जयपुर : कम उम्र में बढ़ रहे हृदयाघात के मामलों के बीच राहत की उम्मीद सामने आयी है. राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में कफज हृद्रोग (क्रॉनिक स्टेबल एंजाइना) पर शोध किया है.
यह रोग उस स्थिति को दर्शाता है जब शारीरिक परिश्रम के दौरान छाती में दर्द, सांस फूलना, अत्यधिक थकान, कमजोरी और घबराहट जैसी समस्याएं होती हैं. इसका मुख्य कारण हृदय की रक्त वाहिनियों में वसा या प्लाक का जमा होना होता है. आयुर्वेद के अनुसार, यह रोग मुख्यतः कफ दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है.
इन्हीं विकारों को लेकर संस्थान के काय चिकित्सा विभाग में अनुसंधान शुरू हुआ है. विभाग के प्रोफेसर उदय राज सरोज के निर्देशन में एमडी छात्रा डॉ.लिट्टी मैथ्यू ने अनुसंधान किया. जिसमें आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित औषधीय योगों के माध्यम से हृदय की धमनियों में जमे वसा यानी कोलेस्ट्रॉल को घटाकर रक्त संचार को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है.
इस शोध में रोगियों को विशिष्ट आयुर्वेदिक औषधियां देकर, उनके कोलेस्ट्रॉल स्तर, रक्तचाप, धड़कन की गति, ईसीजी रिपोर्ट और संपूर्ण हृदय कार्यप्रणाली की नियमित मॉनिटरिंग की जा रही है. अब तक के परिणाम यह संकेत देते हैं कि आयुर्वेदिक से धमनियों में वसा का स्तर घटाकर रोगी को राहत देना संभव है.