जयपुर: राजस्थान के चुनावी इतिहास में एक समय ऐसा भी था, जब चुनाव में नेता निर्विरोध निर्वाचित हो जाया करते थे. बहरहाल आज ये दौर बीत चुका है.शुरुआती विधानसभा चुनावों के दौर में 14 सदस्य बिना चुनाव लड़े विधायक बने थे. आज के दौर में टिकट आवंटन के समय किसी राजनीतिक दल के दफ्तर में टिकट चाहने वालों या नामांकन भरने के समय निर्वाचन अधिकारी के यहां नामांकन भरने वालों की भीड़ देखकर क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं की एक दौर ऐसा भी था जब प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हो जाया करते थे. राजनीति के लिए आशीर्वाद सतयुग की लग सकती है, लेकिन यह गर्व की बात है कि हमारे राज्य में भी ऐसा हो चुका है और शुरुआती विधानसभा चुनावों के दौर में 14 ऐसे नेता रहे जो बिना चुनाव लड़े विधायक बन गए थे. हालांकि ऐसा उसे दौर में हुआ जब हर तीसरा आदमी नेता नहीं हुआ करता था.
पहले आम चुनावों 1952 में निर्विरोध निर्वाचित विधायक:
-सायरा सीट से कांग्रेस के दीनबंधु परमार
-सराड़ा -सलूंबर सीट से कांग्रेस के लक्ष्मण मीणा
-बागीदौरा सीट से कांग्रेस के हरिराम निनामा
-बड़ी सादड़ी- कपासन सीट से कांग्रेस के जयचंद मोहिल
-लक्ष्मणगढ़ -राजगढ़ सीट से कांग्रेस के संपतराम
-संपतराम राज्य के गृह मंत्री रहे थे
-कोटपूतली से कांग्रेस के हजारीलाल शर्मा
-मुंडावर सीट से कांग्रेस के घासीराम यादव
-घासीराम यादव को राठ केसरी कहा जाता था
किसी भी चुनाव में निर्विरोध निर्वाचन आमतौर पर बहुत अच्छी बात मानी जाती है. विधानसभा चुनाव के संदर्भ में यह इसलिए खास है कि निर्वाचित व्यक्ति उस क्षेत्र का हजारों लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और उसके निर्विरोध निर्वाचन से ये पता चलता है कि उसे नेता की संबंधित क्षेत्र में कितनी प्रतिष्ठा है.साथ ही निर्विरोध निर्वाचन से चुनाव में होने वाला लाखों रुपए का खर्च भी बचता है.. राज्य की विभिन्न विधानसभा सीटों से निर्विरोध निर्वाचन की प्रक्रिया पहली बार 1952 में हुए चुनावों से दिखी थी जब 7 प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हुए थे.1957 में हुए दूसरे विधानसभा चुनावों में पांच नेता निर्विरोध निर्वाचित हुए थे.
1957 के विधानसभा चुनावों में निर्विरोध निर्वाचित विधायक:
-मालपुरा से कांग्रेस के दामोदर व्यास
-सागवाड़ा से कांग्रेस के भीखा भाई
-छबड़ा से कांग्रेस के धन्ना लाल हरित
-राजगढ़ से कांग्रेस के हरिकिशन
-रायसिंहनगर से कांग्रेस के चुन्नी लाल
-1962 में कांग्रेस के बामनवास से भरत लाल मीणा
-1972 में देसूरी से कांग्रेस के दिनेश राय डांगी
आज के दौर में जब एक सीट के लिए दर्जनों दावेदार होते है एक एक सीट के लिए दलों में अंदरूनी संघर्ष होता है ऐसे में बदलते समय में निर्विरोध निर्वाचन इतिहास हो गया है.