नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को निर्वाचन आयोग से कहा कि वह ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के उस प्रतिवेदन पर 10 दिनों के भीतर फैसला करे, जिसमें पार्टी के संशोधित उप-नियमों को अपने रिकॉर्ड में अद्यतन करने के लिए कहा गया है. न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने अन्नाद्रमुक और उसके अंतरिम महासचिव के. पलानीस्वामी की ओर से दायर एक याचिका पर यह आदेश जारी किया. याचिका में दावा किया गया था कि अन्नाद्रमुक में लंबित कुछ आंतरिक विवादों के कारण पार्टी के रिकॉर्ड को अद्यतन (अपडेट) नहीं किया जा रहा है. निर्वाचन आयोग की ओर से अदालत में पेश हुए वकील सिद्धांत कुमार ने कहा कि इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए प्रतिवेदन पर विचार किया जा रहा है और अंतिम निर्णय 10 दिनों के भीतर लिया जाएगा.
न्यायाधीश ने आदेश दिया, ‘‘निर्वाचन आयोग के रुख को देखते हुए अदालत याचिका का निस्तारण करना उपयुक्त समझता है और उसे निर्देश दिया जाता है कि वह 10 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन पर फैसला करे. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने आग्रह किया कि प्रतिवेदन पर सोमवार तक फैसला किया जाए क्योंकि किसी भी तरह की देरी कर्नाटक में आगामी चुनावों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी. वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि कर्नाटक चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने में समस्या आएगी. उल्लेखनीय है कि राज्य में 10 मई को विधानसभा चुनाव होने वाला है. हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि वह निर्वाचन आयोग को निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकती. अदालत ने कहा, ‘‘हम उन्हें निर्देशित नहीं कर सकते. हम उनसे अनुरोध कर सकते हैं. हम उन्हें मजबूर नहीं कर सकते.’’ निर्वाचन आयोग के वकील ने कहा कि यदि संभव हुआ तो अनुरोध पर विचार किया जाएगा. पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम के वरिष्ठ अधिवक्ता भी अदालत में पेश हुए और कहा कि वह पार्टी (अन्नाद्रमुक) के समन्वयक हैं और याचिकाकर्ता को कोई राहत देने से पहले उन्हें कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए.
पनीरसेल्वम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस गुरुकृष्ण कुमार ने दलील दी कि याचिका दिल्ली में दायर नहीं की जा सकती. अदालत ने स्पष्ट किया कि पक्षकारों की सभी दलीलें खुली हैं और पनीरसेल्वम को अधिकारियों के समक्ष अपनी शिकायतें रखने की स्वतंत्रता है. उन्होंने कहा, ‘‘निर्वाचन आयोग आपकी बात सुनने के लिए भी बाध्य है. आप भी एक प्रतिवेदन दे सकते हैं... हम कुछ नहीं कह रहे हैं. चुनाव आयोग इस पर विचार करेगा और 10 दिनों में फैसला करेगा. अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन, के. गौतम कुमार और शिवा कृष्णमूर्ति के माध्यम से दायर याचिका में आयोग को याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए प्रतिवेदनों पर विचार करने और पार्टी के 11 जुलाई, 2022 के नवीनतम संशोधित उप-नियमों को अपने रिकॉर्ड में ‘अपलोड’ करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. इसमें कहा गया कि रिकॉर्ड को अद्यतन नहीं करना विभिन्न स्थापित कानूनी सिद्धांतों और पार्टी के संबंध में निर्वाचन आयोग के पूर्व के रुख के विपरीत है. याचिका में कहा गया, ‘‘आयोग की निष्क्रियता ने याचिकाकर्ताओं के अनुच्छेद 19 (1) (सी) का गंभीर हनन किया है क्योंकि याचिकाकर्ता संख्या 1 (अन्नाद्रमुक) व्यक्तियों का एक संघ है और निर्वाचन आयोग की निष्क्रियता के कारण, याचिकाकर्ता संख्या 1 अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम नहीं है, विशेष रूप से लोकसभा चुनाव के लिए, जो कि नजदीक आ रहा है.’’
याचिका में कहा गया है कि आयोग ने हाल ही में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की है और नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 20 अप्रैल है तथा पार्टी कर्नाटक के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में नियमित रूप से अपने उम्मीदवार उतारती रही है. साथ ही अतीत में, उसके उम्मीदवार ने कोलार निर्वाचन क्षेत्र से तीन बार जीत हासिल की है. याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग द्वारा अपने रिकॉर्ड को अद्यतन किए बिना और संशोधित उप-नियमों को अपलोड किए बिना, अन्नाद्रमुक इन निर्वाचन क्षेत्रों में एक वैध उम्मीदवार खड़ा करने में सक्षम नहीं होगी. इसमें कहा गया है कि चुनावों में पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं होगा तो उसे इससे नुकसान होगा. याचिका में कहा गया है, ‘‘निर्वाचन आयोग की ओर से इस तरह का आचरण लोकतांत्रिक ताने-बाने को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा क्योंकि कर्नाटक में अपनी उपस्थिति रखने वाला एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल विधानसभा चुनावों में भाग लेने में असमर्थ हो जाएगा.’’ इसमें कहा गया है कि निष्क्रियता केवल पार्टी की गतिविधियों में गंभीर व्यवधान पैदा करेगी, जिसका राष्ट्र के लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. सोर्स- भाषा