जानिए...आखिर क्यों हुआ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा ?

जानिए...आखिर क्यों हुआ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा ?

देश की राजनीति में सोमवार को उस समय बड़ा उलटफेर हो गया, जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि आधिकारिक तौर पर इस इस्तीफे को स्वास्थ्य कारणों से जोड़ा गया है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसके पीछे कई और वजहों की चर्चा तेज है. जानकार सूत्रों की मानें तो धनखड़ पिछले कुछ महीनों से इस्तीफे का मन बनाए हुए थे. उनके एक निकटवर्ती सूत्र ने तो एक सप्ताह पहले ही इस फैसले के संकेत दे दिए थे, हालांकि उस वक्त इस्तीफे की तारीख और समय तय नहीं था. सोमवार को राज्यसभा में जो घटनाक्रम हुआ, उसने इस निर्णय को अचानक मूर्त रूप दे दिया.

दरअसल, सोमवार को राज्यसभा में दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर धनखड़ ने अपनी पैतृक पार्टी बीजेपी की लाइन से अलग रुख ले लिया. पहला मुद्दा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर एक घंटे की चर्चा की अनुमति देने का था, जिससे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत विपक्ष को सरकार पर हमला बोलने का मौका मिला. जबकि लोकसभा में यही चर्चा नहीं होने दी गई थी. दूसरा मुद्दा जस्टिस वर्मा के खिलाफ चर्चा के प्रस्ताव को स्वीकार करने का रहा. सरकार न्यायपालिका से सीधा टकराव नहीं चाहती थी, लेकिन राज्यसभा में धनखड़ ने इस पर चर्चा की इजाजत देकर सरकार को असहज कर दिया.

बताया जाता है कि सोमवार को Business Advisory Committee की बैठक में भी उपराष्ट्रपति के साथ पूरा विपक्ष खड़ा था, लेकिन बीजेपी की ओर से न तो जेपी नड्डा आए और न ही संसदीय कार्य मंत्री. इसी बैठक के बाद उपराष्ट्रपति ने कमेटी को लंच पर बुलाया, लेकिन कुछ घंटे बाद ही उनका इस्तीफा सामने आ गया. माना जा रहा है कि इस घटनाक्रम ने शीर्ष नेतृत्व को असहज कर दिया. सूत्रों के अनुसार, शीर्ष नेतृत्व ने धनखड़ को फोन कर अपनी नाराजगी जताई, जिसके बाद उन्होंने खुद ही इस्तीफा देने का फैसला कर लिया.

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह इस्तीफा पूर्व नियोजित नहीं था, बल्कि अचानक हुए घटनाक्रमों ने इसे तय कर दिया. उपराष्ट्रपति ने संसद सत्र के पहले दिन को ही इस फैसले के लिए चुना और अपने पद की गरिमा का पालन करते हुए इस्तीफे से पहले प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल का धन्यवाद भी किया. धनखड़ के इस्तीफे के पीछे उनके कई पुराने बयान और रुख भी वजह बने. संवैधानिक पद की मर्यादा से हटकर उन्होंने कई संवेदनशील मुद्दों-जैसे किसानों के आंदोलन और न्यायपालिका से टकराव-पर बयान दिए, जिससे सरकार और पार्टी दोनों असहज थे. प्रोटोकॉल से जुड़े मामलों पर उनकी सार्वजनिक अभिव्यक्ति ने भी शीर्ष नेतृत्व को कई बार परेशानी में डाला. हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से उनकी मुलाकात और उसका प्रचार भी पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा कर गया था. हालांकि, कई मुद्दों पर वे सरकार और पार्टी के पक्ष में भी मजबूती से खड़े रहे. संसद की स्वायत्ता के सिद्धांत का उन्होंने हमेशा समर्थन किया. ऐसे में उनकी जाट राजनीति से निकटता रखने वाले समर्थकों के लिए यह इस्तीफा हैरान करने वाला रहा. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि 74 वर्षीय धनखड़ आगे क्या करेंगे? क्या वे जयपुर और झुंझुनूं में अपनी विरासत और पारिवारिक कार्य संभालेंगे या फिर कभी-कभार संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राय रखते रहेंगे?

जहां तक स्वास्थ्य का सवाल है, तो हाल ही में उत्तराखंड यात्रा के दौरान उन्हें सीने में दर्द की शिकायत हुई थी, लेकिन लौटने के बाद से वे पूरी तरह स्वस्थ थे और अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह निभा रहे थे. कानून के विशेषज्ञ और अंग्रेज़ी भाषा के विद्वान माने जाने वाले जगदीप धनखड़ कई दशकों बाद अरुण जेटली की सिफारिश पर मुख्यधारा की राजनीति में लौटे थे. वे संघ परिवार के भी क़रीबी माने जाते रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट में संघ से जुड़े कई अहम मामलों में वकील रहे हैं. अब जब धनखड़ ने अपने पद से विदाई ले ली है, तो राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज़ है कि आखिर संसद सत्र के दौरान ही इस्तीफा देने की ऐसी क्या मजबूरी थी? क्या यह अचानक हुआ या फिर इसकी पटकथा कहीं पहले से लिखी जा चुकी थी? लेकिन अंत में, विधि का लिखा कौन टाल सकता है!

...पॉलिटिकल एडिटर अदिति नागर की रिपोर्ट