मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.9 प्रतिशत कर दी. खुदरा महंगाई को काबू में लाने और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के ब्याज दर में आक्रामक वृद्धि से उत्पन्न दबाव से निपटने के लिये केंद्रीय बैंक ने यह कदम उठाया है.
साथ ही केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 7.0 प्रतिशत कर दिया है. रेपो दर में वृद्धि का मतलब है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा होगा और मौजूदा ऋण की मासिक किस्त बढ़ेगी. यह चौथी बार है जब नीतिगत दर में वृद्धि की गयी है. मई से लेकर अबतक आरबीआई रेपो दर में 1.90 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है.
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिन की बैठक में लिये गये निर्णयों की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने टेलीविजन पर प्रसारित बयान में कहा कि एमपीसी ने रेपो दर 0.5 प्रतिशत बढ़ाकर 5.9 प्रतिशत करने का निर्णय किया है. उन्होंने कहा कि एमपीसी के छह सदस्यों में पांच ने नीतिगत दर में वृद्धि का समर्थन किया. साथ ही समिति ने मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये नरम नीतिगत रुख को वापस लेने पर ध्यान देते रहने का भी फैसला किया है.
मुद्रास्फीति अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर बरकरार रखा:
दास ने कहा कि हम कोविड महामारी संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के नीतिगत दर में आक्रामक वृद्धि के कारण उत्पन्न नये ‘तूफान’ का सामना कर रहे हैं. आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये मुद्रास्फीति अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर बरकरार रखा है. दूसरी छमाही में इसके करीब छह प्रतिशत रहने का अनुमान है. उल्लेखनीय है कि अगस्त में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति सात प्रतिशत थी, जो आरबीआई के संतोषजनक स्तर से ऊपर है.
अगर तेल के दाम में मौजूदा नरमी आगे बनी रही, तो महंगाई से राहत मिलेगी:
दास ने कहा कि अगर तेल के दाम में मौजूदा नरमी आगे बनी रही, तो महंगाई से राहत मिलेगी. उन्होंने कहा कि विभिन्न पहलुओं पर गौर करने के बाद चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7.0 प्रतिशत किया गया है. हालांकि, उन्होंने कहा कि वैश्विक संकट के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है. सोर्स- भाषा