VIDEO: जांच के दायरे से बाहर सरकारी दुकानों की दवाएं ! औषधि नियंत्रक संगठन का रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम

जयपुर: औषधि नियंत्रक संगठन की छवि सुधारने की कवायद की खामी ने सरकारी दवा दुकानों को जांच के दायरे से बाहर कर दिया है.रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम की प्रक्रिया को तीन माह से अधिक का समय गुजार चुका है, लेकिन इस दरमियान सरकारी दुकानों से सैम्पल उठाने के काम पर ब्रेक लग गया है.यानी सरकारी दुकानों पर मिलने वाली दवाओं की क्वालिटी बगैर जांच के ही शुद्ध मानी जा रही है.आखिर ड्रग डिपार्टमेंट की क्या है नेक पहल और किस खामी की वजह से सरकारी दुकानें जांच से हो गई बाहर. 

ड्रग डिपार्टमेंट.....ये नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में नेगेटिव तस्वीर बनना आम बात है.चाहे फील्ड में जांच के नाम पर मनमानी हो या फिर चौथवसूली...ड्रग ऑफिसर्स अपनी कार्यप्रणाली को लेकर हमेशा चर्चाओं में रहते है, लेकिन पिछले दिनों कई मामलों में छवि खराब होने के बाद खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रण आयुक्तालय ने फील्ड में भ्रष्टाचार पर लगाम कसने और पारदर्शी तरीके से काम के लिए रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम डवलप किया.सितम्बर से लागू इस नई व्यवस्था के बाद फील्ड में डीसीओ के मनमाने इंस्पेक्शन-सैम्पलिंग पर ब्रेक तो लग गया, लेकिन साथ ही साथ सरकारी दुकानों की जांच प्रक्रिया भी पूरी तरह से बन्द हो गई है.आइए आपको बताते है कि पहले की और नई व्यवस्था में क्या रख गई खामी.

पहले कैसे होती थी दवा दुकानों की जांच ?: 
- पूर्व में भी हर डीसीओ को हर माह 20 दुकानों की जांच का टॉस्ट मिलता था
- इन दुकानों का चुनाव खुद डीसीओ अपने स्तर पर करते थे
- इस प्रक्रिया में दवाओं के कुल छह सैम्पल लिए जाने थे अनिवार्य  
- लेकिन इस प्रक्रिया में यह बाध्यता थी कि दो सैम्पल सरकारी दवा दुकानों से भी लिए जाए
- यानी हर माह एक डीसीओ चार सैम्पल निजी दुकानों से लेते थे और दो सरकारी दुकानों से

नई व्यवस्था में क्यों जांच के दायरे से बाहर हो गई सरकारी दुकानें ?:
- दरअसल, नई व्यवस्था में डीसीओ के सर्वाधिकार ऑनलाइन सिस्टम ने ले लिए है
- रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम में हर सप्ताह एक डीसीओ को पांच रजिस्ट्रर्ड दुकानें आंवटित हो रही है
- डीसीओ सिर्फ इन आवंटित दुकानों पर जाकर ही जांच कर सकते है
- लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में सरकारी दवा दुकानें पूरी तरह से जांच मुक्त हो गई है
- इसके पीछे की वजह ये है कि सरकारी दुकानों को ड्रग लाइसेंस से छूट है
- ऐसे में ऑनलाइन सिस्टम में "लाइसेंसी" नहीं होने के चलते ये दुकानें जांच के लिए आंवटित ही नहीं हो रही है

रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम का तीन माह का रिपोर्ट कार्ड:
-रेण्डमाइल्ड पैटर्न पर करीब 3250 के आसपास दुकानों की हुई है जांच
-जांच में गड़बड़ियां मिलने पर 500 के आसपास दुकानों को कारण  बताओ नोटिस
-जांच के दौरान गंभीर अनियमिताएं मिलने पर करीब 225 दुकानों के लाइसेंस सस्पेण्ड
-इसके अलावा एक दर्जन दवा दुकानों के लाइसेंस किए गए कैंसिल

रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम लागू होने के बाद डीसीओ ने भी अपने काम को सीमित कर दिया है.सूत्रों की माने तो जिलों में कई जगहों पर बगैर लाइसेंस के दवा का कारोबार फलफूल रहा है, लेकिन ऐसे लोगों पर भी कार्रवाईयां नहीं हो रही है.नाम नहीं छापने की शर्त पर कुछ अफसरों का तर्क ये है कि जब मुख्यालय से ही पूरी कंट्रोलिंग हो रही है तो फिर वे किसी अधिकार से कार्रवाई करें.हालांकि, इस पूरे मामले में औषधि नियंत्रक अजय फाटक का कहना है कि सरकारी दुकानों के साथ साथ जहां से भी हमें शिकायतें मिलती है, वहां स्थानीय टीम को भेजकर कार्रवाई करवा रहे है.साथ ही उन्होंने ये भी माना कि रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम नई व्यवस्था है, जिसमें जो भी दिक्कतें आ रही है, उन्हें जल्द ही दुरूस्त किया जाएगा.

रिस्क बेस्ड रेण्डमाइज्ड सैम्पलिंग सिस्टम की नई व्यवस्था को ड्रग डिपाटमेंट के शुद्धिकरण के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इसमें जो खामियां रही गई है, वो पूरे सिस्टम को मुहं जरूर चिड़ा रही है.ऐसे में उम्मीद है कि तीन माह का समय गुजरने के बाद अब विभाग नई व्यवस्था की समीक्षा करेगा.जो खामियां सामने आ रही है, उन्हें दुरूस्त किया जाएगा.ताकि जिस मंशा के साथ सिस्टम में आमूलचूल बदला किया गया है, वो फील्ड में भी नजर आए.