जयपुर: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का ढर्रा सुधरने की बजाए और बिगड़ता जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से फरवरी 2016 को शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को उम्मीद जगी थी कि उन्हें फसल खराबे का वाजिब क्लेम मिलेगा, लेकिन बीमा कम्पनियों की मनमानी और उच्चाधिकारियों की उदासीनता के चलते न तो अधिसूचना के नियमों की पालना हो पाती है और न ही किसानों को वाजिब क्लेम मिल पाता है.
गत वर्ष सरकार ने निजी बीमा कम्पनियों की बजाए सरकारी बीमा कम्पनी एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाकर नागौर में फसलों का बीमा करवाया, लेकिन इस कम्पनी का ढर्रा निजी से भी खराब है. न तो किसानों को समय पर कोई सूचना दी जाती है और न ही फसल खराबे का उचित क्लेम दिया जा रहा है. जिन किसानों के फसल खराबा हुआ, उन्होंने टोल फ्री नम्बर पर सूचना देकर खराबे का सर्वे भी करवाया, लेकिन उन्हें आज तक क्लेम नहीं दिया गया है. ऐसे में जिलेभर के किसान आए दिन कृषि विभाग व कलक्ट्रेट पहुंचकर अधिकारियों को ज्ञापन दे रहे हैं.
बता दें कि खरीफ 2023 में जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत कुल एक लाख, 66 हजार, 668 किसानों ने 5 लाख 67 हजार 786 बीमा करवाए थे. इसके तहत जिले की 4.16 लाख हैक्टेयर भूमि का बीमा हुआ था और इसके बदले कम्पनी ने प्रीमियम राशि के पेटे 168.20 करोड़ रुपए वसूले. इसमें किसानों की ओर से 37.22 करोड़ रुपए का प्रीमियम दिया गया, जबकि राज्य सरकार की ओर से 65.49 करोड़ व इतने ही केन्द्र सरकार की ओर से प्रीमियम भरा गया.
जिले में खरीफ 2023 में कहीं बेमौसम बारिश तो कहीं सूखा होने के कारण काफी फसल खराबा हुआ था.इसके बावजूद कम्पनी ने 5 लाख 67 हजार 786 एप्लीकेशन में से मात्र एक लाख, 38 हजार 804 एप्लीकेशन पर 129.18 करोड़ रुपए क्लेम देना तय किया है, जबकि कई क्लेम को विभिन्न प्रकार की आपत्तियां लगाकर खारिज कर दिया. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कम्पनी ने क्लेम नहीं देने की नीयत से जिले में करीब 642 क्रॉप कटिंग पर झूठी आपत्ति दर्ज करवाई है. कम्पनी कार्मिकों के अनुसार जिले में अब तक कुल 48,439 किसानों का 122.20 लाख रुपए का भुगतान किया गया है. यानी जो प्रीमियम वसूला गया, उससे भी कम क्लेम दिया जा रहा है.
नियमानुसार बीमा कम्पनी को जिला मुख्यालय व तहसील मुख्यालय पर किसानों को जानकारी देने के लिए कार्यालय खोलने होते हैं, लेकिन एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी ऑफ इंडिया लिमिटेड ने एक बाद भी तहसील मुख्यालयों पर कार्यालय नहीं खोले हैं. जिला मुख्यालय का कार्यालय भी कृषि विभाग के कम्प्यूटर कक्ष में खोल रखा है, जिसमें कम्पनी के कार्मिक नियमित रूप से नहीं बैठते, इसके चलते किसान परेशान होते हैं. साथ ही कृषि विभाग के अधिकारियों को किसानों को जवाब देना पड़ता है, जिससे उनका विभागीय काम प्रभावित होता है. खास बात यह है कि बीमा कम्पनी कृषि विभाग को न तो कार्यालय का किराया देती है और न ही बिजली-पानी का बिल.
बीमा कम्पनी के कार्मिकों की कार्यशैली ठीक नहीं
फसल बीमा कम्पनी के कार्मिक नियमित रूप से कार्यालय में नहीं बैठते हैं, जिसके कारण यहां आने वाले किसानों को हमें जवाब देना पड़ता है, जबकि काम बीमा कम्पनी से संबंधित होता है, इसलिए हमारे पास पूरी जानकारी भी नहीं होती. इसको लेकर मैंने कई बार कम्पनी के पदाधिकारियों को कहा भी है, लेकिन उनकी कार्यशैली में सुधार नहीं हो रहा है. यहां बीमा क्लेम को लेकर दिनभर किसानों का तांता लगा रहता है. इससे हम विभागीय कार्य नहीं कर पाते हैं.