ऑर्गन ट्रांसप्लांट फर्जी एनओसी प्रकरण में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी एक्टिव, सभी राज्य-केन्द्र शासित प्रदेशों को जारी किए आदेश

जयपुरः ऑर्गन ट्रांसप्लांट फर्जी एनओसी प्रकरण में जल्द ही राजधानी के बड़े अस्पतालों की मुश्किलें बढ़ने वाली है. इस पूरे घटनाक्रम को केन्द्र सरकार ने भी गंभीरता से लिया है और सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिए है कि वे अवैध तरीके से अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में लिप्तता और कानून का उल्लघंन करने वाले अस्पतालों के लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई करें. इस आदेश के चलते जयपुर के तीन बड़े निजी अस्पताल फोर्टिंस, EHCC व मणिपाल हॉस्पिटल पर संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे है. पेश है एक रिपोर्ट

प्रदेश के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल से फर्जी "एनओसी" लेकर जिन निजी अस्पतालों ने पिछले कुछ सालों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट किए है, वो सभी अब रड़ार पर है. जयपुर के फर्जी "एनओसी" प्रकरण के तार गुरुग्राम में पकड़े गए ऑर्गन माफियाओं से जुड़ते देख अब केन्द्र से लेकर राजस्थान का चिकित्सा विभाग एक्टिव मोड में है. विभाग की हाईलेवल टीम एसएमएस समेत 14 अस्पतालों के डेटा खंगाल रही है, जिसकी प्राथमिक रिपोर्ट में सामने आया है कि पिछले साल साल में ही 900 से अधिक ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए है. इसमें से 163 विदेशी नागरिक है. ऐसे में कमेटी के सदस्य इस दिशा में जांच कर रहे है कि विदेशी नागरिकों के सर्वाधिक ट्रांसप्लांट फोर्टिंस, EHCC व मणिपाल हॉस्पिटल की भूमिका किस तरह की रही है. खुद विभाग की एसीएस शुभ्रा सिंह साफ संकेत दे चुकी है कि यदि किसी भी अस्पताल की भूमिका गलत मिलेगी, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. इधर, पूरे घटनाक्रम को लेकर एसीएस शुभ्रा सिंह के निर्देश पर एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ राजीव बगरहट्टा के बाद अधीक्षक डॉ अचल शर्मा को नोटिस जारी किया गया है. इस नोटिस में उनसे जवाब मांगा गया है कि आखिर कमेटी की मीटिंग क्यों नहीं की गई. इसके साथ ही ऐसे मामलों में कमेटी ने अनुमति दी तो समिति के क्षेत्राधिकार के बाहर ऑर्गन ट्रांसप्लांट कैसे होते रहे. हालांकि एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक डॉ.अचल शर्मा ने कहा कि ये एक प्रोसिजर है,राज्य सरकार के नोटिस का जवाब दिया जाएगा.  

अंग प्रत्यारोपण के लिए फर्जी NOC मामले से जुड़ी बड़ी खबर
पूरे घटनाक्रम को लेकर SMS अस्पताल अधीक्षक डॉ.अचल शर्मा को नोटिस
अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह के निर्देश पर जारी किया गया नोटिस
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अधीक्षक से पूछा, कब हुई समिति की बैठक ?
बैठकों के बाद मार्च, 2024 तक जारी NOC का मांगा गया है विवरण
निकट रिश्तेदारों से भिन्न व्यक्तियों के बीच प्रस्तावित प्रत्यारोपण करना होता है अनुमोदन
राज्य स्तरीय प्राधिकार समिति को करना होता है ऐसे प्रकरणों का अनुमोदन
ऐसे मामलों में अनुमति नहीं ली गई तो समिति के क्षेत्राधिकार के बाहर कैसे हुए प्रत्यारोपण ?
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इन बिंदुओं पर चिकित्सा अधीक्षक से मांगा स्पष्टीकरण

उधर, इस पूरे घटनाक्रम को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग की तरफ से गठित कमेटी केन्द्र के निर्देश के बाद एक्टिव मोड पर आ गई है. कमेटी के तीन सदस्य पूरे प्रक्रिया को जानने के लिए आज एसएमएस अस्पताल पहुंचे. जहां उप अधीक्षक डॉ अनिल दुबे के उन्हें सभी दस्तावेज उपलब्ध कराते हुए अब तक की प्रगति रिपोर्ट दी. टीम के सदस्यों ने कहा कि घटनाक्रम की जांच जारी है. एसएमएस अस्पताल में उपलब्ध दस्तावेजों की जांच के लिए टीम आई है. जल्द ही कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी.

जवाब मांगे सवाल....?
ऑर्गन ट्रांसप्लांट जैसे संवेदनशील मामले में किस किस स्तर पर हुई चूक
ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए स्टेट लेवल अप्रुवल कमेटी से एनओसी लेना जरुरी है
लेकिन लम्बे समय से बैठक नहीं करने के लिए कौन कौन रहे जिम्मेदार
क्योंकि, इस दौरान निजी अस्पतालों में फर्जी एनओसी के जरिए धडल्ले से होते रहे ट्रांसप्लांट
पूरा उजागर होने के बाद भी अब तक अप्रुवल कमेटी को क्यों नहीं किया गया भंग?
स्टेट लेवल अप्रुवल कमेटी की बैठक के प्रति लापरवाही करने वालों को किया गया दंडित ?
पूरे घटनाक्रम में ये भी एक सवाल है कि क्या राजस्थान में नियमानुसार गठित की गई थी कमेटी ?

ऑर्गन ट्रांसप्लांट फर्जी एनओसी प्रकरण में चिकित्सा विभाग के साथ ही एसीबी और पुलिस भी अलग अलग स्तर पर जांच कर रही है. लेकिन यदि सामुहिक प्रयासों की बात की जाए तो इस मामले में उतनी गंभीरता नजर नहीं आ रही है. अभी तक एसआईटी के गठन का मामला भी विधिक राय में अटका हुआ है. इतना ही नहीं जांच कमेटी भी लगातार अतिरिक्त समय की मांग कर रही है. ऐसे में सवाल यह है कि केन्द्र की मंशा के अनुरूप जिन अस्पतालों की प्रकरण में लिप्तता सामने आई है,उनके खिलाफ सख्त एक्शन लेने में जांच की लेटलतीफी तो भारी नहीं पड़ेगी. क्या अंगदान की इस जीवनदायनी मुहिम को बदनाम करने वालों के खिलाफ शुरू की गई जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो पाएगा.