Sankashti Chaturthi 2023: कल मनाई जाएगी कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी, जानिए पूजा विधि और महत्व

जयपुर: आषाढ़ माह का प्रारंभ सोमवार 5 जून से हो रहा है. आषाढ़ की संकष्टी चतुर्थी का व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाएगा. आषाढ़ माह की संकष्टी चतुर्थी को कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. यह जून की भी संकष्टी चतुर्थी है. संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर गणेश जी की पूजा करते हैं. गणपति बप्पा अपने आशीर्वाद से भक्तों के संकटों को दूर कर देते हैं. संकष्टी चतुर्थी व्रत संकटों से मुक्ति के लिए रखा जाता है. 

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार  आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार 06 जून को देर रात 12:50 से प्रारंभ हो रही है. यह तिथि अगले दिन बुधवार 7 जून को रात 09:50 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी व्रत बुधवार 7 जून को रखा जाएगा. नारद पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रती को पूरे दिन का उपवास रखना चाहिए. शाम के समय संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा को सुननी चाहिए. संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं . इतना ही नहीं संकष्टी चतुर्थी का पूजा से घर में शांति बनी रहती है. घर की सारी परेशानियां दूर होती हैं. गणेश जी भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. इस दिन चंद्रमा को देखना भी शुभ माना जाता है. सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है. कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत नियमानुसार ही संपन्न करना चाहिए, तभी इसका पूरा लाभ मिलता है. इसके अलावा गणपति बप्पा की पूजा करने से यश, धन, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

सभी संकष्टी चतुर्थी:-   
आषाढ़ मास - कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी
श्रावण मास - गजानन संकष्टी चतुर्थी
अधिक मास - विभुवन संकष्टी चतुर्थी
भाद्रपद मास - बहुला चतुर्थी, हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी
आश्विन मास - विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी
कार्तिक मास - करवा चौथ, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी
मार्गशीर्ष मास - गणाधिप संकष्टी चतुर्थी
पौष मास - अखुरथ संकष्टी चतुर्थी
माघ मास - सकट चौथ, लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी
फाल्गुन मास - द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी
चैत्र मास - भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी
वैशाख मास - विकट संकष्टी चतुर्थी
ज्येष्ठ मास - एकदन्त संकष्टी चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी तिथि:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 06 जून मंगलवार को देर रात 12:50 से प्रारंभ हो रही है. यह तिथि अगले दिन 7 जून बुधवार को रात 09:50 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी व्रत बुधवार 7 जून को रखा जाएगा.

पूजा मुहूर्त:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि 7 जून को ब्रह्म योग में कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा के लिए 3 शुभ मुहूर्त हैं. पहला मुहूर्त सुबह 05:23 मिनट से सुबह 07:07 मिनट तक है. दूसरा मुहूर्त सुबह 07:07 मिनट से सुबह 08:51 मिनट तक है.तीसरा मुहूर्त सुबह 10:36 मिनट से दोपहर 12:20 मिनट तक है.

 

चंद्र अर्घ्य समय:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि आषाढ़ की संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखने वाले लोग रात में चंद्रमा की पूजा करेंगे. इस दिन चंद्रमा देर से निकलता है क्योंकि यह कृष्ण पक्ष है. संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय का समय रात 10:50 मिनट पर है. 7 जून को संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा को अर्घ्य रात 10:50 बजे से दिया जएगा.

संकष्‍टी चतुर्थी का महत्व:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि संकट को हरने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. संस्कृत भाषा में संकष्टी शब्द का अर्थ होता है- कठिन समय से मुक्ति पाना. यदि किसी भी प्रकार का दु:ख है तो उससे छुटकारा पाने के लिए विधिवत रूप से इस चतुर्थी का व्रत रखकर गौरी पुत्र भगवान गणेशजी की पूजा करना चाहिए. इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं. अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं.
 
चतुर्थी तिथि:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि यह खला तिथि व रिक्ता संज्ञक है. तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है. अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं. यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है. चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है.

पूजा विधि:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नान आदि करके व्रत लें.  स्नान के बाद गणेश जी की पूज आराधना करें, गणेश जी के मन्त्र का उच्चारण करें.  पूजा की तैयारी करें और गणेश जी को उनकी पसंदीदा चीजें जैसे मोदक, लड्डू और दूर्वा घास चढ़ाएं.  गणेश मंत्रों का जाप करें और श्री गणेश चालीसा का पाठ करें और आरती करें.  शाम को चंद्रोदय के बाद पूजा की जाती है, अगर बादल के चलते चन्द्रमा नहीं दिखाई देता है तो, पंचांग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें.  शाम के पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति के बाजू में दुर्गा जी की भी फोटो या मूर्ति रखें, इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी जाती है.  मूर्ति/फोटो पर धुप, दीप, अगरबत्ती लगाएँ, फुल से सजाएँ एवं प्रसाद में केला, नारियल रखें.  गणेश जी के प्रिय मोदक बनाकर रखें, इस दिन तिल या गुड़ के मोदक बनाये जाते है.  गणेश जी के मन्त्र का जाप करते हुए कुछ मिनट का ध्यान करें, कथा सुने, आरती करें, प्रार्थना करें.  इसके बाद चन्द्रमा की पूजा करें, उन्हें जल अर्पण कर फुल, चन्दन, चावल चढ़ाएं.
पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सबको वितरित किया जाता है.  गरीबों को दान भी किया जाता है.

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की. लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए. इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी. मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा. खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे कर विजयी हो रही थीं.

कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया. बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया. बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगे और उसे माफ़ कर देने को कहा. बालक के बार-बार निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना.

भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया. उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी. बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया. गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले. माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गयी होती हैं. जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहाँ कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है. यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश लौट आती हैं. इस कथा के अनुसार संकष्टी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है.