Janmashtami 2024: इस बार जन्माष्टमी पर बन रहे द्वापर युग जैसे संयोग, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और महत्व

Janmashtami 2024: इस बार जन्माष्टमी पर बन रहे द्वापर युग जैसे संयोग, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और महत्व

जयपुर: इस बार जन्माष्टमी पर द्वापर युग जैसे संयोग बन रहे हैं. द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म के समय जैसे संयोग थे इस बार जन्माष्टमी पर ऐसा ही संयोग बन रहा है. श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इस वर्ष भी जन्माष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र भी रहेगा. इसलिए इस बार पूरे देश में बहुत खास तरीके से जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाएगा. 

दोपहर 3:55 बजे से अगले दिन दोपहर 3:38 बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा. इसके साथ ही इस दिन कई शुभ संयोग बन रहे है. सर्वार्थ सिद्ध योग में जन्माष्टमी बनेगी. देर रात 12:01 से लेकर 12:45 तक पूजा का शुभ मुहूर्त है.

कैसे करें पूजा:-
जन्माष्टमी व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारण व्रत की पूर्ति होती है. इस व्रत के एक दिन पहले यानी सप्तमी के दिन हल्का और सात्विक भोजन ही करना चाहिए. व्रत वाले दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करें. पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जाएं. हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें. मध्यान्ह के समय काले तिल का जल छिड़क कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं. 

अब इस सूतिका गृह में सुंदर सा बिछौना बिछाकर उस पर कलश स्थापित करें. भगवान कृष्ण और माता देवकी जी की मूर्ति या सुंदर चित्र स्थापित करें. देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेते हुए विधिवत पूजन करें. यह व्रत रात 12 बजे के बाद ही खोला जाता है. इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता. फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फी और सिंघाड़े के आटे का हलवा खा सकते हैं.

व्रत करने से मिलेगी पाप-कष्टों से मिलती है मुक्ति:-
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर बन रहे दुर्लभ संयोग में पूजन का विशेष महत्व है. निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ के अनुसार ऐसा संयोग जब जन्माष्टमी पर बनता है, तो इस खास मौके को ऐसे ही गवाना नहीं चाहिए. अगर आप इस तरह के संयोग में व्रत करते हैं तो 3 जन्मों के जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि इस तिथि और संयोग में भगवान कृष्ण का पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. व्यक्ति को भगवत कृपा की प्राप्ति होती है. जो लोग कई जन्मों से प्रेत योनि में भटक रहे हो इस तिथि में उनके लिए पूजन करने से उन्हे मुक्ति मिल जाती है. इस संयोग में भगवान कृष्ण के पूजन से सिद्धि की प्राप्ति होगी तथा सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी.