जयपुर : राजस्थान में अनेक ऐसे महापुरूष हुए जिन्होंने मानव देह धारण कर अपने कर्म और तप से यहां के लोक जीवन को आलोकित किया. उनके चरित्र, कर्म और वचनबद्धता से उन्हें जनमानस में लोकदेवता की पदवी मिली और वे जन-जन में पूजे जाने लगे. ऐसे ही लोकदेवताओं में बाबा रामदेव जिनका प्रमुख मंदिर जैसलमेर जिले के रामदेवरा में है, सद्भावना की जीती जागती मिसाल हैं. हिन्दू समाज में वे "बाबा रामदेव" एवं मुस्लिम समाज "रामसा पीर" के नाम से पूजनीय हैं. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि बाबा रामदेव को कृष्ण भगवान का अवतार माना जाता है. उनकी अवतरण तिथि भाद्र माह के शुक्ल पक्ष दितीय को रामदेवरा मेला 5 सितंबर को शुरू होता है. बाबा रामदेव के प्राकट्य दिवस पर उदया तिथि में रवि योग रहेगा. यह मेला एक महीने से अधिक चलता है. वैसे बहुत से श्रद्धालु भाद्र माह की दशमी यानी 13 सितंबर को रामदेव जयंती पर रामदेवरा अवश्य पहुँचना चाहते हैं. म्हारो हेलाे सुनो जी रामा पीर.., घणी-घणी खम्मा बाबा रामदेव जी नै, पिछम धरां स्यूं म्हारा पीर जी पधारिया, घर अजमल अवतार लियो, खम्मा-खम्मा हो म्हारा रुणिचै रा धनियां जैसे भजनों पर झूमते-नाचते हुए श्रद्धालु रामदेवरा पहुचते है. राजस्थान में पोकरण से क़रीब 12 किलोमीटर दूर रामदेवरा में मध्यकालीन लोक देवता बाबा रामदेव के दर्शन करने आते हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि वर्ष में दो बार रामदेवरा में भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है. शुक्ल पक्ष में तथा भादवा और माघ में दूज से लेकर दशमीं तक मेला भरता है. भादवा के महिने में राजस्थान के किसी सड़क मार्ग पर निकल जायें, सफेद रंग की या पचरंगी ध्वजा को हाथ में लेकर सैंकड़ों जत्थे रामदेवरा की ओर जाते नजर आते हैं. इन जत्थों में सभी आयु वर्ग के नौजवान, बुजुर्ग, स्त्री-पुरूष और बच्चे पूरे उत्साह से बिना थके अनवरत चलते रहते हैं. बाबा रामदेव के जयकारे गुंजायमान करते हुए यह जत्थे मीलों लम्बी यात्रा कर बाबा के दरबार में हाजरी लगाते हैं. साथ लेकर गये ध्वजाओं को मुख्य मंदिर में चढ़ा देते हैं. भादवा के मेले में महाप्रसाद बनाया जाता है. यात्री भोजन भी करते हैं और चन्दा भी चढ़ाते हैं. यहां आने वालों के लिए बड़ी संख्या में धर्मशालाएं और विश्राम स्थल बनाये गये हैं. सरकार की ओर से मेले में व्यापक प्रबंध किये जाते है. रात्रि को जागरणों के दौरान रामदेवजी के भोपे रामदेवजी की थांवला एवं फड़ बांचते हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक माने जाने वाले लोकदेवता बाबा रामदेव की समाधि के दर्शन के लिए विभिन्न धर्मों को मानने वाले, ख़ास तौर पर आदिवासी श्रद्धालु देश भर से इस सालाना मेले में आते हैं. मेले के दौरान बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लंबी कतारें लगती हैं और जिला प्रशासन के अलावा विभिन्न स्वयंसेवी संगठन दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए निःस्वार्थ भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं. लोकदेवता बाबा रामदेव जी के मेले में देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु सर्वप्रथम जोधपुर में मसूरिया पहाड़ी पर स्थित बाबा रामदेव जी के गुरु बाबा बालीनाथ जी की समाधि के दर्शन के बाद रूणिचा धाम बाबा रामदेव जी के दर्शन करने के लिए पैदलयात्रा के साथ साथ विभिन्न साधनों का प्रयोग करके बाबा रामदेव जी के प्रति अटूट श्रद्धा और आस्था का परिचय दे रहे हैं. इन श्रद्धालुओं के स्वागत व मान मनुहार और पैदल यात्रियों की सेवा के लिए जोधपुर में अनेकों सेवा शिविर आयोजित किए जाते हैं. लेकिन कोरोना महामारी के चलते मेला नहीं लगेगा.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार व्यक्तिगत, सामुदायिक, सामूहिक और संघीय समितियों के बेनर तले लगाये जाने वाले इन विभिन्न शिविरों में जातरूओं के लिए चाय, दूध, कॉफी, जूस, बिस्किट, फल, नाश्ता से लेकर पूर्ण भोजन की व्यवस्था के साथ साथ पैदल यात्रियों के पांवों में पड़े छालों पर मरहम पट्टी बांधकर, मालिश करके उनके विश्राम, नहाने धोने व नित्य कर्म करने की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं. कई शिविरों में बड़े अनुशासित ढंग से स्वच्छता और सुचिता के साथ उच्च कोटि की सुविधाओं से जातरुओं की सेवा की जाती है. एक और मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति ईश्वर के दर्शन करने के लिए यात्रा करने जाता है तो उसकी यात्रा को सुगम बनाने में अगर आप सहयोग देते हैं तो आपको भी ईश्वर के साक्षात दर्शन करने का पुण्य लाभ मिलता है. रुणिचा में बाबा ने जिस स्थान पर समाधि ली, उस स्थान पर बीकानेर के राजा गंगासिंह ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. इस मंदिर में बाबा की समाधि के अलावा उनके परिवार वालों की समाधियां भी स्थित हैं. मंदिर परिसर में बाबा की मुंहबोली बहन डाली बाई की समाधि, डालीबाई का कंगन एवं राम झरोखा भी स्थित हैं.