जयपुर: सरकारी कर्मचारियों की मांगों को लेकर कई घोषणाएं होने और कमेटियां बनने के बावजूद असंतोष जस का तस है.यहां तक कि कमेटियों की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने से लेकर समितियों का कार्यकाल बढ़ाने तक कर्मचारियों के विरोध का दौर अभी भी जारी है. सरकारी कर्मचारियों की वेतन विसंगति दूर करने के लिए बनाई खेमराज कमेटी का कार्यकाल तीन बार सरकार बढ़ा चुकी है.पूर्व की वसुंधरा राजे सरकार से लेकर मौजूदा सरकार तक में सरकारी कर्मचारियों के लिए कमेटियों के बनने और कार्यकाल बढ़ाने का सिलसिला जारी है.इसे लेकर सरकारी कर्मचारियों में अलग तरह की मायूसी है क्योंकि हालांकि ओपीएस लागू करने से राहत तो मिली है लेकिन बुनियादी मसले हल न होने के चलते सरकारी कर्मचारी खुद को कमेटियों के मकड़जाल में जकड़ा महसूस कर रहा है.
कमेटी-दर-कमेटी यूं बढ़ता गया मर्ज:
-वसुंधरा राजे सरकार में पूर्व सीएस डीसी सामंत की अध्यक्षता में वेतन विसंगति निवारण समिति का गठन 3 नवंबर 2017 को हुआ.
-सामंत कमेटी का कार्यकाल 8 मई 2018,8 अगस्त 2018,31 दिसंबर 2018 और 4 जुलाई 2019 को चार बार बढ़ाया गया.
-7 वें वेतनमान संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए गठित सामंत कमेटी को वेतन विसंगति निवारण का भी जिम्मा सौंपा गया.इसे लेकर 5 अगस्त 2019 को कमेटी ने रिपोर्ट दे दी.
-इस समय यह रिपोर्ट सरकार परीक्षण करा रही है और इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
खेमराज कमेटी को सौंपा गया यह अतिरिक्त जिम्मा:
-अलग-अलग सेवाओं के लिए विशेष चयन और विशेष सेवा शर्तों के जो नियम हैं उनके तहत विशेष भत्तों की जो दर है उसके बारे में परीक्षण करके अनुशंसा करेगी कमेटी.
-साथ ही डीपीसी की बैठकें,न्यायिक विवादों जैसे जो राज्य सरकार की ओर से भेजे प्रकरण होंगे उनका परीक्षण/अध्ययन करके अनुशंसा करेगी कमेटी.
क्या समस्याएं सुलझीं,क्या बाकी रह गए मसले ?:
-गहलोत सरकार सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू करके फीलगुड महसूस कर रही है. पूर्व की गहलोत सरकार में जिन कर्मचारियों की ग्रेड पे 2800 थी वह 3600 कर दी गई थी लेकिन 2017 में वसुंधरा राजे सरकार ने इसे वापस 2800 करके कटौती शुरू करने के आदेश कर दिए थे.
-अब गहलोत सरकार ने 2013 के बाद जिन कर्मचारियों की एसीपी बकाया थी उन्हें लाभ दिया जिससे कुछ हद तक भरपाई हुई है.
-इसके बावजूद सरकारी नौकरी में जिनकी एंट्री पे 9840 थी, वह 7040 हो जाने से जो 2800 रुपये का नुकसान हो गया,उसकी भरपाई नहीं हो पाई है और यह सरकारी कर्मचारियों के लिए दुखती रग बन गई है.