जयपुरः प्रदेश में खान विभाग के अधिकारियों और खनन माफिया के काले गठजोड़ ने सरकार की नींद उड़ा दी है. वित्त वर्ष समाप्त होने को है लेकिन मुख्यमंत्री के निर्देश पर चलाए विशेष अभियान के दौरान निकाली गई 370 करोड़ से अधिक की डिमांड में महज 15 करोड़ की वसूली हुई है. पूरे मामले में खान सचिव द्वारा ऐड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी वसूली नहीं हो सकी है. फर्स्ट इंडिया न्यूज़ की खास रिपोर्ट:
वृत्त पंचनामे डिमांड वसूली
जयपुर 394 38.57 करोड़ 2.13 करोड़
अजमेर 236 109.45 करोड़ 1.91 करोड़
जोधपुर 416 4.14 करोड़ 2.58 करोड़
बीकानेर 200 3.03 करोड़ 2.11 करोड़
उदयपुर 165 16.83 करोड़ 1.55 करोड़
भीलवाड़ा 266 20.43 करोड़ 2.89 करोड़
राजसमंद 85 4.63 करोड़ 40.35 लाख
कोटा 279 6.49 करोड़ 1.18 करोड़
भरतपुर 176 57.28 करोड़ 79 लाख
कुल 2217 260.89 करोड़ 15.57 करोड़
प्रदेश में अवैध खनन होता रहा और खान विभाग के अधिकारी सोते रहे. सरकार बदली तो अभियान शुरू हुआ और खनन अधिकारियों की कुंभकर्णी नींद भी टूटी. सरकार ने पारदर्शिता के नाम पर शिकायत के लिए व्हाट्सएप नंबर भी जारी कर दिया. फिर क्या था खान विभाग के अधिकारियों ने अपनी मिलीभगत छुपाने के लिए अवैध खनन पर ताबड़तोड़ हमले बोले और करीब 2400 मामले बना 370 करोड़ की डिमांड भी निकाल दी. लेकिन वसूली की बारी आई तो ये ही खनन अधिकारी फिर विलेन बन गए और सरकार इनकी कारगुजारी के सामने गच्चा खा गई. दरअसल मुख्यमंत्री के निर्देश पर खान विभाग ने 15 जनवरी से 31 जनवरी तक अवैध खनन, निर्गमन और परिवहन के खिलाफ विशेष अभियान चलाया था. अभियान के तहत 2217 पंचनामे बनाकर 260 करोड़ से ज्यादा की डिमांड निकाली गई. यही नहीं अभी 169 पंचनामे तो ऐसे हैं जिनमें रसूखदारों पर कार्रवाई की गई थी लेकिन 110 करोड़ रुपए की डिमांड अभी तक जारी नहीं की गई है. जो अधिकारी वर्षभर सोते रहे उन्हीं के क्षेत्र में वाट्सएप पर सर्वाधिक शिकायत मिली. मजबूरन उन्हें कार्रवाई भी करनी पड़ी. सरकार की वाहवाही के लिए सैकड़ों पंचनामे बनाए। वसूली की बारी आई तो यही अधिकारी कन्नी काटते दिखे. कुल 370 करोड़ की डिमांड के विरुद्ध महज 15 करोड़ की वसूली की जा सकी थी। खनन निदेशक भगवती प्रसाद कलाल ने 12 मार्च को वीसी के जरिए समीक्षा की तो कई अधिकारियों को जमकर डांट पिलाई. लेकिन खनन की कालिख से बहुत ज्यादा वाकिफ हो चुके अधिकारियों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा. सूत्रों का कहना है कि पूरे मामले में मुख्यमंत्री कार्यालय तक को अवगत नहीं करवाया गया. यह तो तब है जब खान महकमा खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के पास है. माना जा रहा है कि वित्त वर्ष के अंतिम महीने में जब विभाग राजस्व से पिछड़ रहा है तो क्या ऐसे लापरवाह अधिकारियों पर सरकार कार्रवाई कर पाएगी.