तिरुवनंतपुरम: तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने कहा है कि अगर भारत और चीन के लोग ‘अहिंसा’ और ‘करुणा’ के मार्ग पर चलते हुए आतंरिक शांति के लिए काम करें तो पूरी दुनिया को इसका फायदा होगा. उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले कई सालों में कई क्षेत्रों में प्रगति की है, खासतौर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में. बाहरी निरस्त्रीकरण आवश्यक है लेकिन आतंरिक निरस्त्रीकरण भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.’’ तिब्बत के 87 वर्षीय आध्यात्मिक गुरु ने ‘मनोरमा ईयर बुक 2023’ के लिए लिखे लेख में कहा, ‘‘इस संदर्भ में मैं वास्तव में महसूस करता हूं कि अहिंसा और करुणा के खजाने में निहित शांतिपूर्ण समझ की अपनी महान परंपरा के कारण भारत अग्रणी भूमिका निभा सकता है.
उन्होंने कहा कि ऐसा ज्ञान किसी एक धर्म से परे है और इसमें समकालीन समाज में अधिक एकीकृत और नैतिक रूप से आधारित तरीके को प्रोत्साहित करने की क्षमता है. इसलिए मैं सभी को ‘करुणा और अहिंसा’ के लिए प्रोत्साहित करता हूं. वैश्विक शांति प्राप्त करने के लिए उन्होंने कहा कि लोगों को अपने मन को शांत करने की जरूरत है और यह भौतिक विकास एवं आनंद से अधिक महत्वपूर्ण है. दलाई लामा ने कहा कि मानव का स्वभाव करुणामयी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि करुणा मानव स्वभाव का चमत्कार है. जैसे ही हम जन्म लेते हैं, मां हमारा ख्याल रखती है. इसलिए उम्र के शुरुआती चरण में ही हम समझ जाते हैं कि करुणा सभी खुशियों की जड़ है. महात्मा गांधी को ‘अहिंसा’ की प्रतिमूर्ति के तौर पर बताते हुए दलाई लामा ने कहा कि वह उनके आदर्शों से बहुत प्रभावित हैं जिनका डॉ.मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने भी अनुकरण किया. उन्होंने कहा कि मेरे लिए वह (महात्मा गांधी) आज भी आदर्श राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत विचारों से ऊपर परोपकार को रखा और सभी महान आध्यात्मिक परंपराओं का सम्मान किया.’’
स्वयं को भारत में सबसे लंबे समय तक रहने वाले मेहमानों से एक बताते हुए दलाई लामा ने कहा कि कम्युनिस्ट चीन के उनके देश पर हमले के बाद वह वहां से भागे और छह दशक से भी अधिक समय तक भारत में रहे थे. उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों का स्वागत करने और उनके बच्चों को स्कूलों और तिब्बत के अध्ययन केंद्र के भिक्षुओं को अपनी शिक्षा जारी रखने का अवसर देने के लिए भारत का आभार व्यक्त किया. दलाई लामा ने कहा कि तिब्बती हमेशा से भारतीय विचारों से प्रभावित रहे हैं. उन्होंने कहा कि मानव होने के नाते वह मानवता के एकीकरण और विश्व की धार्मिक परंपराओं जिनका दर्शन भले अलग-अलग क्यों न हो, में सौहार्द्र को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने कहा कि तिब्बती और दलाई लामा होने के नाते वह तिब्बती भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. सोर्स- भाषा