जयपुर: विधानसभा उप चुनाव में बीजेपी ने मेवाड़ और वागड़ की ओर फोकस किया है. लक्ष्य है चौरासी और सलूंबर को जीतना बीजेपी प्रदेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल,सह प्रभारी विजया राहटकर और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने सलूंबर और चौरासी में उप चुनाव के मद्देनजर बैठकें ली. इन सीटों पर बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस के साथ ही भारतीय आदिवासी पार्टी से है. चौरासी में नए चेहरे को अवसर दे सकती है बीजेपी.
बीते दो दिनों में चौरासी और सलूंबर का बीजेपी ने मंथन किया. फीडबैक में साफतौर पर सामने आया है कि मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार है. कांग्रेस के साथ ही भारतीय आदिवासी पार्टी से बीजेपी को चुनौती मिलेगी. चौरासी सीट पर BAP का प्रभाव किसी से छुपा नहीं है.
- BTP के बाद BAP की ताकत का गवाह है चौरासी
- कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए सीट बेहद चुनौती पूर्ण
- कांग्रेस कर सकती है BAP के साथ गठबंधन
- 2018, 2023 के विधानसभा का चुनाव आदिवासी पार्टी ने जीता
- दो बार विधायक और अब सांसद बनने के बाद राजकुमार रोत यहां बडी आदिवासी ताकत
- आदिवासी युवा है BAP और राजकुमार की ताकत
- बीजेपी की टिकट पर यहां आखिरी बार 2013 में सुशील कटारा ने चौरासी को जीता
- कटारा को तत्कालीन वसुंधरा सरकार में मंत्री भी बनाया गया था
- कांग्रेस के सामने दिक्कत फिर BAP का साथ दिया तो स्थानीय स्तर पर संगठन खत्म हो जाएगा
- बीजेपी में किसे चुनाव लड़ाए इसे लेकर गंभीरता से विचार हो रहा
- सुशील कटारा के अलावा अन्य विकल्पों पर गंभीरता से विचार
- जातीय समीकरण के तहत एसटी वोट ही यहां है प्रमुख
- बीजेपी की सोच ये भी है कि नए आदिवासी चेहरे को मैदान में उतारा जाए
BJP ने बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेता महेंद्र जीत सिंह मालवीय को बीजेपी में लाकर चुनाव लड़ाया था लेकिन प्रयोग सफल नहीं रहा. हालांकि चौरासी सीट पर मालवीय की राय अहम रहेगी. उधर भारतीय आदिवासी पार्टी ने सलूंबर की ओर भी पैर पसार लिए है. सीट से भाजपा सहानुभूति के तौर पर अमृतलाल मीणा के परिवार को टिकट दे सकती है, क्योंकि राजस्थान में देखा जा सकता है कि सहानुभूति लहर का फायदा देखने को मिला है. भाजपा सलूंबर के चुनाव में दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा के परिवार को टिकट देकर सहानभूति कार्ड खेल सकती है.
पिछले चुनाव में भारतीय आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार ने सलूंबर में मजबूत उम्मीदवारी जताई थी. वैसे सलूंबर विधानसभा सीट बीजेपी का गढ़ रही है. साल 1990 के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस सिर्फ दो बार ही जीत दर्ज कर पाई. भाजपा बड़े वोटों के मार्जिन से जीतती रही है. अब उपचुनाव में अपनी पारंपरिक सीट बचाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती रहेगी. राधा मोहन दास अग्रवाल और मदन राठौड़ ने पुराने और नए नेताओं से फीडबैक लिया. आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी का इरादा है ट्राइबल के विकास के एजेंडे को लेकर चलना, डबल इंजिन सरकार की बात यहां कही जा रही.
बदली हुई रणनीति के साथ इस बार बीजेपी को चौरासी और सलूंबर की जंग में उतरना होगा. सरकार होने का पॉजिटिव असर है...लेकिन चुनाव जीतने की राह दुर्गम है. बीजेपी के सामने चुनौती.
--- बीजेपी नेतृत्व के सामने संगठन को मजबूत करना चुनौती---
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आदिवासी बेल्ट में बीजेपी की मजबूती के पीछे विचार परिवार है. उदयपुर में विचार परिवार के दबदबे के कारण ही लोकसभा सीट को जीत लिया. मगर डूंगरपुर बांसवाड़ा लोकसभा की चौरासी सीट बड़ी चुनौती है जिसे बीजेपी ने साधने की कवायद की है.