जयपुरः प्रदेश में बाघों की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है. रणथंभौर और सरिस्का में बाघों की संख्या को संतुलित रखने और वृहद टाइगर कॉरिडोर के सरकार की मंशा को पूरा करने के लिए जरूरी है कि कुंभलगढ़ को जल्द से जल्द टाइगर रिजर्व का दर्जा मिले और वहां पर बाग पुनर्वास कार्यक्रम को सुनियोजित और ठोस तरीके से चलाया जा सके. हालांकि एक बड़ी लॉबी के दबाव में कुछ लोग कुंभलगढ़ को टाइगर रिजर्व बनने में रोड़े अटकना चाह रहे हैं.. लेकिन अब वक्त आ गया है कि कुंभलगढ़ को जल्द से जल्द टाइगर रिजर्व घोषित किया जाए. एक रिपोर्ट:
राजस्थान में बाघों के कुनबे में बढ़ौतरी तो जरूर हुई है, लेकिन इस प्रजाति की हालत बेहद चिंताजनक है.बात करते हैं राजस्थान की, यहां 5 टाइगर रिजर्व हैं. जिनमें सवाई माधोपुर का रणथंभौर, अलवर का सरिस्का, कोटा का मुकुंदरा, बूंदी का रामगढ़ विषधारी और करौली का करौली-धौलपुर टाइगर रिज़र्व है. राजस्थान के सभी टाइगर रिजर्व को मिला कर लगभग 130 से ज्यादा बाघों की उपस्थित प्रदेश में हैं. हालांकि रणथंभौर और सरिस्का में लगातार बाघों की संख्या में वृद्धि होने से इनका पलायन बाहर एवं आसपास के जंगलों में होने लगा है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता है. आपको बता दें की टाइगर बेहद ही टेरीटोरियल होते हैं और इनके स्वत: ही किसी अन्य क्षेत्र में पलायन करने में कॉरिडोर की अहम भूमिका होती है. राजस्थान में रणथंभौर से जुड़े जंगलों में मुकुंदरा, रामगढ़ विषधारी, करौली और धौलपुर हैं, जिसमें फिलहाल बाघों का मूवमेंट है. वहीं राजस्थान का एकमात्र जंगल जिसमें बाघ हैं, लेकिन वो फिजिकल डिस्टेंस में रणथंभौर से कनेक्टेड नहीं है वो है सरिस्का, हालांकि 2004-05 में यहां से बाघों के खात्मे के बाद, वर्ष 2008-09 में यहां बाघों का पुनर्वास रणथंभौर से एयर लिफ्ट करके किया गया था, इसके बाद से यहां प्रे बेस की अच्छी मौजूदगी के कारण यहां बाघों का कुनबा बढ़ता चला गया. प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व में भी रणथंभौर के ही बाघ हैं.
हालांकि सभी टाइगर रिजर्व में गांव बसे हुए हैं और थिन बेल्ट और लो प्रे बेस की भी समस्या है. ऐसे में मेवाड़ मारवाड़ का एक मात्र जंगल जो बाघों का आशियाना बन सकता है वो है कुंभलगढ़. इसका प्रस्तावित कोर लगभग 400 वर्ग किलोमीटर और प्रस्तावित एरिया बफर और कोर को मिलाकर लगभग 2600 से 2700 वर्ग किलोमीटर के आसपास है. सवाल है कि क्यों है कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व जरूरी ? तो आपको बता दें कि कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व का बनना इसलिए बेहद जरूरी है की रणथंभौर में बाघों की संख्या बढ़ रही है उनकी बढ़ती संख्या को अलग आशियाना चाहिए, साथ ही वेस्ट वर्ड लाइन में कुंभलगढ़ विश्व का एक मात्र टाइगर रिजर्व होगा जहां बाघ आपको स्वच्छंद विचरण करते मिलेंगे.
कुंभलगढ़ में प्रे बेस की संख्या मुकुंदरा टाइगर रिजर्व से भी अच्छी है. यहां सरिस्का और रणथंभौर के बाद सबसे बड़ी संख्या में सांभर हैं. यह सच है को एनटीसीए की सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी है लेकिन कुछ मसले बाकी हैं जिसके किए एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजनी है. अतः संभवत: सरकार एक्सपर्ट कमेटी के गठन और उसकी रिपोर्ट का वेट कर रही है. कुंभलगढ़ में बसे आदिवासियों को लेकर भी कुछ लोग अनर्गल दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. आदिवासी प्राचीन काल से वन्यजीवों के साथ संतुलन बनाते आए हैं. न तो उन्हें बेदखल किया जा रहा है न उन्हें कोई खतरा है. राजस्थान के सभी टाइगर रिजर्व में गांव हैं. हालांकि कुंभलगढ़ के कोर में लगभग कोई गांव नहीं है. फिर भी लोग ये नहीं समझ रहे हैं टाइगर के आने से उन्हें फायदा ही है. सवाई माधोपुर में कोई इंडस्ट्री नही है टाइगर टूरिज्म ही उनकी बैक बोन इंडस्ट्री है. इसलिए कुंभलगढ़ को भी बाघों से कोई खतरा नहीं.
यहां टाइगर रिजर्व न बने इसलिए कुछ नेताओं को तथाकथित रणथंभौर होटल लॉबी जो चाहती नहीं कि प्रदेश में कहीं भी टाइगर रिजर्व बने माइनिंग और भू माफिया ने गांव वालों को भड़का कर नेताओं को उल्टी सीधी पट्टी पढ़ा कर इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की कोशिश की है. दरअसल इस ही लोग हैं कुंभलगढ़ के गुनाहगार हैं. इसलिए यदि बाघों को बचाना है तो मेवाड़- मारवाड़ के जंगलों का भविष्य भी केवल टाइगर के मेवाड़ में पुनर्वास से हो सकता है.