VIDEO: राजस्थान अब बाघस्थान ! पहली बार बाघों की संख्या 120 के आंकड़े को छू रही, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: राजस्थान अब तेजी से 'बाघस्थान' के तौर पर अपनी पहचान बना रहा है. रणथंभौर, सरिस्का, रामगढ़ विषधारी में बाघों की संख्या ऑल टाइम बेस्ट के मार्क को छू रही है. 29 जुलाई को कल विश्व बाघ दिवस है. प्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 120 के आंकड़े को छू रहा है. चार टाइगर रिजर्व हो चुके हैं पांचवें की तैयारी है लेकिन प्रदेश में बाघ कितने सुरक्षित हैं ? उनके लिए पर्याप्त रहवास की उपलब्धता है या नहीं ? और बाघ की शरण स्थली से गांवों के पुनर्वास की योजना कितनी सफल हुई ? ऐसे तमाम सवाल हैं जिन पर गहन चिंतन कर ठोस फैसले लेने की जरूरत है. दुनिया को मछली जैसी बाघिन देने वाले रणथंभौर को टाइगर फैक्ट्री के तौर पर पहचाना जाने लगा है.

प्रदेश में सरिस्का, मुकंदरा और रामगढ़ विषधारी भी रणथंभौर के बाघों से ही बसाए गए हैं. जल्द अधिसूचित होने वाला धौलपुर टाइगर रिजर्व भी रणथंभौर के बाघों से ही आबाद हो रहा है. रणथंभौर में वर्तमान में 79 बाघ हैं. कुछ वर्ष पहले बाघ विहीन हो चुके सरिस्का में बाघों की संख्या अब 30 के स्तर पर पहुंच गई है. एक वर्ष पहले अधिसूचित हुए रामगढ़ विषधारी में एक ही वर्ष में बाघों की संख्या 5 हो गई है. मुकंदरा में बाघ बसावट को दूसरा प्रयास भी विफल जरूर रहा है लेकिन वन विभाग अपने स्तर पर प्रयासों में कमी नहीं आने दे रहा है. मुकंदरा में वर्तमान में एक ही बाघ है लेकिन जल्द ही वहां एक बाघिन को ट्रांसलोकेट करने की तैयारी चल रही है. प्रस्तावित धौलपुर टाइगर रिजर्व के धौलपुर और करौली क्षेत्र में भी करीब 6 से 8 बाघों का विचरण है. 

प्रदेश में तीन टाइगर सफारी चल रही हैं और टाइगर टूरिज्म अपने चरम पर है. यही कारण है कि राजस्थान की पहचान बाघस्थान के तौर पर बनी है.अब बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए राजस्थान में दो और टाइगर रिज़र्व और घोषित होने की दरकार है, जिससे देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बन जायेगा और यह सम्भवतः देश का भी सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर साबित होगा. फिलहाल राजस्थान में 4 टाइगर रिज़र्व हैं अलवर का सरिस्का, सवाई माधोपुर-करौली का रणथंभौर और कोटा का मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिज़र्व और बूंदी का रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व. यदि करौली-सरमथुरा-धौलपुर और कुम्भलगढ़ को टाइगर रिज़र्व का दर्जा मिलता है तो धौलपुर से कुम्भलगढ़ तक टाइगर कनेक्टिविटी हो जाएगी. 

कुंभलगढ़ के टाइगर रिज़र्व बनते ही उदयपुर से राजसमंद से पाली और रावली टॉडगढ़ होते हुए अजमेर और उदयपुर के रणकपुर से सिरोही की माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी से फिर उदयपुर के फुलवारी की नाल तक टाइगर कॉरिडोर बनने की संभावना है. राजस्थान क्षेत्रफल में जरूर बड़ा है पर ज्यादातर मरु भूमि होने से यहां जंगल कम हैं वहीं मध्यप्रदेश में 6 टाइगर रिज़र्व हैं, राजस्थान में जो जंगल टाइगर रिज़र्व बनाए जा सकते हैं उसमें अप्रत्याशित देरी हो रही है. मध्यप्रदेश भारत का टाइगर स्टेट भी है यहां राजस्थान की तरह कोई लॉबी नहीं है जो किसी भी टाइगर रिज़र्व को प्रभावित करती हो जबकि राजस्थान में एक ऐसी लॉबी है जो नहीं चाहती कि राजस्थान में एक जगह विशेष की जगह कहीं और टाइगर रिज़र्व बने. अपने धनबल और राजनैतिक अप्रोच के बलबूते पर राजस्थान में नए टाइगर रिज़र्व की हर पहल को प्रभावित करती रहती है. 

अब जिस तरह से सरिस्का में वन विभाग की टीम में शानदार काम किया है उससे सरिस्का एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरा है लेकिन यहां भी रणथंबोर के राजनीतिक रसूख वाले कुछ लोगों ने अभी तक रणथंभौर से सरिस्का में टाइगर शिफ्टिंग नहीं होने दी है. यही कारण है कि रणथंभौर में बाघों की संख्या वहां की क्षमता से करीब दोगुनी हो गई है. बाघों में संघर्ष बढ़ रहा है, बाघ जंगल से निकलकर रिहायशी बस्तियों तक पहुंच जाते हैं और पोचिंग का खतरा भी बढ़ा है. मुकुन्दरा तो शुरू से ही विवादों में रहा और यहां भी सिर्फ एक बाघ है. अब जल्द ही यहां एक बाघिन छोड़ने की योजना बनाई जा रही है. 

आपको बता दें एक तरफ हम 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे मनाते हैं वहीं दूसरी तरफ रणथंभौर जैसे ख्यातनाम टाइगर रिज़र्व से कई बाघ गायब हैं. कुछ अधिकारी अच्छा काम कर रहे हैं और लगातार शिकारियों और अवैध खनन कर्ताओं को पकड़ने का काम कर रहे हैं, लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते ऐसे ईमानदार अधिकारी भी अपना काम सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं. दूसरी तरफ रणथंभौर से निकल कर कई युवा बाघ टेरीटोरी की तलाश में असुरक्षित स्थानों में भटक रहे हैं. वन्यजीव संरक्षण से जुड़े लोगो का कहना है कि राजस्थान में जल्द से जल्द नए टाइगर रिज़र्व की घोषणा होनी चाहिए. वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि राजस्थान के सभी टाइगर रिज़र्व की एडवाइजरी कमेटी को भंग कर एडवाइजरी कमेटियों का पुनर्गठन होना चाहिए व मानद वन्यजीव प्रतिपालकों की भी नियुक्तियां जल्द से जल्द होनी चाहिये. साथ ही साथ हर जिले में जो कलेक्टर के सानिध्य में पर्यावरण समिति होती है उनमें वन्यजीव क्षेत्र में जिन लोगों नें निःस्वार्थ काम किया हो ऐसे लोगों की नियुक्ति होनी चाहिए.