VIDEO: दिल्ली में 252 करोड़ से बना कांग्रेस का नया आलीशान दफ्तर, राजस्थान में कईं जिलों में कांग्रेस के पास नहीं है खुद के भवन, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: दिल्ली में आखिरकार 47 साल बाद कांग्रेस पार्टी को अपना नया मुख्यालय भवन मिल गया है.लेकिन बात राजस्थान की करें तो अभी तक मानसरोवर में पीसीसी का नया दफ्तर शिलान्यास के बाद से करीब एक साल से निर्माण की बाट जोह रहा है.वहीं 39 जिलाध्यक्षों में से 16 जिलों में पार्टी के खुद के भवन है.शेष जगह दफ्तर लंबे वक्त से किराए के दफ्तरों में चल रहे हैं.

दिल्ली में 47 साल बाद कांग्रेस का 252 करोड़ रुपए की लागत से शानदार नया दफ्तर बनकर तैयार हुआ है.लेकिन देशभर में जिलों के दफ्तर बनाने में कांग्रेस भाजपा के मुकाबले बेहद पीछे हैं.भाजपा देशभर में अभी टोटल 768 दफ्तर बना रही है,इनमें से 563 ऑफिस तो बनकर तैयार हो चुके हैं, लेकिन ताज्जुब की बात है कि लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस के पास खुद के भवन नहीं है.बात राजस्थान की करें तो अभी तक पीसीसी के नए मुख्यालय भवन तक का निर्माण कार्य शुरु नहीं हो पाया है.संगठनात्मक रुप से कांग्रेस के टोटल 39 जिलाध्यक्ष है.

39 जिलाध्यक्षों में से 16 जिलों में ही कांग्रेस के पास खुद के दफ्तर है: 
-सीकर, श्रीगंगानगर, अलवर, चितौड़गढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा, बूंदी, नागौर, टोंक, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, जैसलमेर, झालावाड़,जालौर,कोटा शहर और पाली में खुद के भवन है.

बाकी 23 जगह किराए के भवन में दफ्तर चल रहे है:
-किराए के भवनों में चल रहे दफ्तरों का लाखों रुपए का किराया बकाया पड़ा है
-कईं किराए के भवनों की स्थिति भी काफी दयनीय है

यह हालात तो तब है जब राजस्थान में कांग्रेस पार्टी लंबे समय से सत्ता में रही है,लेकिन उसके बावजूद खुद के भवन कांग्रेस पार्टी नहीं बना पाई.हालांकि इसके लिए कई दफा कमेटियों का गठन हुआ और भवन बनाने के प्रयास भी किए गए,लेकिन इच्छाशक्ति औऱ फंडिंग के चलते खुद के भवन बनाने और या फिर खरीदने की योजना कामयाब नहीं हुई.अब कांग्रेस जनप्रतिनिधियों औऱ पदाधिकारियों से चंदा लेते हुए दफ्तर बनाने की प्लानिंग बनाई जा रही है.

दिल्ली में नया दफ्तर बनने के बाद कांग्रेस गलियारों में अब एक बार फिर चर्चा शुरु हो गई है कि नीचले स्तर पर खुद के भवन कब होंगे.जाहिर सी बात है कि खुद के भवन नहीं होने से पार्टी की बैठक जैसी अन्य गतिविधियां प्रभावित होती है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह यकीनन बड़ा सवाल है कि सत्ता सुख भोगने के बावजूद जिलों में खुद के दफ्तर बनाने में रुचि क्यों नहीं दिखाई.