जयपुर: प्रदेश के बाघ-बाघिनों में नपुंसकता और बांझपन बढ़ता जा रहा है ! अभी तक सात बाघिन बच्चे पैदा नहीं कर सकी हैं और आधा दर्जन ऐसे बाघ भी रहे हैं जिन्हें लेकर नपुंसकता की आशंका जताई गई है. इस मामले में वन्यजीव विशेषज्ञों ने एक ही जीन पूल के बाघ होने या बाघिन के पैराफेरी क्षेत्र में एकाकी जीवन बिताए जाने को मुख्य कारण माना है. यही कारण है कि अब प्रदेश में बाघों के जीन पूल को बढ़ाने की मांग उठने लगी है.
रणभंभौर की बांझ रही बाघिन
टी 18 बाघिन मछली के आखिरी लिटर की मादा, सरिस्का ट्रांसलोकेट की गई
टी 35 रणथंभौर से निकल कोटा के सुल्तानपुर में टेरिटरी बनाई, 8 वर्ष की उम्र में मृत्यु
टी 37 बाघिन टी 15 की बेटी क्वालजी में टेरेटरी बनाई, 6 वर्ष की उम्र में मृत्यु
टी 44 बाघिन टी 30 के दूसरे लिटर से जन्मी, सरिस्का ट्रांसलोकेट की गई
टी 48 इंडाल क्षेत्र में रहवास, करीब 15 वर्ष की उम्र
सरिस्का की बांझ रही बाघिन
एसटी 3 रणथंभौर से ट्रांसलोकेट कर लाई गई थी, लेकिन निसंतान रही
एसटी 5 रणथंभौर से ट्रांसलोकेट कर लाई गई थी, लेकिन निसंतान रही
एसटी 7 सरिस्का की राजमाता बाघिन एसटी 2 की बेटी, उम्र 10 वर्ष
एसटी 8 सरिस्का की राजमाता बाघिन एसटी 2 की बेटी, उम्र 10 वर्ष
प्रदेश में पहली बार बाघों की संख्या 100 के पार पहुंची है. इस संख्या में और इजाफा हो सकता था लेकिन रणथंभौर और सरिस्का की 7 बाघिन बांझ रह गई और कुनबे को आगे बढ़ाने में नाकाम रही. बाघिन के मछली के आखिरी लिटर की मादा टी 18 को मोर डूंगरी गुढा क्षेत्र से एयर लिफ्ट कर सरिस्का भेजा गया था. इसकी दो बहने टी 17 व टी 19 ने शावकों को जन्म दिया लेकिन सरिस्का आने के बाद टी 18 जो सरिस्का में एसटी 3 के नाम से जानी गई हमेशा बांझ ही रही. इसी तरह रणथंभौर से सरिस्का लाई गई टी 44 जो सरिस्का में एसटी 5 कहलाई वह भी बच्चे पैदा नहीं कर सकी. रणथंभौर की टी 35, टी 37, टी 48 और सरिस्का की एसटी 7 और एसटी 8 भी बांझपन का शिकार हो गई. टाइगर मैन के तौर पर पहचान रखने वाले दौलत सिंह कहते हैं कि कुछ बाघिन नए क्षेत्र से सामन्जस्य नहीं बैठा पाई तो कुछ ऐसी जगह रही कि वहां मेटिंग के लिए नर बाघ नहीं था. दूसरी ओर स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड के सदस्य सुनील मेहता कहते हैं कि प्रदेश में अधिकांश बाघ एक ही मां की संतान हैं, ऐसे में इनमें जीन पूल से संबंधित समस्या भी हो सकती हैं. मेहता समान जीन पूल को बाघ-बाघिनों में निसंतानता का बड़ा कारण मानते हैं. इसी तरह सरिस्का फाउंडेशन के संस्थापक दिनेश दुर्रानी का कहना है कि मेटिंग पार्टनर नहीं मिले का स्ट्रेस और समान जीन पूल टाइगर्स में निसंतानता का बड़ा कारण हैं. मेहता और दुर्रानी दोनों का ही मानना है कि प्रदेश के बाघों का जीन पूल बढ़ाने के प्रयास करने चाहिएं इसके लिए महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से बाघ लाने के प्रयास करने चाहिएं. इससे जीन पूल का तो विस्तार तो होगा ही बाघ-बाघिनों में नपुंसकता और बांझापन की समस्या भी दूर होगी.
दरअसल ऐसा पहली बार हुआ है जब प्रदेश में बाघों की संख्या एक सौ से ज्यादा यानी करीब 111 बाघ हैं. रणथंभौर में 78, सरिस्का में 25, मुकंदरा और रामगढ़ विषधारी में 2-2 और धौलपुर-करौली क्षेत्र में 6 से 8 बाघ हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों का साफ कहना है कि एक ही कुल के होने के चलते प्रदेश के बाघों में की शारीरिक बनावट और व्यवहार लगभग एक जैसा है. इसलिए बेहतर होगा कि महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों से बाघ लाकर जीन पूल को ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है.