार से स्टूडेंट्स के दसवीं, बारवीं व एमबीबीएस के डॉक्यूमेंट को रोका गया है, जिससे स्टूडेंटस में रोष है. उनका कहना है कि बॉण्ड में इस तरह का कोई जिक्र नहीं था, यदि चिकित्सा शिक्षा विभाग को ऐसा ही करना था तो बॉण्ड में इसका उल्लेख किया जाना चाहिए.

3. योग्यता के विरूद्ध नियुक्ति : रेजीडेंट्स ने अलग-अलग स्पेशिलिटी में पीजी किया है. रेजीडेंट्स का कहना है कि सरकार को उनकी सेवाएं लेनी है तो उन्हें तय स्पेशिलिटी का ही काम दिया जाए ताकि भविष्य में उनके ये काम आ सके.

4. एसआर शीप में लेटरल एंट्री : सेवारत केटेगिरी से रेजीडेंट्शीप करने वाले चिकित्सकों के लिए एसआर शीप के लिए बड़ा अड़गा . ऐसे चिकित्सकों की योग्यता उनकी नीट पीजी की रैंक के आधार पर मानी जा रही है, जबकि उसके बाद तो वे पूरी पीजी कर चुके है.  इस नियम के चलते अधिकांश सेवारत चिकित्सक एसआर शीप से वंचित हो रहे है. जबकि इससे विपरित डायरेक्ट एंट्री के जरिए काफी संख्या में एसआर नियुक्त किए जा रहे है.

आंदोलन की राह पर चल रहे प्रभावित रेजीडेंटस का कहना है कि वे बॉण्ड की शर्तों के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देने को तैयार है. लेकिन उनका कहना है कि बॉण्ड के तहत पोस्टिंग देने में जो देरी हुई, उसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए. साथ ही इस समयावधि की भरपाई भी करने की रेजीडेंटस ने मांग उठाई है.

आंदोलन के तीसरे दिन रेजीडेंटस ने दो घंटे का कार्यबहिष्कार किया है, लेकिन आगे सुनवाई नहीं होने पर ये भी कहा है कि आंदोलन को तेज भी किया जा सकता है. ऐसे में जरूरी हो गया है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी रेजीडेंट्स से संवाद शुरू करें. उम्मीद है कि संवाद शुरू होगा तो समाधान भी निकलेगा, ताकि मरीजों को आगे दिक्कतों का सामना नहीं करना पडे.