नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को उप राज्यपाल वीके सक्सेना पर राज्य सरकार को दरकिनार करते हुए मुकदमों की मंजूरी देने का आरोप लगाया है.
उन्होंने कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां राज्य के खिलाफ गंभीर अपराध करने वाले आरोपी आसानी से मुक्त हो सकते हैं. सिसोदिया ने मुख्य सचिव को बुधवार तक ऐसे सभी मामलों की सूची उनके सामने रखने का निर्देश दिया है, जिनमें मंत्री से मंजूरी नहीं ली गई है. उन्होंने कहा कि चुनी हुई सरकार मुकदमों की स्वीकृति देती है. बाद में एक बयान में सरकार ने कहा कि कुछ महीने पहले तक प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था. उसने कहा कि लेकिन कुछ महीनों से मुख्य सचिव ने मंत्री को दरकिनार कर सभी दस्तावेजों को सीधे उपराज्यपाल के पास भेजना शुरू कर दिया.
अपराध करने वाले कई आरोपी छूट सकते हैं:
उप मुख्यमंत्री ने एक बयान में कहा, 'उपराज्यपाल ने भी इन सभी मामलों में 'मंजूरी' दी है, हालांकि वह मंजूरी देने वाले प्राधिकारी नहीं हैं. इसलिए, पिछले कुछ महीनों में ऐसे सभी आपराधिक मामलों में अभियोजन के लिए दी गई मंजूरी अमान्य है. जब आरोपी अदालतों में इस बिंदु को उठाएंगे, उन्हें रिहा कर दिया जाएगा. उन्होंने एक ट्वीट में कहा, 'माननीय उप राज्यपाल के हर मामले में निर्वाचित सरकार को दरकिनार करने के अति उत्साह ने एक संकट की स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें राज्य के खिलाफ गंभीर अपराध करने वाले कई आरोपी छूट सकते हैं.
दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे अपराध शामिल:
सिसोदिया ने कहा कि उप राज्यपाल ने चुनी हुई सरकार को दरकिनार करते हुए 'अवैध अभियोजन मंजूरियां' जारी की हैं. एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा कि, 'दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 196 (1) के तहत, कुछ अपराधों के मामले में अभियोजन के लिए राज्य सरकार से वैध मंजूरी एक शर्त है. जिसमें अभद्र भाषा, धार्मिक भावनाओं को आहत करना, घृणा अपराध, राजद्रोह, राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना और दूसरों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने जैसे अपराध शामिल हैं.
ऐसे किसी भी मामले का संज्ञान नहीं लेगी:
सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार, चुनी हुई सरकार के पास ही सीआरपीसी के तहत मुकदमा चलाने के लिए वैध मंजूरी जारी करने की कार्यकारी शक्ति है तथा माननीय उप राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे होंगे.' बाद में एक बयान में कहा गया कि, आईपीसी की धारा 196 के तहत राज्य के खिलाफ किए गए अपराधों के मामले में, कोई भी अदालत 'राज्य सरकार' की मंजूरी के बिना ऐसे किसी भी मामले का संज्ञान नहीं लेगी.
भारत के राष्ट्रपति के पास भेजना चाहेंगे:
दिल्ली सरकार के कानून विभाग के मुताबिक इस कानून में राज्य सरकार का मतलब चुनी हुई सरकार है. बयान में कहा गया है कि, जिस मंत्री को इसका प्रभार दिय़ा गया है उससे इन सभी मामलों में स्वीकृति ली जानी चाहिए थी. बयान के मुताबिक मंत्री की मंजूरी लेने के बाद फाइल उप राज्यपाल को यह तय करने के लिए भेजी जाएगी कि क्या वह मंत्री के फैसले से अलग रुख रखते हैं और क्या वह इसे भारत के राष्ट्रपति के पास भेजना चाहेंगे.
न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को भी कमजोर करती हैं:
बयान में कहा गया है, 'उप राज्यपाल के पास मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना स्वतंत्र रूप से मंजूरी देने की कोई शक्ति नहीं है. कानून द्वारा मान्यता प्राप्त वैध मंजूरी की कमी के कारण इस तरह के मुकदमों को अमान्य कर दिया गया है.' बयान में उप राज्यपाल पर आरोप लगाया गया है कि, उनकी कार्रवाइयां न केवल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को भी कमजोर करती हैं. बयान के अनुसार उप राज्यपाल ने चुनी हुई सरकार को दरकिनार कर दिया है जिसका फायदा अपराधी उठा सकते हैं. सोर्स-भाषा