देवभूमि प्रयागराज में आस्था-सनातन का महासंगम, 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ में बड़ी संख्या में भक्तों ने लगाई डुबकी

देवभूमि प्रयागराज में आस्था-सनातन का महासंगम, 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ में बड़ी संख्या में भक्तों ने लगाई डुबकी

नई दिल्ली: देवभूमि प्रयागराज में आस्था-सनातन का महासंगम हो रहा है. गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आस्था का ज्वार आया हुआ है. त्रिवेणी की लहरों में संस्कृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम दिख रहा है. 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ में बड़ी संख्या में भक्तों ने डुबकी लगाई है.

अब तक करीब 4 करोड़ से ज्यादा लोग कुंभ स्नान कर चुके हैं. हर हर गंगे और जय श्रीराम के लोग गगनभेदी जयकारे लगा रहे हैं.  कल मकर संक्रांति स्नान के साथ 45 दिन का कल्पवास शुरू हो गया है. देश ही नहीं दुनियाभर से महाकुंभ स्नान के लिए   श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे हैं. संत-महंत, साधु-सन्यासी समेत विदेशी श्रद्धालुओं में भी उत्साह देखा जा रहा है. 

यूपी की योगी सरकार ने महाकुंभ को लेकर पुख्ता बंदोबस्त किए हैं. महाकुंभ में कई दिव्य अलौकिक संतों के दर्शन से लोग अभिभूत हो रहे हैं.

ये हैं सबसे बड़ा शाही स्नान: 
वैसे तो महाकुंभ (Maha Kumbh ) में कई शाही स्नान होते है, लेकिन सबसे ज्यादा अहम है, मौनी अमावस्या वाला शाही स्नान होता है. इस दिन महाकुंभ में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटने का अनुमान है. 29 जनवरी को मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) के स्नान पर्व के दिन 6 से 8 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान जताया जा रहा है. एक दिन में इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालूओं के आने को देखते हुए मेला प्रशासन की तरफ से तैयारियां की जा रही है.

जानिए क्या है अमृत स्नान: 
चलो अब आपको बताते है कि अमृत स्नान क्या है? मौनी अमावस्या के शाही स्नान के लिए अखाड़े भी हर स्तर से अपनी तैयारियां करते हैं. ये राजसी अंदाज में स्नान होता है. राजाओं के जैसे ठाठ बाट के साथ साधु संत महामंडलेश्वर संगम पर स्नान करने जाते हैं. इस वजह से अभी तक इस स्नान पर्व को शाही स्नान कहा जाता था, लेकिन अब अखाड़ों की तरफ से अमृत स्नान नाम दे दिया गया है.

महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान:
महाकुंभ 2025 (Maha Kumbh 2025) का अंतिम शाही स्नान बवंत पंचमी को होगा. वैसे तो महाकुंभ में 3 शाही स्नान पर्व होते हैं, जिसमें सबसे पहला शाही स्नान पर्व मकर संक्रांति का होता है. जबकि मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) का स्नान दूसरा और सबसे बड़ा स्नान पर्व होता है. तीसरा बसंत पंचमी का स्नान पर्व होता है जिसे आखिरी शाही स्नान पर्व माना गया है. बसंत पंचमी के शाही स्नान पर्व पर संगम में डुबकी लगाने के बाद अखाड़ों के संत-महंत मेला क्षेत्र में जाने लगते हैं. अखाड़े वाराणसी के लिए प्रस्थान करते हैं.

महाकुंभ का अंतिम स्नान कब:
महाकुंभ मेले (Maha Kumbh Mela) में कल्पवास की शुरुआत जहां पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ होती है, वहीं माघ पूर्णिमा (Magh Purnima) के स्नान पर्व के दिन कल्पवास पूरा हो जाता है. जो भी श्रद्धालू महाकुम्भ मेले (Maha Kumbh Mela) में कल्पवास करेंगे उनका कल्पवास माघ पूर्णिमा (Magh Purnima) के दिन से समाप्त हो जाता है. माघी पूर्णिमा के दिन से महाकुम्भ की रौनक समाप्त हो जाती है. संत महात्मा के साथ ही कल्पवासी भी मेले से प्रस्थान करने लगते हैं.