जयपुर: गायों में फैली लम्पी स्किन महामारी के बाद अब शूकर वंशीय पशुओं में नया रोग पाया गया है. अफ्रीकन स्वाइन फीवर नामक बीमारी के चलते बड़ी संख्या में शूकरों की मौत हो रही है. बड़ी बात यह है कि इस बीमारी के शुरू में पशु में न तो कोई लक्षण दिखाई देते हैं और न ही इसका अभी कोई उपचार संभव है. राज्य में शूकर वंशीय पशुओं में फैल रहे नए रोग ने शूकर पालकों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. शूकर वंशीय पशुओं में अफ्रीकन स्वाइन फीवर नामक रोग फैल रहा है, जो अत्यन्त घातक है.
दरअसल यह बीमारी इतनी घातक है कि एक पशु में बीमारी फैलने पर साथ मौजूद अन्य सभी पशुओं की मौत होना निश्चित है. पशुपालन विभाग ने राज्य में सबसे पहले इसकी पहचान नवंबर 2022 में अलवर शहर में की थी. अलवर में शूकरों की एक के बाद एक हो रही मौतों के चलते पशुपालन विभाग के अधिकारी सक्रिय हुए. इसके बाद जब जांच की गई तो इस रोग को पाया गया. यह रोग खतरनाक इसलिए है, क्योंकि एक भी पशु के बीमार होने पर एक किलोमीटर परिधि क्षेत्र को संक्रामक माना जाता है. ऐसे में उस क्षेत्र में मौजूद शूकरों की मृत्यु या तो रोग के चलते हो जाती है, अन्यथा क्षेत्र के सभी शूकर वंशीय पशुओं को विभागीय चिकित्सकों की देखरेख में मृत्यु दी जाती है. हालांकि अभी तक केवल अलवर शहर क्षेत्र में ही शूकर वंशीय पशुओं को यूथेनेशिया के जरिए मृत्यु दी गई है. इसके लिए पशुपालकों को बॉडी वेट के हिसाब से पशुपालन विभाग द्वारा मुआवजा भी दिया जाता है. आइए अब आपको आंकड़ों के जरिए बताते हैं कि इस रोग का कितना प्रकोप देखने को मिल रहा है.
किस जिले में कितने शूकर में फैला रोग, कितनों की मौत:
- अलवर शहर क्षेत्र में नवंबर में रोग फैला, 59 की मृत्यु
- यहां 36 शूकर वंशीय पशुओं का यूथेनेशिया यानी मृत्यु दी गई
- सवाई माधोपुर में 2966 पशु बीमार हुए, सभी की मौत
- जयपुर के जोबनेर में 65 बीमार पशुओं में से 60 की मौत हुई
- जयपुर के रेनवाल में 131 पशुओं की मौत हुई
- कोटा के दिगोद में 195 बीमार पशुओं में से 161 की मौत हुई
- कोटा के सांगोद में 680 में से 444 की मौत हुई
- भरतपुर के नगर, कांमा, बयाना, भुसावर, सेवर, उच्चैन में 177 में से 68 की मौत
- करौली के महावीर जी में 50 में से 10 की हुई मृत्यु
भारत में इस फीवर की घुसपैठ पूर्वी भारत के राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश से हुई थी. इन राज्यों में पिगरीज का खासा व्यापार होता है. इसके बाद भारत सरकार ने रोग से बचाव के लिए गाइडलाइन जारी की थी. हालांकि रोग के लिए उपचार का कोई कारगर तरीका मौजूद नहीं है. न ही इस रोग से बचाव के लिए अभी कोई टीका तैयार किया जा सका है. हालांकि राहत की बात यह है कि यह रोग जूनोटिक प्रकृति का नहीं है. यानी पशुओं से मनुष्यों में इस रोग का प्रसार नहीं हो सकता. न ही शूकर वंशीय पशुओं से अन्य पशुओं में यह रोग फैलता है.
सावधान होने की जरूरत इसलिए:
- एक भी पशु बीमार हुए तो साथ मौजूद अन्य शूकर वंशीय पशुओं का बचना मुश्किल
- एक किलोमीटर परिधि क्षेत्र को संक्रमित घोषित किया जाता है
- अभी कोई उपचार नहीं, न ही कोई टीका ईजाद किया जा सका है
- ज्यादातर शूकरों में बीमार होने पर भी कोई लक्षण नहीं दिखते
- अचानक से पशु की मृत्यु हो जाती है, दूसरे पशु संक्रमित हो जाते हैं
- कई बार कुछ शूकरों में त्वचा पर लाल रंग के चकत्ते देखे गए हैं
- इसी लक्षण के आधार पर रोग की पहचान की जा रही
पशुपालन विभाग पिछले 2 माह से इस रोग की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. विभाग द्वारा गठित दल मौके पर पहुंच कर संक्रमित पशुओं का परीक्षण कर सेम्पल एकत्रित कर रहे हैं. मृत पाए गए पशुओं में रोग की पहचान एवं मौत के कारणों का पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम का कार्य किया जा रहा है. प्रदेश के प्रभावित 6 जिलों में विभागीय स्तर पर गठित रेपिड रिस्पाॅन्स फोर्स द्वारा शूकरों के सैम्पल एकत्र करने के साथ ही पशुपालकों को रोग के प्रति जागरूक भी किया जा रहा है.