रवि योग में मनाई जायेगी 20 मार्च को आमलकी एकादशी, मिलता है यज्ञों का पुण्य, जानें शुभ योग और पूजा विधि

जयपुरः 20 मार्च को फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी है. इसे आमलकी यानी आंवला एकादशी कहते हैं. फाल्गुन महीने में आने के कारण ये हिंदी कैलेंडर की आखिरी एकादशी होती है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा के साथ ही आंवले का दान करने का भी विधान है. जिससे कई यज्ञों का फल मिलता है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि 20 मार्च को आंवला एकादशी है. यानी इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ को भी खासतौर पूजा जाएगा. तभी ये एकादशी व्रत पूरा माना जाता है, क्योंकि आंवले के पेड़ को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है. इस दिन आंवला खाने से बीमारियां खत्म होती हैं. एकादशी पर किए गए व्रत-उपवास और पूजन से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. कार्यों में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और सफलता मिलती है. ये व्रत भगवान विष्णु के लिए किया जाता है. आमलकी एकादशी पर विष्णु जी के साथ आंवले की और माता अन्नपूर्णा की पूजा करने की परंपरा है. इस बार ये व्रत बुधवार को आने से इस दिन गणेश जी और बुधवार ग्रह की पूजा का शुभ योग है.

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि बुधवार और आमलकी एकादशी के योग में विष्णु जी, आंवले का पेड़, अन्नपूर्णा माता के साथ ही गणेश जी और बुध ग्रह की पूजा भी जरूर करें. एकादशी की शाम तुलसी के पास दीपक अनिवार्य रूप से जलाना चाहिए. भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही विष्णु जी के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करते रहें. श्रीकृष्ण का अभिषेक करें और कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करें. श्रीकृष्ण के साथ गौ माता की भी पूजा जरूर करें. किसी गौशाला में गायों की देखभाल के लिए दान-पुण्य करें. किसी मंदिर में पूजन सामग्री का सामान जैसे कुमकुम, चंदन, मिठाई, तेल-घी, हार-फूल, भगवान के वस्त्र आदि का दान करें. आमलकी एकादशी पर खाने में आंवले का सेवन जरूर करें. आंवले का रस भी पी सकते हैं. आंवले का दान भी करें. माता अन्नपूर्णा अन्न की देवी है. इस तिथि पर देवी की पूजा करें और जरूरतमंद लोगों अन्न का दान करें.

शुभ योग
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि आमलकी एकादशी पर काफी शुभ योग बन रहे हैं. इस दिन रवि योग के साथ अतिगण्ड और पुष्य नक्षत्र बन रहा है. सुबह 06:25 मिनट से रवि योग शुरू होगा, जो रात 10:38 मिनट पर समाप्त होगा. इसके साथ ही अतिगण्ड योग सुबह से शाम 05:01 मिनट तक है. इसके अलावा पुष्य नक्षत्र रात 10:38 मिनट तक है.

रंगभरी और आमलकी एकादशी
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली से चार दिन पहले आने से इसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन से बनारस में बाबा विश्वनाथ को होली खेलकर इस पर्व की शुरुआत की जाती है. ब्रह्मांड पुराण के मुताबिक इस दिन आंवले के पेड़ और भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है. इस दिन शुभ ग्रह योगों के प्रभाव से व्रत और पूजा का पुण्य और बढ़ जाएगा.

मिलता है यज्ञों का पुण्य
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पद्म और विष्णु धर्मोत्तर पुराण का कहना है कि आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को बहुत प्रिय होता है. इस पेड़ में भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी का भी निवास होता है. इस वजह से आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ को पूजन और आंवले का दान करने से समस्त यज्ञों और 1 हजार गायों के दान के बराबर फल मिलता है. आमलकी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष मिल जाता है.

तिल, गंगाजल और आंवले से नहाने की परंपरा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल की सात बूंद, एक चुटकी तिल और एक आंवला डालकर उस जल से नहाना चाहिए. इसे पवित्र या तीर्थ स्नान कहा जाता है. ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं. इसके बाद दिनभर व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए. इससे एकादशी व्रत का पूरा पुण्य फल मिलता है.

सूर्यास्त के बाद जलाएं दीपक
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि विष्णु जी की पूजा में तुलसी का इस्तेमाल खासतौर पर किया जाता है. मान्यता है कि तुलसी के पत्तों के बिना विष्णु जी भोग स्वीकार नहीं करते हैं, इसलिए भोग के साथ ही तुलसी जरूर रखी जाती है. एकादशी विष्णु जी की तिथि है, लेकिन इस दिन विष्णु प्रिया तुलसी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए. सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं और शाम को सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं. ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श न करें. दीपक जलाकर दूर से ही परिक्रमा करें.

पूजा विधि
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सुबह उठकर भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प करें. संकल्प लेने के बाद स्नान से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. दीपक जलाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. पूजा के बाद आंवले के पेड़ के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करें. आंवले के वृक्ष का धूप, दीप, चंदन, रोली, फूल और अक्षत से पूजन कर किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. अगले दिन स्नान कर स्नान कर पूजन के बाद कलश, वस्त्र और आंवला का दान करना चाहिए. इसके बाद भोजन ग्रहण कर व्रत खोलना चाहिए.