जैसलमेर बॉर्डर बना योग का नया धाम, BSF जवानों ने सरहद से दिया खास संदेश, देखिए खास रिपोर्ट

जैसलमेरः रेत की तपती ज़मीन, लू के थपेड़ों सी गर्मी रातें. और बीच में सीना ताने खड़े देश के प्रहरी. यहां कोई मंच नहीं, कोई सुविधा नहीं. फिर भी जब सूरज की पहली किरण सरहद पर गिरती है, तब बीएसएफ के जवान सिर्फ हथियार नहीं उठाते—बल्कि योग की साधना भी करते हैं. अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से पहले जैसलमेर बॉर्डर से एक अद्भुत प्रेरणा सामने आई है. रेत के धोरों पर जब सैनिक प्राणायाम करते हैं, तब दुनिया को एक संदेश जाता है—कि योग सिर्फ आसन नहीं, ये जीवन की एक गहरी साधना है. आज हम आपको ले चलेंगे भारत-पाकिस्तान सीमा के उस कोने में, जहां योग बना है शक्ति, और प्राणायाम बना है परम शांति का स्रोत. आज फर्स्ट इंडिया पंहुचा है भारत पाक अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर एक प्रेरणा से भरी सुखद तस्वीर दिखवाने.    

बीएसएफ की ड्यूटी कोई साधारण नौकरी नहीं होती. यह ज़िंदगी को समर्पित कर देने वाली जिम्मेदारी है, जहां हर दिन देश की हिफाजत का प्रण दोहराया जाता है. जैसलमेर के रेगिस्तानी इलाकों में तैनात जवानों के लिए न कोई शेड है, न आराम की घड़ी. दिन के समय तापमान 48 डिग्री तक पहुंचता है और रात में लू के थपेड़ों सी गर्मी रातें धूल भरी आंधियों में बदल जाता है. लेकिन इन विषम परिस्थितियों में भी जो चीज जवानों को मानसिक और शारीरिक तौर पर स्थिर रखती है वो है योग. सुबह की पहली रोशनी के साथ जवान अपने हथियारों के साथ नहीं, बल्कि योगासन और ध्यान की मुद्रा में दिखते हैं. उनकी सांसें जैसे प्रकृति से तालमेल बिठा रही हों. उनका मन जैसे हर चुनौती से पहले स्वयं को साधने की तैयारी कर रहा हो. यहां योग एक दिन की रस्म नहीं, बल्कि रोज़ का रूटीन है. हर ड्यूटी से पहले, हर गश्त से पहले, जवान कुछ मिनट निकालते हैं सिर्फ अपने लिए—शरीर और मन को स्थिर करने के लिए. और यही आत्मस्थिरता उन्हें सीमा पर अडिग बनाए रखती है.

हाल ही में जैसलमेर बॉर्डर पर हुए ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान की साजिशों को बेनकाब किया. इस पूरे ऑपरेशन के दौरान जवानों ने लगातार हफ्तों तक मानसिक दबाव में काम किया. हर पल अलर्ट, हर कदम खतरे के साए में. ऐसे समय में जब तनाव सिर के ऊपर तक पहुंच जाए, तब केवल हथियार काम नहीं आते—मन की स्थिरता ज़रूरी होती है. और ये स्थिरता जवानों को योग से मिली. ऑपरेशन के बाद बॉर्डर पर एक अजीब किस्म की चुप्पी थी—ना फायरिंग, ना हलचल, लेकिन तनाव बना हुआ था. इसी तनाव को कम करने के लिए बीएसएफ अधिकारियों ने नियमित योग सत्रों को और सशक्त किया.जवानों को प्राणायाम, ध्यान, और विशेष श्वसन तकनीक सिखाई गईं, जिससे वो अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकें. परिणाम सामने था—जहां पहले तनाव दिखता था, वहां अब आत्मविश्वास और संयम नजर आने लगा. योग ने जवानों को सिर्फ मानसिक ताकत ही नहीं दी, बल्कि उनमें वो धैर्य भी भरा जिससे वो हर चुनौती को स्थिर भाव से देख सकें. उनकी नींद बेहतर हुई, निर्णय लेने की क्षमता में सुधार हुआ, और ड्यूटी के दौरान उनका फोकस और ज्यादा मजबूत हो गया. बीएसएफ अफसरों का मानना है कि—"सिर्फ हथियार नहीं, अब मानसिक युद्ध की तैयारी भी उतनी ही ज़रूरी है. और इसमें योग सबसे बड़ा अस्त्र है."

सरहद पर तैनात जवान जब योग की बात करते हैं तो उनके शब्दों में एक अलग ऊर्जा होती है. सरहद पर तैनात जवान बताते है की पहले जब ड्यूटी से आते थे तो पूरा शरीर थका रहता था, मन बेचैन रहता था. लेकिन अब हम योग करते हैं, प्राणायाम करते हैं, तो थकान भी आधी हो जाती है और मन भी शांत रहता है."हमने कई बार देखा कि जब ऑपरेशन के दौरान जवान ज्यादा तनाव में होते हैं, तो योग से ही वो खुद को संभाल पाते हैं. ये हमारी बैटल प्रिपरेशन का हिस्सा बन गया है."महिला कांस्टेबल जवान कहती हैं—"बॉर्डर पर रहकर, परिवार से दूर रहकर ड्यूटी करना आसान नहीं होता. लेकिन योग ने हमें वो आत्मबल दिया है जिससे हम अपने कर्तव्य को पूरे समर्पण से निभा पा रहे हैं."हर सुबह सूरज निकलने से पहले ही बॉर्डर चौकियों पर जवान योगासन करते दिखते हैं—भुजंगासन, ताड़ासन, वज्रासन. साथ में गूंजता है मंत्रों का उच्चारण. कुछ मिनटों की यह साधना जैसे पूरे दिन की तैयारी होती है. बीएसएफ के सीनियर अधिकारी भी मानते हैं कि—"फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ मेंटल वेलनेस भी बेहद जरूरी है. योग और प्राणायाम अब बीएसएफ के ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा बन चुके हैं."यहां तक कि जो नए रिक्रूट होते हैं, उन्हें भी पहली ट्रेनिंग के साथ योग की गहन शिक्षा दी जाती है.

जैसलमेर बॉर्डर बना योग का नया धाम 
जिस जैसलमेर की पहचान रेत के समंदर, ऊँट, हवेलियों और तनोट माता के मंदिर से होती थी, अब वहां योग की एक नई छवि उभर रही है. जैसलमेर बॉर्डर पर बीएसएफ जवानों के योगाभ्यास की तस्वीरें अब पूरे देश को प्रेरणा दे रही हैं.यहां के धोरे अब सिर्फ सीमा की निगरानी के लिए नहीं, बल्कि योग की साधना के लिए भी इस्तेमाल हो रहे हैं. सुबह के समय जब सूरज की हल्की किरणें रेत को छूती हैं और आसमान सुनहरा होता है, तब ये नज़ारा किसी तपोभूमि से कम नहीं लगता.योग विशेषज्ञों का कहना है कि रेगिस्तान का वातावरण योग के लिए बेहद उपयुक्त है—कम आर्द्रता, खुला वातावरण और मौन... ये सारी परिस्थितियां ध्यान को गहराई तक ले जाती हैं.बीएसएफ ने अब इसे स्थायी रूप देने की योजना भी बनाई है. कुछ चौकियों पर पक्के योग प्लेटफॉर्म बनाए जा रहे हैं, योगा इंस्ट्रक्टर की नियुक्ति हो रही है, और सेना की पत्रिकाओं में योग को लेकर विशेष कॉलम छप रहे हैं.एक स्थानीय अधिकारी का कहना है—"जैसलमेर के रेत पर योग की गूंज अब सिर्फ जवानों तक सीमित नहीं रहेगी, आने वाले समय में इसे नागरिकों तक भी पहुंचाया जाएगा."

भारत को मिला सरहद से योग का संदेश 
भारत में योग एक प्राचीन परंपरा है, लेकिन आज जब सीमा से इसकी आवाज़ गूंजती है, तो उसका असर देश के हर कोने में होता है. जैसलमेर बॉर्डर पर जवानों ने जिस तरह योग को अपनाया है, वो हर भारतीय के लिए एक सीख है.जब एक जवान बुलेटप्रूफ जैकेट के अंदर सांसों की साधना करता है, तो वो बताता है कि असली शक्ति बाहरी नहीं, अंदर की होती है.बीएसएफ जवानों का संदेश साफ है—"योग सिर्फ आसन नहीं है, ये जीवन जीने की कला है. और अगर हम जैसे कठिन माहौल में इसे अपनाकर स्थिर रह सकते हैं, तो हर कोई इसे अपनाकर अपनी ज़िंदगी बदल सकता है."आज जब 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस मनाएगी, तब जैसलमेर के रेत पर योग कर रहे जवान सबसे बड़ी प्रेरणा बनेंगे. उनका हर आसन, हर ध्यान, हर श्वास भारत के लिए एक संकल्प है—"स्वस्थ शरीर, शांत मन, और देशभक्ति से भरा जीवन."सरहद से आ रही यह तस्वीरें सिर्फ मन को नहीं छूतीं, बल्कि हमें सोचने पर मजबूर करती हैं—"क्या हम अपने जीवन में योग को उस तरह से जी पा रहे हैं, जिस तरह ये देश के जवान जी रहे हैं?" 

सरहद से निकली इस प्रेरणा की तस्वीरें हमें एक गहरी बात सिखाती हैं—कि जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, अगर मन स्थिर है, तो हर चुनौती आसान है. जैसलमेर के जवानों ने योग को सिर्फ अपनाया नहीं, बल्कि उसे जीकर दिखाया है. आइए, इस योग दिवस पर हम भी प्रण करें—अपने शरीर, अपने मन, और अपने देश के प्रति पूरी निष्ठा के साथ जीवन को योगमय बनाएँ