अरावली को बचाने अशोक गहलोत ने छेड़ा अभियान, सोशल मीडिया पर बदली अपनी डीपी, देखिए खास रिपोर्ट

जयपुरः पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज अरावली संरक्षण के पक्ष में चल रहे #SaveAravalli अभियान का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल पिक्चर (DP) बदल दी. उन्होंने कहा कि यह महज एक फोटो बदलना नहीं, बल्कि उस नई परिभाषा के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध है, जिसके तहत 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को 'अरावली' मानने से इंकार किया जा रहा है. गहलोत ने कहा कि अरावली के संरक्षण को लेकर आए इन बदलावों ने पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है. उन्होंने जनता से भी अपील की है कि वे अपनी डीपी बदलकर इस मुहिम का हिस्सा बनें.

अरावली की पहाड़ियों को खनन के दायरे में लाने वाली केंद्र सरकार की नई परिभाषा को लेकर अब राजस्थान में सियासी बवंडर उठता दिख रहा है. राजस्थान में कांग्रेस ने सेव अरावली कैंपेन लॉन्च कर दिया है जिसकी शुरुआत पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने की है. गहलोत ने कहा कि  केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ऐसी रिपोर्ट पेश की है जिससे अरावली का दायरा सिमट गया है. अरावली राजस्थान का केवल पर्वत नहीं, हमारा 'रक्षा कवच' है. केंद्र सरकार की सिफारिश पर इसे '100 मीटर' के दायरे में समेटना, प्रदेश की 90% अरावली के 'मृत्यु प्रमाण पत्र' पर हस्ताक्षर करने जैसा है. सबसे भयावह तथ्य यह है कि राजस्थान की 90% अरावली पहाड़ियाँ 100 मीटर से कम हैं. यदि इन्हें परिभाषा से बाहर कर दिया गया, तो यह केवल नाम बदलना नहीं है, बल्कि कानूनी कवच हटाना है. इसका सीधा मतलब है कि इन क्षेत्रों में अब वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं होगा और खनन बेरोकटोक हो सकेगा. गहलोत ने कहा कि पहाड़ की परिभाषा उसकी ऊँचाई से नहीं, बल्कि उसकी भूगर्भीय संरचना होती है. यह फैसला पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि खनन माफियाओं के लिए 'रेड कार्पेट' है. थार के रेगिस्तान को दिल्ली तक जाने का निमंत्रण देकर सरकार आने वाली पीढ़ियों के साथ जो अन्याय कर रही है, उसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा. विडंबना ये है कि सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई इसलिए शुरू हुई थी ताकि अरावली को स्पष्ट रूप से पहचाना और बचाया जा सके. लेकिन केंद्र सरकार की जिस सिफारिश को कोर्ट ने माना, उसने अरावली के 90% हिस्से को ही तकनीकी रूप से 'गायब' कर दिया. गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को देखते हुए अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करे. यह फैसला सीधा विनाश को निमंत्रण देने वाला है.

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली की नई परिभाषा को अस्तित्व के लिए खतरनाक बताते हुए तीन प्रमुख चिंताएं जाहिर कीं:

1 मरुस्थल एवं लू के खिलाफ कुदरती दीवार
अरावली कोई मामूली पहाड़ नहीं, बल्कि प्रकृति की बनाई हुई 'ग्रीन वॉल' है
यह थार रेगिस्तान की रेत और गर्म हवाओं (लू) को दिल्ली, हरियाणा और यूपी के उपजाऊ मैदानों की ओर बढ़ने से रोकती है
यदि 'गैपिंग एरिया' या छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोल दिया गया
तो रेगिस्तान हमारे दरवाज़े तक आ जाएगा और तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि होगी

2. प्रदूषण से रक्षा:
ये पहाड़ियाँ और यहाँ के जंगल एनसीआर (NCR) और आसपास के शहरों के लिए 'फेफड़ों' (Lungs) का काम करते हैं
ये धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं

3. गहराता जल संकट और ईकोलॉजी:
इसकी चट्टानें बारिश के पानी को ज़मीन के भीतर भेजकर भूजल रिचार्ज करती हैं
अगर पहाड़ खत्म हुए, तो भविष्य में पीने के पानी की गंभीर किल्लत होगी
वन्यजीव लुप्त हो जाएंगे और पूरी इकोलॉजी खतरे में पड़ जाएगी.

गहलोत ने केंद्र सरकार और माननीय सर्वोच्च न्यायालय से विनम्र अपील की है कि भावी पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए इस परिभाषा पर पुनर्विचार किया जाए. अरावली को 'फीते' या 'ऊंचाई' से नहीं, बल्कि इसके 'पर्यावरणीय योगदान' के आधार पर आंका जाना चाहिए.