VIDEO: रणथंभौर में 21 बाघ लापता! जिनमें 8 नर, 10 मादा और 3 शावक शामिल, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर : रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान देश का एक प्रमुख बाघ आरक्षित क्षेत्र है, जहां बाघों की संख्‍या लगातार बढ़ रही है. हालांकि बाघों की बढ़ती संख्या एक सफलता मानी जा रही है, वहीं इसके साथ बढ़ रही है इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव की घटनाएं, यायावर बाघों की गतिविधियां और कई बाघों का अचानक लापता हो जाना. वर्तमान में रणथंभौर में 21 बाघ लापता हैं, जिनमें 8 नर, 10 मादा और 3 शावक शामिल हैं. 

बाघों का वितरण और यायावर बाघ

रणथंभौर के पांच प्रमुख रेंजों में कुल 81 बाघ हैं, जिनमें से 10 बाघ यायावर (अस्थाई रूप से विभिन्न रेंजों में घूमने वाले) हैं:
रेंज               कुल बाघ    स्थाई / यायावर
ROPT             22            19 / 3
कुंडेरा              11              9 / 2
तालड़ा               4              3 / 1
फलौदी            14             12 / 2
खंडार              21             20 / 1

यायावर बाघों की सूची:
टी-108: ROPT और फलौदी
टी-112: कुंडेरा और तालड़ा
टी-121: ROPT और कुंडेरा
टी-123: खंडार और ROPT
टी-127 (मादा): ROPT और फलौदी

इन बाघों की लगातार आवाजाही न सिर्फ वन विभाग की निगरानी व्यवस्था को चुनौती देती है, बल्कि ग्रामीण इलाकों के लिए खतरा भी पैदा करती है.
रणथंभौर में 21 बाघों का लापता होना एक गंभीर चिंता का विषय है. इनमें से कई बाघ पिछले कुछ वर्षों से दिखाई नहीं दिए हैं. लापता बाघों में अनुभवी वयस्क नर और मादा दोनों शामिल हैं.

मिसिंग टाइगर्स

नर बाघ (मेल)    मादा बाघ (फीमेल)
टी-66                    टी-54
टी-38                    टी-8
टी-128                  टी-13
टी-131                  टी-79
टी-139                  टी-99
टी-64                    टी-2401
टी-95                    टी-138
टी-74                    टी-2308
टी-126
टी-73 (3 शावक सहित)

इनमें से कुछ बाघों के साथ संघर्ष या शिकार की घटनाओं की आशंका जताई जा रही है, तो कुछ के अन्य वन क्षेत्रों में पलायन की भी संभावना है.
ग्रामीण आबादी और टकराव: विस्थापन अधूरा, जोखिम बरकरार

रणथंभौर के पांच मुख्य रेंजों में 11 गांव अभी भी सक्रिय रूप से बसे हुए हैं:
रामसिंहपुरा
बडलाव
माधोसिंहपुरा
शेरपुर
खिलचीपुर
खवा गांव
खंडोज
उलियाना
कुतलपुरा
रावल
कुंडेरा

इन गांवों में लगभग 2500 परिवार रहते हैं. पिछले तीन दशकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष में 20 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. हाल के दो वर्षों में छह से अधिक हमले दर्ज किए गए हैं. इन घटनाओं ने यह प्रश्न और प्रासंगिक बना दिया है कि "कब तक इंसानी जानें इस संघर्ष की बलि चढ़ती रहेंगी?"

पर्यटन और सुरक्षा का असंतुलन
वन्य जीव विशेषज्ञ अभिषेक चौधरी की माने तो रणथंभौर के विभिन्न क्षेत्र पर्यटन के लिए भी खुले हैं, जिससे बाघों की गतिविधि पर नजर रखना अपेक्षाकृत आसान होता है. लेकिन कुंडेरा, खंडार और तालड़ा जैसे क्षेत्र अब भी "नॉन-ट्यूरिज्म" ज़ोन हैं, जहां निगरानी की सीमाएँ हैं और अवैध गतिविधियों की संभावना बढ़ जाती है.

क्षेत्र    पर्यटन स्थिति                मुख्य क्षेत्र
ROPT    ट्यूरिज्म जोन 1-4    मलिक तालाब तक
फलौदी    ट्यूरिज्म जोन 7-10    बोदल क्षेत्र तक
कुंडेरा    सीमित ट्यूरिज्म           जोन 4 से 5
खंडार    नॉन ट्यूरिज्म              वनवासी क्षेत्र
तालड़ा    नॉन ट्यूरिज्म              कम निगरानी वाला क्षेत्र

समाधान और सिफारिशें

पूर्ण विस्थापन:
बाघों और इंसानों के बीच टकराव को रोकने के लिए बसे हुए गांवों का तत्काल और स्थायी विस्थापन आवश्यक है. विस्थापन योजनाओं में पारदर्शिता और पर्याप्त मुआवजा ज़रूरी है.

यायावर बाघों की ट्रैकिंग:
GPS रेडियो कॉलर का व्यापक इस्तेमाल कर बाघों की गतिविधियों की निरंतर निगरानी की जानी चाहिए.

सुरक्षा गश्त और कैमरा ट्रैप:
नॉन-ट्यूरिज्म क्षेत्रों में नियमित सुरक्षा गश्त और अधिक कैमरा ट्रैप की आवश्यकता है.

जनजागरूकता अभियान:
ग्रामीणों को बाघों के व्यवहार और टकराव की स्थिति में बचाव उपायों के प्रति जागरूक किया जाए.

मिसिंग टाइगर्स पर विशेष जांच:
लापता बाघों के मामलों की निष्पक्ष और वैज्ञानिक जांच हो, जिससे उनके गायब होने के पीछे की वजह साफ हो सके.

रणथंभौर की बाघ संरक्षण यात्रा कई उपलब्धियों से भरी रही है, लेकिन अब यह एक ऐसे मोड़ पर है, जहां केवल बाघों की संख्या बढ़ाना ही लक्ष्य नहीं हो सकता. सुरक्षित सह-अस्तित्व के लिए इंसानी बस्तियों का विस्थापन, वन्यजीवों की सटीक निगरानी और टकराव को रोकने की ठोस रणनीतियां ज़रूरी हैं. अन्यथा, "बाघों की धरती" रणथंभौर, संघर्ष और संकट की पहचान बन सकता है.