अदालत ने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री के संबंध में सीआईसी के आदेश को रद्द किया, केजरीवाल पर जुर्माना लगाया

अदालत ने प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री के संबंध में सीआईसी के आदेश को रद्द किया, केजरीवाल पर जुर्माना लगाया

अहमदाबाद:  गुजरात उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के सात साल पुराने उस आदेश को शुक्रवार को रद्द कर दिया, जिसमें गुजरात विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री के बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया था. सीआईसी के आदेश के खिलाफ गुजरात विश्वविद्यालय की अपील को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव ने केजरीवाल पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और उन्हें चार सप्ताह के भीतर गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (जीएसएलएसए) में राशि जमा करने के लिए कहा.

न्यायमूर्ति वैष्णव ने अपने आदेश में कहा कि याचिका मंजूर की जाती है और सीआईसी का 29 अप्रैल, 2016 का आदेश रद्द किया जाता है. केजरीवाल के वकील पर्सी कविना के अनुरोध के बावजूद न्यायमूर्ति वैष्णव ने अपने आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि वह आदेश के खिलाफ खंडपीठ के समक्ष अपील करेगी. आप गुजरात के कानूनी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रणव ठक्कर ने कहा कि इस फैसले के साथ, नागरिकों ने प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में जानकारी मांगने का अधिकार खो दिया है. इस मामले में प्रतिवादी केजरीवाल पर जुर्माना लगाने से भी हमें हैरानी हुई है. हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और इस आदेश के खिलाफ जल्द ही एक खंडपीठ का रुख करेंगे.

अप्रैल 2016 में तत्कालीन केंद्रीय सूचना आयुक्त एम श्रीधर आचार्युलु ने दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय को मोदी को प्राप्त डिग्रियों के बारे में केजरीवाल को जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया था. तीन महीने बाद, गुजरात उच्च न्यायालय ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी, जब विश्वविद्यालय ने उस आदेश के खिलाफ अदालत का रुख किया. सीआईसी का यह आदेश केजरीवाल द्वारा आचार्युलु को पत्र लिखे जाने के एक दिन बाद आया था, जिसमें कहा गया कि उन्हें (केजरीवाल) अपने सरकारी रिकॉर्ड को सार्वजनिक किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है और हैरानी है कि आयोग मोदी की शैक्षणिक योग्यता के बारे में जानकारी को ‘‘छिपाना’’ क्यों चाहता है. पत्र के आधार पर आचार्युलु ने गुजरात विश्वविद्यालय को केजरीवाल को मोदी की शैक्षणिक योग्यता का रिकॉर्ड देने का निर्देश दिया था.

मई 2016 में, गुजरात विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एम एन पटेल ने कहा था कि मोदी ने 1983 में बाहरी छात्र के रूप में 62.3 प्रतिशत के साथ राजनीति विज्ञान में एमए किया था. पिछली सुनवाइयों के दौरान, गुजरात विश्वविद्यालय ने सीआईसी के आदेश पर जोरदार आपत्ति जताते हुए कहा था कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत किसी की ‘‘गैर-जिम्मेदाराना बचकानी जिज्ञासा’’ सार्वजनिक हित नहीं बन सकती है.

फरवरी में हुई पिछली सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया था कि छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री की डिग्री के बारे में जानकारी पहले से ही सार्वजनिक है और विश्वविद्यालय ने पूर्व में एक खास तारीख पर अपनी वेबसाइट पर जानकारी को सार्वजनिक किया था. हालांकि, केजरीवाल के वकील पर्सी कविना ने दावा किया था कि जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी और अपने मुवक्किल की मांग का यह कहते हुए बचाव किया कि ‘‘कोई भी कानून से ऊपर नहीं है.

सीआईसी के आदेश का पालन नहीं करने के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत दिए गए अपवादों का हवाला देते हुए, मेहता ने यह भी दलील दी थी कि आरटीआई अधिनियम का इस्तेमाल ‘हित साधने’ और प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ ‘‘बचकाना प्रहार’’ करने के लिए किया जा रहा है.आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत दी गई छूट के बारे में उच्चतम न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए पूर्व के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए, मेहता ने यह भी कहा कि कोई किसी की व्यक्तिगत जानकारी महज इसलिए नहीं मांग सकता, क्योंकि वह इसके बारे में उत्सुक है.

मेहता ने दलील दी थी कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, कोई विश्वविद्यालय अपने छात्रों के बारे में किसी तीसरे व्यक्ति को जानकारी देने से इनकार कर सकता है, क्योंकि इसमें एक ट्रस्टी और एक लाभार्थी के बीच विश्वास का रिश्ता होता है. मेहता के अनुसार, कोई भी ऐसी निजी जानकारी नहीं मांग सकता जो किसी व्यक्ति की सार्वजनिक गतिविधि से संबंधित न हो. फरवरी में पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी थी, सिर्फ इसलिए कि जनता इसमें दिलचस्पी रखती है, यह सार्वजनिक हित नहीं हो सकता है. अदालतों की व्याख्या ने स्थापित किया है कि शैक्षणिक योग्यता निजी जानकारी है, चाहे वह किसी राजनेता की हो या किसी अन्य व्यक्ति की. सोर्स भाषा