नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने मंगलवार को इस गणतंत्र दिवस पर ‘भारतीयता’ मनाने का आह्वान करते हुए कहा कि मानवता का कोरोना वायरस के विरुद्ध संघर्ष अब भी जारी है और भारत के लिए गर्व की बात है कि हमने इस महामारी के खिलाफ असाधारण दृढ़-संकल्प और कार्य-क्षमता का प्रदर्शन किया. राष्ट्रपति ने 73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा कि लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व भारत के आधार हैं. इसके साथ ही उन्होंने जोर दिया कि संविधान में उल्लिखित मौलिक कर्तव्यों का पालन मौलिक अधिकारों के लिए उचित वातावरण बनाता है.
उन्होंने कहा कि हम सबको एक सूत्र में बांधने वाली भारतीयता के गौरव का यह उत्सव है. सन 1950 में आज ही के दिन हम सब की इस गौरवशाली पहचान को औपचारिक स्वरूप प्राप्त हुआ था. उस दिन, भारत विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ और हम, भारत के लोगों ने एक ऐसा संविधान लागू किया जो हमारी सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है. हमारे विविधतापूर्ण और सफल लोकतंत्र की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है. हर साल गणतंत्र दिवस के दिन हम अपने गतिशील लोकतन्त्र तथा राष्ट्रीय एकता की भावना का उत्सव मनाते हैं. महामारी के कारण इस वर्ष के उत्सव में धूम-धाम भले ही कुछ कम हो परंतु हमारी भावना हमेशा की तरह सशक्त है.
उन्होंने कहा कि हमारे संविधान का कलेवर विस्तृत है क्योंकि उसमें, राज्य के काम-काज की व्यवस्था का भी विवरण है. लेकिन संविधान की संक्षिप्त प्रस्तावना में लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मार्गदर्शक सिद्धांत, सार-गर्भित रूप से उल्लिखित हैं. इन आदर्शों से उस ठोस आधारशिला का निर्माण हुआ है जिस पर हमारा भव्य गणतंत्र मजबूती से खड़ा है. इन्हीं जीवन-मूल्यों में हमारी सामूहिक विरासत भी परिलक्षित होती है.
उन्होंने कहा कि इन जीवन-मूल्यों को, मूल अधिकारों तथा नागरिकों के मूल कर्तव्यों के रूप में हमारे संविधान द्वारा बुनियादी महत्व प्रदान किया गया है. अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों का नागरिकों द्वारा पालन करने से मूल अधिकारों के लिए समुचित वातावरण बनता है. आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने के मूल कर्तव्य को निभाते हुए हमारे करोड़ों देशवासियों ने स्वच्छता अभियान से लेकर कोविड टीकाकरण अभियान को जन-आंदोलन का रूप दिया है. ऐसे अभियानों की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय हमारे कर्तव्यपरायण नागरिकों को जाता है. मुझे विश्वास है कि हमारे देशवासी इसी कर्तव्य-निष्ठा के साथ राष्ट्र हित के अभियानों को अपनी सक्रिय भागीदारी से मजबूत बनाते रहेंगे.
राष्ट्रपति ने कहा कि मानव-समुदाय को एक-दूसरे की सहायता की इतनी जरूरत कभी नहीं पड़ी थी जितनी आज है. अब दो साल से भी अधिक समय बीत गया है लेकिन मानवता का कोरोना वायरस के विरुद्ध संघर्ष अब भी जारी है. इस महामारी में हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है. पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर आघात हुआ है. विश्व समुदाय को अभूतपूर्व विपदा का सामना करना पड़ा है. नित नए रूपों में यह वायरस नए संकट प्रस्तुत करता रहा है. यह स्थिति, मानव जाति के लिए एक असाधारण चुनौती बनी हुई है.
उन्होंने कहा कि महामारी का सामना करना भारत में अपेक्षाकृत अधिक कठिन होना ही था. हमारे देश में जनसंख्या का घनत्व बहुत ज्यादा है, और विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते हमारे पास इस अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिए उपयुक्त स्तर पर बुनियादी ढांचा तथा आवश्यक संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे. लेकिन ऐसे कठिन समय में ही किसी राष्ट्र की संघर्ष करने की क्षमता निखरती है. मुझे यह कहते हुए गर्व का अनुभव होता है कि हमने कोरोना-वायरस के खिलाफ असाधारण दृढ़-संकल्प और कार्य-क्षमता का प्रदर्शन किया है.
उन्होंने कहा कि पहले वर्ष के दौरान ही, हमने स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को विस्तृत तथा मजबूत बनाया और दूसरे देशों की मदद के लिए भी आगे बढ़े. दूसरे वर्ष तक, हमने स्वदेशी टीके विकसित कर लिए और विश्व इतिहास में सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया. यह अभियान तेज गति से आगे बढ़ रहा है. हमने अनेक देशों को वैक्सीन तथा चिकित्सा संबंधी अन्य सुविधाएं प्रदान कराई हैं. भारत के इस योगदान की वैश्विक संगठनों ने सराहना की है.
राष्ट्रपति कोविंद ने 73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, देश और विदेश में रहने वाले सभी भारतीयों को बधाई देते हुए कहा कि गणतन्त्र दिवस का यह दिन उन महानायकों को याद करने का अवसर भी है जिन्होंने स्वराज के सपने को साकार करने के लिए अतुलनीय साहस का परिचय दिया तथा उसके लिए देशवासियों में संघर्ष करने का उत्साह जगाया. दो दिन पहले, 23 जनवरी को हम सभी देशवासियों ने ‘जय-हिन्द’ का उद्घोष करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती पर उनका पुण्य स्मरण किया है. स्वाधीनता के लिए उनकी ललक और भारत को गौरवशाली बनाने की उनकी महत्वाकांक्षा हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है.
उन्होंने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि सन 1930 में महात्मा गांधी ने देशवासियों को पूर्ण स्वराज दिवस मनाने का तरीका समझाया था. उन्होंने कहा था- चूंकि हम अपने ध्येय को अहिंसात्मक और सच्चे उपायों से ही प्राप्त करना चाहते हैं, और यह काम हम केवल आत्म-शुद्धि के द्वारा ही कर सकते हैं, इसलिए हमें चाहिए कि उस दिन हम अपना सारा समय यथाशक्ति कोई रचनात्मक कार्य करने में बिताएं.
कोविंद ने कहा कि गांधीजी चाहते थे कि हम अपने भीतर झांक कर देखें, आत्म-निरीक्षण करें और बेहतर इंसान बनने का प्रयास करें, और उसके बाद बाहर भी देखें, लोगों के साथ सहयोग करें और एक बेहतर भारत तथा बेहतर विश्व के निर्माण में अपना योगदान करें. कोविड-19 के संदर्भ में उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से, संकट की स्थितियां आती रही हैं, क्योंकि वायरस, अपने बदलते स्वरूपों में वापसी करता रहा है. अनगिनत परिवार, भयानक विपदा के दौर से गुजरे हैं. हमारी सामूहिक पीड़ा को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. लेकिन एकमात्र सांत्वना इस बात की है कि बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकी है.
उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि महामारी का प्रभाव अभी भी व्यापक स्तर पर बना हुआ है, अतः लोगों को सतर्क रहना चाहिए और अपने बचाव में तनिक भी ढील नहीं देनी चाहिए. कोविड महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा बताई गई सावधानियों का पालन करना आज हर देशवासी का राष्ट्र-धर्म बन गया है. यह राष्ट्र-धर्म हमें तब तक निभाना ही है, जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता.
राष्ट्रपति ने कहा कि संकट की इस घड़ी में हमने देखा कि कैसे हम सभी देशवासी एक परिवार की तरह आपस में जुड़े हुए हैं. कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करके, यहां तक कि मरीजों की देखभाल के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर भी डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स ने मानवता की सेवा की है. बहुत से लोगों ने देश में गतिविधियों को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए यह सुनिश्चित किया है कि अनिवार्य सुविधाएं उपलब्ध रहें. उन्होंने कहा कि इन प्रयासों के बल पर अर्थव्यवस्था ने फिर से गति पकड़ ली है. प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत की दृढ़ता का यह प्रमाण है कि पिछले साल आर्थिक विकास में आई कमी के बाद इस वित्त वर्ष में अर्थ-व्यवस्था के प्रभावशाली दर से बढ़ने का अनुमान है. यह पिछले वर्ष शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता को भी दर्शाता है.
पिछले वर्ष जून में कानपुर देहात जिले में स्थित अपनी जन्मभूमि परौंख गांव की यात्रा का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के जो लोग अपने परिश्रम और प्रतिभा से जीवन की दौड़ में आगे निकल सके हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि अपनी जड़ों को, अपने गांव-कस्बे-शहर को और अपनी माटी को हमेशा याद रखिए. सुरक्षा बलों की सराहना करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे सैनिक और सुरक्षाकर्मी देशाभिमान की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. हिमालय की असहनीय ठंड में और रेगिस्तान की भीषण गर्मी में अपने परिवार से दूर वे मातृभूमि की रक्षा में तत्पर रहते हैं. हमारे सशस्त्र बल तथा पुलिसकर्मी देश की सीमाओं की रक्षा करने तथा आंतरिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए रात-दिन चौकसी रखते हैं ताकि अन्य सभी देशवासी चैन की नींद सो सकें.
उन्होंने कहा कि जब कभी किसी वीर सैनिक का निधन होता है तो सारा देश शोक-संतप्त हो जाता है. पिछले महीने एक दुर्घटना में देश के सबसे बहादुर कमांडरों में से एक - जनरल बिपिन रावत - उनकी धर्मपत्नी तथा अनेक वीर योद्धाओं को हमने खो दिया. इस हादसे से सभी देशवासियों को गहरा दुख पहुंचा. राष्ट्रपति ने कहा कि देशप्रेम की भावना देशवासियों की कर्तव्य-निष्ठा को और मजबूत बनाती है. चाहे आप डॉक्टर हों या वकील, दुकानदार हों या ऑफिस-वर्कर, सफाई कर्मचारी हों या मजदूर, अपने कर्तव्य का निर्वहन निष्ठा व कुशलता से करना देश के लिए आपका प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण योगदान है.
उन्होंने कहा कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत आज बेहतर स्थिति में है. इक्कीसवीं सदी को जलवायु परिवर्तन के युग के रूप में देखा जा रहा है और भारत ने अक्षय ऊर्जा के लिए अपने साहसिक और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ विश्व-मंच पर नेतृत्व की स्थिति बनाई है. उन्होंने कहा कि इस वर्ष जब अपने देश की आजादी के 75 साल पूरे होंगे तब हम अपने राष्ट्रीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार करेंगे. इस अवसर को हम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहे हैं. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि बड़े पैमाने पर हमारे देशवासी, विशेषकर हमारे युवा, इस ऐतिहासिक आयोजन में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं. यह न केवल अगली पीढ़ी के लिए, बल्कि हम सभी के लिए अपने अतीत के साथ पुनः जुड़ने का एक शानदार अवसर है.
उन्होंने कहा कि हमारा स्वतंत्रता संग्राम हमारी गौरवशाली ऐतिहासिक यात्रा का एक प्रेरक अध्याय था. स्वाधीनता का यह पचहत्तरवां वर्ष उन जीवन-मूल्यों को पुनः जागृत करने का समय है जिनसे हमारे महान राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा मिली थी. हमारी स्वाधीनता के लिए अनेक वीरांगनाओं और सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं. स्वाधीनता दिवस तथा गणतन्त्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व न जाने कितनी कठोर यातनाओं एवं बलिदानों के पश्चात नसीब हुए हैं. आइए! गणतन्त्र दिवस के अवसर पर हम सब श्रद्धापूर्वक उन अमर बलिदानियों का भी स्मरण करें. (भाषा)