नई दिल्लीः आज करवाचौथ का पर्व है. सुहागिन महिलाओं ने सुबह से अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखा हुआ है. जो रात को चांद की पूजा कर जल अर्पित करके ही पूरा होगा. हालांकि इस दौरान सभी के मन में एक सवाल है कि अगर आज चांद नहीं दिखता है. या फिर बादलों के चलते चांद नहीं निकल पाये तो ऐसे में क्या करना होगा.
इसको लेकर पंडितों का कहना है कि मौसम की गड़बड़ी के चलते कभी चंद्रमा न दिखे तो शहर के मुताबिक चंद्र दर्शन के दिए समय पर पूर्व-उत्तर दिशा में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा कर सकते हैं. ये व्रत खास इसलिए है क्योंकि आज बुधवार है. जो कि करवा चौथ के लिए बेहद ही शुभ है.
ज्योतिषियों का कहना है कि आज के ग्रह-नक्षत्र सर्वार्थसिद्धि, सुमुख, अमृत और कुलदीपक योग बना रहे हैं. करवा चौथ पर ऐसा चतुर्महायोग पिछले 100 साल में कभी नहीं बना. इतना ही नहीं आज बुधवार और चतुर्थी का संयोग भी बन रहा है. इस तिथि और वार, दोनों के देवता गणेश जी ही हैं. इन शुभ संयोग और ग्रह स्थिति से व्रत का पुण्य और बढ़ जाएगा.
करवाचौथ की विधिः
करवा चौथ में भगवान गणेश के साथ भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. इसके अलावा करवा मां और चंद्रमा की भी आराधना की जाती है. चंद्रमा निकालने पर उनके दर्शन करके उन्हें अर्घ्य दिया जाता है और फिर अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला जाता है. मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
करवाचौथ पूजा सामग्रीः
1.करवा 2. पूजा की थाली 3. छलनी 4. करवा माता का फोटो 5. सींक 6.जल 7. मिठाई 8.सुहाग की सभी चीजें 9.फूल- माला 10. दीपक 11.रोली 12.सिंदूर 13.मेहंदी 14. कलावा 15. चंदन 16. हल्दी 17. अगरबत्ती 18. नारियल 19. अक्षत 20. घी.
करवाचौथ का महत्वः
सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व होता है. सुहागिन महिलाएं पूरे साल इस महापर्व का बेसब्री से इंतजार करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखते हुए करवा माता, भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत रूप से पूजा-आराधना और कथा सुनती हैं. फिर करवा चौथ की शाम को चांद के निकलने का इंतजार करती हैं और चांद के दर्शन करते हुए अपने पति के हाथों से पानी पीकर व्रत खोलती हैं.
आपको बता दें कि पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर रखा जाता है. इस व्रत में दिनभर निर्जला व्रत और शाम को चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देने का खास महत्व होता है. इस व्रत में चंद्रदेव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत को खोला जाता है.